1. Home
  2. हिंदी
  3. राष्ट्रीय
  4. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की नियुक्ति को चुनौती देने वाली पुनरीक्षण याचिका दिल्ली हाई कोर्ट से खारिज
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की नियुक्ति को चुनौती देने वाली पुनरीक्षण याचिका दिल्ली हाई कोर्ट से खारिज

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की नियुक्ति को चुनौती देने वाली पुनरीक्षण याचिका दिल्ली हाई कोर्ट से खारिज

0
Social Share

नई दिल्ली, 16 जनवरी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ की भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करने के आदेश की समीक्षा का अनुरोध करने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी और कहा कि यह याचिका पर फिर से सुनवाई की आड़ में दायर की गई है, जो अस्वीकार्य है।

कोर्ट ने कहा – पूर्व में पारित आदेश की समीक्षा का कोई आधार नहीं बनता

न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विकास महाजन की पीठ ने कहा कि 11 नवम्बर, 2022 को पारित आदेश की समीक्षा का कोई आधार नहीं बनता है। दिल्ली उच्च न्यायालय की एक अन्य पीठ ने पिछले वर्ष 11 नवम्बर को न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की नियुक्ति को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपये जुर्माना लगाया था।

पीठ ने सोमवार को कहा, ‘यह पुनरीक्षण याचिका की आड़ में की गई अपील है। याचिकाकर्ता रिकॉर्ड में किसी भी स्पष्ट त्रुटि को इंगित नहीं कर पाया और 11 नवम्बर, 2022 के आदेश की समीक्षा का कोई आधार नहीं बनता, इसलिए पुनरीक्षण याचिका खारिज की जाती है।’ पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि याचिका पर फिर से सुनवाई की इच्छा की आड़ में पुनरीक्षण याचिका दायर की गई, जो समीक्षा के लिए स्वीकार्य नहीं है।

याचिकाकर्ता पर पिछले वर्ष लगाया जा चुका है एक लाख का जुर्माना

अदालत ने संजीव कुमार तिवारी द्वारा दायर जनहित याचिका को पिछले साल खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। पीठ ने जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि सार्वजनिक विश्वास के साथ संवैधानिक पदों पर आसीन अधिकारियों की नियुक्ति को जनहित के नाम पर ‘स्वयंभू योद्धाओं’ द्वारा काल्पनिक आरोपों के आधार पर अपमानित करने की छूट नहीं दी जा सकती।

याचिकाकर्ता ने अपनी पुनरीक्षण याचिका में पूर्व के आदेश को दरकिनार करने एवं लगाए गए जुर्माने को माफ करने का अनुरोध किया था। याचिकाकर्ता ने पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई के दौरान आरोप लगाया कि उसे पिछली पीठ ने याचिका पढ़ने की अनुमति तक नहीं दी थी और उसके मित्रों को मामले पर सुनवाई के दौरान अदालत परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई थी।

इस पर न्यायमूर्ति सचदेवा ने कहा कि जब पीठ किसी मामले की सुनवाई के लिए बैठती है, तो वह फाइल को पहले ही देख चुकी होती है और चूंकि मामले पर बहस याचिकाकर्ता को करनी थी तो उसके मित्रों की यहां आवश्यकता नहीं थी। उच्च न्यायालय ने कहा कि समीक्षा के लिए कोई आधार नहीं बनता है और यदि याचिकाकर्ता चाहे तो वह उपयुक्त अदालत में अपील दायर कर सकता है।

अदालत ने कहा, ‘आप जो भी बहस कर रहे हैं, वह पुनरीक्षण याचिका के दायरे में नहीं आती। आपको संविधान से पता चल जाएगा कि आपको उचित उपाय के लिए किसके पास जाना है। हमारा काम सलाह देना नहीं है, निर्णय लेना है। आप अपील दायर करें, क्योंकि समीक्षा का मामला नहीं बनता है।’

याचिकाकर्ता ने कहा कि पिछली पीठ के न्यायाधीश अंग्रेजी में जवाब दे रहे थे, जबकि वह हिन्दी में बहस कर रहा था और उसे हिन्दी में आदेश की प्रति नहीं दी गई, जो ‘असंवैधानिक’ है। इस पर न्यायमूर्ति सचदेवा ने कहा, ‘हिन्दी की बजाय अंग्रेजी में आदेश देने की एक वजह है। संविधान में इसके बारे में भी लिखा है। आप कहते हैं कि आप संविधान के जानकार हैं, आपको इसमें इसका कारण मिल जाएगा।’

याचिकाकर्ता हिन्दी में अपने मामले पर बहस कर रहा था, तो पीठ भी उसे उसी भाषा में जवाब दे रही थी। पीठ ने कहा, ‘भारत में कितनी भाषाएं हैं और आप उन लोगों से कैसे बात करेंगे, जो हिन्दी नहीं बोलते?’ तिवारी ने कहा कि उन्हें हिन्दी या संस्कृत में संवाद करना चाहिए क्योंकि सभी भारतीय भाषाओं का उद्भव संस्कृत से हुआ है और उन्हें अंग्रेजी का उपयोग नहीं करना चाहिए। इस पर पीठ ने कहा, ‘क्या आप उन सभी को संस्कृत पढ़ाएंगे?’

इससे पहले, इस मामले पर गत नवम्बर में फैसला सुनाने वाली मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई से 13 जनवरी को खुद को अलग कर लिया था। पीठ ने कहा था कि याचिका में उनके खिलाफ कुछ आरोप भी लगाए गए हैं, इसलिए वह इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती।

LEAVE YOUR COMMENT

Your email address will not be published.

Join our WhatsApp Channel

And stay informed with the latest news and updates.

Join Now
revoi whats app qr code