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पीएम मोदी के करीबी और यूपी भाजपा के पूर्व सह प्रभारी सुनील ओझा का निधन

पीएम मोदी के करीबी और यूपी भाजपा के पूर्व सह प्रभारी सुनील ओझा का निधन

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वाराणसी, 29 नवम्बर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी और उत्तर प्रदेश भाजपा के पूर्व सह प्रभारी सुनील ओझा का बुधवार को गुड़गांव के वेदांता अस्पताल में निधन हो गया। मिर्जापुर स्थित गड़ौली धाम में राम कथा के दौरान डेंगू होने से 68 वर्षीय भाजपा नेता को वाराणसी के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हालत गंभीर होने पर उन्हें वेदांता अस्पताल ले जाया गया, जहां आज सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली।

मूल रूप से गुजरात के भावनगर जिले के रहने वाले थे

सुनील ओझा मूल रूप से गुजरात के भावनगर जिले के रहने वाले थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी नेताओं में से एक माने जाते थे। वह भावनगर दक्षिण से भाजपा के विधायक भी रह चुके थे। कुछ महीने पहले उनका उत्तर प्रदेश से हटाकर बिहार का सह प्रभारी नियुक्त किया गया था।

ऐसे बने पीएम मोदी के करीबी

उल्लेखनीय है कि सुनील ओझा को पीएम मोदी का ‘मिस्टर भरोसेमंद’ कहा जाता था। इसकी शुरुआत 21 वर्ष पहले राजकोट से हुई थी, जब पीएम मोदी चुनावी राजनीति में उतरे थे। नरेंद्र मोदी ने पहला चुनाव 2002 में लड़ा था। तब राजकोट में उनके चुनाव के प्रभारी सुनील ओझा ही थे। यहीं से ओझा ने अपनी सूझबूझ और मेहनत के जरिए अपनी मिस्टर भरोसेमंद की छवि गढ़ी थी। कहा जाता है कि सुनील ओझा का पीएम मोदी से इससे भी पुराना नाता है। पीएम मोदी जब संगठन महामंत्री थे, तब से ओझा का उनसे परिचय है।

हाल ही में यूपी से हटाकर बिहार के सह प्रभारी बनाए गए थे

सुनील ओझा को जब बिहार ट्रांसफर किया गया था, तब सोशल मीडिया पर 21 साल पुरानी एक फोटो वायरल हो रही थी जिसमें नरेंद्र मोदी, अमित शाह, सुनील ओझा, ज्योतिंद्र मेहता और भीखूभाई दलसानिया नजर आ रहे हैं। इस फोटो के बाद राजनीतिक गलियारों में कयासों का सिलसिला शुरू हो गया था। चर्चा हुई कि सुनील ओझा को बिहार का सह प्रभारी बनाए जाने का एक कारण भीखू दालसानिया से समन्वय भी हो सकता है। दलसानिया आरएसएस का बैकग्राउंड रखते हैं तो सुनील ओझा मूलरूप भाजपा संगठन के खास थे।

भावनगर से शुरू किया था राजनीतिक करिअर

सुनील ओझा ने भावनगर सीट से अपने राजनीतिक करिअर की शुरुआत की थी। वह भावनगर सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और विधायक रहे। बाद में वर्ष 2007 में भारतीय जनता पार्टी से टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में वह चुनाव मैदान में उतर गए। इस दौरान भाजपा और नरेंद्र मोदी से उनकी दूरियां भी बढ़ गईं। उसके बाद उन्होंने महागुजरात जनता पार्टी नाम से अपनी एक अलग पार्टी बनाई थी।

2011 में फिर आ गए पीएम के करीब

फिलहाल वर्ष 2011 में सुनील ओझा फिर नरेंद्र मोदी के करीब आए। उसके बाद गुजरात में भारतीय जनता पार्टी द्वारा उन्हें प्रवक्ता बनाया गया। पार्टी का प्रवक्ता बनाए जाने के बाद जब साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी से चुनाव लड़ने आए तो चुनाव जीतने के लिए सुनील ओझा सहित दो अन्य नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी दी गई।

गड़ौली धाम को लेकर आए चर्चा में

सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, तभी वाराणसी से सटे मिर्जापुर जनपद में करीब 20 बीघा जमीन खरीद कर बालमुकुंद फाउंडेशन के तरफ से गड़ौली धाम आश्रम का निर्माण कराया जाने लगा। गढ़वाली धाम में कई आयोजन हुए, जिसमें देश के दिग्गज लोगों का आगमन हुआ।

बताया जाता है कि इस आश्रम का निर्माण सुनील ओझा की ही देखरेख में हो रहा था। अंदर खाने में यह भी चर्चा चली थी कि आश्रम का निर्माण कराए जाने से ही पार्टी के कुछ लोगों द्वारा नाराजगी जाहिर की गई थी। उसके बाद ही सुनील ओझा को उत्तर प्रदेश के सह प्रभारी पद से हटाकर बिहार का सह प्रभारी बना दिया गया था।

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