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पर्यावरण-वन एवं जीव सृष्टि के संरक्षण के लिए प्रकृति वंदन संकल्प कार्यक्रम का आयोजन

पर्यावरण-वन एवं जीव सृष्टि के संरक्षण के लिए प्रकृति वंदन संकल्प कार्यक्रम का आयोजन

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हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा फाउंडेशन एवं पर्यावरण गतिविधी द्वारा 29 अगस्त को पर्यावरण-वन एवं सम्पूर्ण जीव सृष्टि के संरक्षण के लिए प्रकृति वंदन का एक विशेष कार्यक्रम संम्पूर्ण भारत वर्ष में रखा है, पूरे देश मे यह कार्यक्रम प्रांतः 10 बजे से होगा । आप अपने घर मे परिवार के सदस्यों के साथ प्रकृति वंदन कर प्रकृति संरक्षण का संकल्प ले ।

सनातन संस्कृति मनुष्य मात्र को हीं नहीं अखिल ब्रह्मांड को ईश्वर का विराट स्वरूप मानती है. इस विराट स्वरूप में ईश्वर सूक्ष्म रुप से प्रतिष्ठित है । श्रीमदभागवतगीता के अनुसार सनातन का अर्थ है वो जो अग्नि, जल, अस्त्र-शस्त्र से नष्ट न किया जा सके । जो प्रत्येक जीव-निर्जीव मे विद्यमान है । पुरे विश्व में केवल हमारी संस्कृति ही है, जो एक व्यक्ति को परिवार से परिवार को समाज से और समाज को विश्व से जोडकर एक परिवार के रूप में देखती है । हिंदुत्व केवल धर्म नहीं एक वैज्ञानिक जीवन पद्धति है, हमारी संस्कृति की जडें इतनी परिष्कृत एवं व्यापक है कि हमारे प्रत्येक कार्य का वैज्ञानिक विश्लेषण स्वयं सिद्ध है ।

हमारे यहाँ प्रमुख पर्वतों को देवताओं का निवास स्थान माना गया है, गाय, कुत्ता, चुहा, हाथी, शेर और यहां तक विषधर नागराज को भी पूजनीय बताया है. पहली रोटी गाय के लिए और अंतिम रोटी कुत्ते के लिए निकाली जाती है. चीटियों को आटा डालते है. चिडियों और कौओं के लिए घर की मुंडेर पर दाना-पानी रखा जाता है. देवो के देव महादेव तो बिल्व-पत्र और धतूरे से प्रसन्न होते है.

वट पूर्णिमा और आंवला ग्यारस का पर्व मनाया जाता है. माँ सरस्वती को पीले पुष्प, धन-सम्पदा की देवी लक्ष्मी को कमल और गुलाब के पुष्प अतिप्रय है. गणेश जी दूर्वा से प्रसन्न हो जाते है. प्रत्येक देवी-देवता भी पशु-पक्षी और पेड-पौंधो से लेकर प्रकृति के विभिन्न अवयवों के सरंक्षण का संदेश देते है.भगवान श्री कृष्णजी ने गोवर्धन की पूजा का विधान इसलिए प्रारंभ किया थी कि गोवर्धन पर्वत पर प्रकृति की अकूत संपदा थी. मथुरा के गोपालकों के गोधन के भोजन-पानी की व्यवस्था उसी पर्वत परथी, आइये हम अपनी परंपराओ की और लौटते हुए प्रकृति वंदन करे ।

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