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उत्तिष्ठ भारत कार्यक्रम में बोले मोहन भागवत – ‘हम अहिंसा के पुजारी हैं, दुर्बलता के नहीं’

उत्तिष्ठ भारत कार्यक्रम में बोले मोहन भागवत – ‘हम अहिंसा के पुजारी हैं, दुर्बलता के नहीं’

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नागपुर, 14 अगस्त। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने एक बार फिर देश में जाति व्यवस्था की आलोचना की है और कहा कि यह सिर्फ भारतीयों में मतभेद पैदा करने के लिए बनाई गई। भारतीय स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ पूरी होने के एक दिन पूर्व रविवार को यहां आयोजित उत्तिष्ठ भारत कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा, इस मौके पर आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘हम अलग दिख सकते हैं। हम अलग-अलग चीजें खा सकते हैं। लेकिन हमारा अस्तित्व एकता में है। विविध होकर भी एक रहना और आगे बढ़ना कुछ ऐसा है, जो दुनिया भारत से सीख सकती है।’

‘हमारे बीच मतभेद पैदा करने के लिए अनावश्यक रूप से जातियों की खाई बनाई गई

संघ प्रमुख भागवत ने अपने संबोधन में कहा, ‘ऐसी कई ऐतिहासिक घटनाएं हुई हैं, जो हमें कभी नहीं बताई गईं और न ही सही तरीके से सिखाई गईं। जिस स्थान पर संस्कृत व्याकरण का जन्म हुआ, वह भारत में नहीं है। क्या हमने कभी एक सवाल पूछा क्यों? हम पहले ही अपने ज्ञान को भूल गए थे, बाद में विदेशी आक्रमणकारियों ने हमारी भूमि पर कब्जा कर लिया। हमारे बीच मतभेद पैदा करने के लिए अनावश्यक रूप से जातियों की खाई बनाई गई।’

मोहन भागवत ने कहा, ‘पूरी दुनिया विविधता के प्रबंधन के लिए भारत की ओर देख रही है। जब विविधता को कुशलता से प्रबंधित करने की बात आती है तो दुनिया भारत की ओर इशारा करती है। दुनिया विरोधाभासों से भरी है, लेकिन प्रबंधन केवल भारत ही कर सकता है।’

उन्होंने देशावासियों से अपील की, ‘समाज और देश के लिए काम करने का संकल्प लें। हम देश के लिए फांसी पर चढ़ेंगे, हम देश के लिए काम करेंगे। हम भारत के लिए गीत गाएंगे। जीवन भारत को समर्पित होना चाहिए।’

अखंड भारत बनाना है तो डर छोड़ना होगा

संघ प्रमुख भागवत ने एक बार फिर से भारत को अखंड बनाने की बात दोहराई। उन्होंने कहा कि देश को महान और बड़ा बनाने के लिए डर छोड़ना होगा। उन्होंने कहा, ‘हम अहिंसा के पुजारी हैं, दुर्बलता के नहीं। उन्होंने कहा, भाषा, पहनावे और संस्कृति के आधार पर हमारे बीच छोटे-मोटे अंतर हैं। लेकिन हमें इन चीजों में नहीं फंसना चाहिए। देश की सभी भाषाएं राष्ट्रभाषाएं हैं, विभिन्न जातियों के सभी लोग अपने हैं।’

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