सुप्रीम कोर्ट का बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, जारी रहेगा SIR
नई दिल्ली, 10 जुलाई। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई की। इस दौरान याचिकाकर्ताओं और चुनाव आयोग का पक्ष सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने SIR पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
‘आधार, राशन व वोटर कार्ड शामिल करने पर विचार करे चुनाव आयोग’
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने भारत निर्वाचन आयोग (ECI) से कहा कि दस्तावेजों की लिस्ट अंतिम नहीं है। कोर्ट ने आयोग से प्रमाण के तौर पर आधार, वोटर कार्ड और राशन कार्ड को शामिल करने को कहा, जिसका आयोग ने विरोध किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम आपको रोक नहीं रहे हैं, हम आपसे कानून के तहत एक्ट करने के लिए कह रहे हैं।’ सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी करते हुए सुनवाई की अगली तारीख 28 जुलाई तय की है।
याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने कहा कि हम संवैधानिक संस्था को वह करने से नहीं रोक सकते, जो उसे करना चाहिए। कोर्ट ने चुनाव आयोग को अपना हलफनामा दायर करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया है। वहीं याचिकाकर्ताओं को उसके एक सप्ताह बाद जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने तीन मुद्दों पर मांगा जवाब
सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग से तीन मुद्दों पर जवाब मांगा है। कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अदालत के समक्ष जो मुद्दा है, वह लोकतंत्र की जड़ और मतदान के अधिकार से जुड़ा है। याचिकाकर्ता न केवल चुनाव आयोग के मतदान कराने के अधिकार को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि इसकी प्रक्रिया और समय को भी चुनौती दे रहे हैं। इन तीन मुद्दों पर जवाब देने की जरूरत है।
पुनरीक्षण को बिहार चुनाव से क्यों जोड़ रहे – सुप्रीम कोर्ट
इससे पहले सुनवाई के दौरान जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि आप इस प्रक्रिया को नवम्बर में होने वाले चुनाव से क्यों जोड़ रहे हैं? यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो पूरे देश के चुनाव से स्वतंत्र हो सकती है। इस पर चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि प्रक्रिया का पालन किया जाएगा। उन्होंने आश्वासन दिया कि सुनवाई का अवसर दिए बिना किसी को भी मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाएगा।
‘मतदाताओं के बिना चुनाव आयोग का अस्तित्व नहीं‘
चुनाव आयोग के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, ‘चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जिसका मतदाताओं से सीधा संबंध है और यदि मतदाता ही नहीं होंगे तो हमारा अस्तित्व ही नहीं है। आयोग किसी को भी मतदाता सूची से बाहर करने का न तो इरादा रखता है और न ही कर सकता है, जब तक कि आयोग को क़ानून के प्रावधानों द्वारा ऐसा करने के लिए बाध्य न किया जाए। हम धर्म, जाति आदि के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकते।’
आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं : चुनाव आयोग
मतदाता सत्यापन के लिए जरूरी दस्तावेजों से आधार कार्ड को बाहर रखने पर चुनाव आयोग ने कहा कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि आप मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में नागरिकता के मुद्दे को क्यों उठा रहे हैं? यह गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है। यदि आपको पुनरीक्षण के जरिए नागरिकता की जांच करनी थी तो आपको यह पहले करना चाहिए था। इसमें अब बहुत देर हो चुकी है। परेशानी पुनरीक्षण प्रक्रिया से नहीं है बल्कि दिक्कत इसके लिए चुने गए समय से है।
‘नागरिकता की जांच करनी थी तो आपको यह पहले करना चाहिए था’
न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि इस गहन प्रक्रिया में कुछ भी गलत नहीं है ताकि गैर-नागरिक मतदाता सूची में न रहें, लेकिन यह इस चुनाव से पहले होना चाहिए। न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि एक बार मतदाता सूची को अंतिम रूप दे दिया जाए और अधिसूचित कर दिया जाए और उसके बाद चुनाव हों तो कोई भी अदालत उसमें हाथ नहीं डालेगी।
‘चुनाव आयोग जो कर रहा, वह संविधान के तहत अनिवार्य‘
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील गोपाल एस ने कहा कि यह मतदाता सूची का पुनरीक्षण है। इसका एकमात्र प्रासंगिक प्रावधान जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 है। अधिनियम और नियमों के तहत मतदाता सूची का नियमित पुनरीक्षण किया जा सकता है। एक गहन पुनरीक्षण है और दूसरा संक्षिप्त पुनरीक्षण। गहन पुनरीक्षण में पूरी मतदाता सूची को मिटा दिया जाता है और पूरी प्रक्रिया नई होती है, जिससे सभी 7.9 करोड़ मतदाताओं को गुजरना पड़ता है। संक्षेप में, मतदाता सूची में छोटे-मोटे संशोधन किए जाते हैं। यहां जो हुआ, वह एक विशेष गहन पुनरीक्षण का आदेश देना है।
इस पर जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा कि चुनाव आयोग जो कर रहा है, वह संविधान के तहत अनिवार्य है। आप यह नहीं कह सकते कि वे ऐसा कुछ कर रहे हैं, जो संविधान के तहत अनिवार्य नहीं है। उन्होंने पिछली बार 2003 में ऐसा किया था। क्योंकि गहन अभ्यास किया जा चुका है। उनके पास इसके आंकड़े हैं। वे फिर से माथापच्ची क्यों करेंगे? चुनाव आयोग के पास इसके पीछे एक तर्क है।
