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एनसीईआरटी ने विद्यार्थियों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान के लिए जारी किए दिशानिर्देश

एनसीईआरटी ने विद्यार्थियों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान के लिए जारी किए दिशानिर्देश

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नई दिल्ली, 11 सितम्बर। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने विद्यालय जाने वाले बच्चों और किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की प्रारंभिक पहचान के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। एनसीईआरटी ने स्कूल जाने वाले विद्यार्थियों के बीच कराए गए मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के बाद यह कदम उठाया है।

विद्यार्थियों के बीच कराए गए मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के बाद लिया गया निर्णय

स्कूलों के लिए जारी दिशानिर्देशों में मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार समिति का गठन, मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम और विद्यार्थियों का मानसिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के वास्ते शैक्षणिक सहायता आदि शामिल है। पिछले सप्ताह आई सर्वेक्षण रिपोर्ट में विद्यालय जाने वाले विद्यार्थियों में तनाव और चिंता के प्रमुख कारकों में परीक्षा, परिणाम और साथियों के दबाव का हवाला दिया गया है।

दिशानिर्देशों के अनुसार, ‘विद्यालयों को आमतौर पर ऐसे स्थान के रूप में देखा जाता है, जहां विद्यार्थियों के एक सुरक्षित वातावरण में विकसित होने की उम्मीद की जाती है। स्कूल प्रबंधन, प्रधानाचार्य, शिक्षक, अन्य कर्मचारी और विद्यार्थी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के विद्यालयों में साल में लगभग 220 दिन व्यतीत करते हैं।

बच्चों की सुरक्षा, संरक्षण, स्वास्थ्य व भलाई सुनिश्चित करना विद्यालयों की जिम्मेदारी

आवासीय विद्यालयों में एक विद्यार्थी द्वारा व्यतीत किया गया समय और भी अधिक होता है। इसलिए विद्यालयों और छात्रावासों में सभी बच्चों की सुरक्षा, संरक्षण, स्वास्थ्य और भलाई सुनिश्चित करना विद्यालयों की जिम्मेदारी है।’

बच्चों को प्रारंभिक संकेतों के बारे में सूचित करें माता-पिता और शिक्षक

एनसीईआरटी दिशानिर्देशों में कहा गया है, ‘प्रत्येक विद्यालय या विद्यालयों के समूहों को एक मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार समिति बनानी चाहिए। इसकी अध्यक्षता प्रधानाचार्य द्वारा की जानी चाहिए। इसमें शिक्षक, माता-पिता, विद्यार्थी, पूर्व विद्यार्थी सदस्य के रूप में शामिल होंगे।’ इस बात पर गौर करते हुए कि मानसिक स्वास्थ्य के अधिकतर मुद्दे जीवन के प्रारंभिक चरण में सामने आते हैं, एनसीईआरटी ने सिफारिश की है कि माता-पिता और शिक्षक बच्चों को प्रारंभिक संकेतों के बारे में सूचित करें।

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