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…जब परवेज मुशर्रफ ने बनाई कारगिल युद्ध की योजना और पाकिस्तानी पीएम को भनक तक नहीं लगी

…जब परवेज मुशर्रफ ने बनाई कारगिल युद्ध की योजना और पाकिस्तानी पीएम को भनक तक नहीं लगी

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नई दिल्ली, 5 फरवरी। पाकिस्तान के पहले तानाशाह सैन्य शासक के रूप में कुख्यात पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ का लंबी बीमारी के बाद आज निधन हो गया। उन्होंने 79 वर्ष की उम्र में दुबई के एक अस्पताल में आखिरी सांस ली।

वैसे तो 1947 में भारत से अलग होने के बाद से ही पाकिस्तान के साथ आतंकवाद सहित अन्य मुद्दों पर तनातनी बरकरार है, लेकिन 1999 में हुए कारगिल युद्ध के लिए तो जनरल परेवज मुशर्रफ को ही जिम्मेदार माना जाता है। यह मुशर्रफ ही थे, जिन्होंने उस युद्ध की पूरी प्लानिंग की थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भी इस योजना की भनक तक नहीं लगी थी।

कारगिल युद्ध हारने के बाद मुशर्रफ ने नवाज शरीफ को कुर्सी से बेदखल कर दिया था

कारगिल युद्ध में मुंह की खाने के बाद पाकिस्तान में तख्ता पलट हुआ और नवाज शरीफ को कुर्सी से बेदखल कर दिया गया। सत्ता से दूरी बनाने के वर्षों बाद नवाज शरीफ ने बताया कि कैसे पाकिस्तान की सेना ने कश्मीर मुद्दा सुलझने नहीं दिया।

पाकिस्तान में एक अखबार के राजनीतिक संपादक रहे सुहैल वड़ाएच ने नवाज शरीफ से बातचीत पर किताब ‘गद्दार कौन’ लिखी है। इस किताब में नवाज शरीफ ने सुहैल को बताया कि उन्हें कारगिल के बारे में कुछ नहीं बताया गया। उन्हें वाजपेयी (तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री) के टेलीफोन से पता चला था कि उनकी (पाकिस्तान) सेना करगिल में लड़ रही है।

शरीफ ने कहा… ‘बताइए हमारी भारत से बातचीत चल रही थी और मेरे पीठ पीछे कारगिल पर चढ़ाई कर दी गई। हमें करीब पांच महीने बाद बताया गया। फिर यह कहा गया कि सेना खुद आक्रमण में शामिल नहीं, केवल जिहादी-मुजाहिदीन लड़ रहे हैं। जब करगिल वॉर हुआ तो पूरी नॉर्दन लाइन इनफेंट्री उड़ गई। तब मैंने मुशर्रफ से पूछा कि आपने तो कहा था कि किसी फौजी की जान नहीं जाएगी तो वह बोले भारतीय सेना कार्पेट बॉम्बिंग कर रही है। जब भारत बमबारी करता था तो मोर्चों के ऊपर कुछ नहीं होता था। लोगों के सिर उड़ जाते थे।’

4 सैन्य अधिकारियों के अलावा किसी को भी कारगिल ऑपरेशन की भनक नहीं थी

नवाज शरीफ के अनुसार, परवेज मुशर्रफ, चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल अजीज, नॉर्दर्न जोन की कमान संभाल रहे जनरल महमूद व नॉर्दर्न जोन के डिवीजन कमांडर जावेद हसन के अलावा किसी को भी कारगिल ऑपरेशन की भनक तक नहीं थी। प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री, रक्षा सचिव, नेवल चीफ, चीफ एयर स्टाफ, किसी को इस ऑपरेशन की जानकारी नहीं थी।

तब रात डेढ़ बजे क्लिंटन ने अटल साहब को फोन किया

नवाज शरीफ बताते हैं, ‘जब युद्ध छिड़ा तो कुछ दिन बाद मुशर्रफ मेरे पास आए और बोले मामला काफी बिगड़ गया है। हमारी चोटियां भारत के कब्जे में जा रही हैं। मुझ पर समस्या का समाधान निकालने का दबाव बनाने लगे। तब मैंने सोचा अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से बात की जाए। वही दोनों देशों के बीच युद्ध विराम करा सकते हैं, नहीं तो पाकिस्तान बहुत कुछ खो देगा।’

शरीफ ने आगे कहा, ‘मैं क्लिंटन से मिलने अमेरिका गया। उनसे युद्ध रुकवाने के लिए कहा। उन्होंने रात डेढ़ बजे वाजपेयी साहब से फोन पर बात की। उन्होंने बताया कि नवाज शरीफ यहां हैं। मैंने शरीफ से कहा था कि हम जंग रुकवाने के लिए तैयार हैं। जवाब में भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति से कहा – जंग पाकिस्तान ने शुरू की है। उसकी इच्छा है तो वह बंद करे, हमें कोई परवाह नहीं।’

सजा देने की बजाय मुशर्रफ को ईनाम दे दिया

नवाज शीरफ ने बताया, ‘कारगिल युद्ध छेड़ने पर पाकिस्तान दुनिया के निशाने पर था। उसे आलोचनाओं का सामना करना पड़ा रहा था। युद्ध छेड़ने के फैसले पर उसकी बदनामी हो रही थी। युद्ध रुकने के बाद मुशर्रफ मुझे गालियां देते थे। मुशर्रफ एंड कम्पनी ने सेना में संदेश दिया कि वह कश्मीर लेने गए थे लेकिन नवाज शरीफ ने उन्हें रोक दिया।’

किताब के अनुसार इन सबके बाद भी नवाज शरीफ ने परवेज मुशर्रफ पर काररवाई करने की बजाय उन्हें ज्वॉइंट चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। शरीफ ने कहा, ‘मुशर्रफ, कारगिल फोबिया के शिकार हो गए थे। उन्हें लग रहा था कि उन्हें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ की पोजीशन से हटाकर चेयरमैन बना दिया जाएगा। उनकी जगह किसी नए को आर्मी चीफ बनाया जाएगा, लेकिन मैंने सब कुछ भुला दिया। इतनी बड़ी गलती के बाद भी मैंने उन्हें माफ कर दिया।’

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