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केदारनाथ पर मंडरा रहा है खतरा, पिछले नौ दिनों में तीन बार आया एवलांच- रिसर्च में जुटी टीमें

केदारनाथ पर मंडरा रहा है खतरा, पिछले नौ दिनों में तीन बार आया एवलांच- रिसर्च में जुटी टीमें

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नई दिल्ली, 5 अक्टूबर। देवभूमि के रूप में जानी जाने वाली उत्तराखंड की धरती पर बड़ी प्राकृतिक आपदा होनी की आशंका है। कुदरत बर्फीला हमला कर सकती है। दरअसल, केदारनाथ धाम के पास नौ दिनों में तीन बार एवलांच आ चुके हैं। हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक इसके कारणों को खोज रहे हैं। पर्वतों के शिखर पर जमा बर्फ जब अपनी जगह से खिसकने लगती है और तेजी से नीचे गिरने लगती है तो इसे एवलांच कहते हैं। पिछले शनिवार (1 अक्टूबर) को केदारनाथ में एवलांच आया था। केदारनाथ धाम से करीब सात किलोमीटर दूर पहाड़ से हजारों टन बर्फ खिसककर नीचे आ गिरी थी। वहीं, पिछले 22 सितंबर को केदारनाथ से पांच किलोमीटर ऊपर चौराबाड़ी ताल के पास ग्लेशियर के कैचमैंट में एवलांच आया था।

  • वैज्ञानिक शोध में जुटे

बताया जा रहा है कि इन एवलांच में कोई जनहानि नहीं हुई लेकिन स्थानीय लोग सहमे हुए हैं। सुरक्षा की दृष्टि से प्रशासन ने स्थानीय लोगों से सतर्क रहने के लिए कहा है और एनडीआरएफ को अलर्ट किया है। केदारनाथ धाम के पास बार-बार एवलांच आने पर वैज्ञानिक भी चौकन्ने हो गए हैं। चौराबाड़ी ग्लेशियर पर रिसर्च के लिए वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान और रिमोट सेंसिंग संस्थान के वैज्ञानिक चौराबाड़ी पहुंच गए हैं। चौराबाड़ी ग्लेशियर ने ही 2013 में केदारनाथ धाम में तबाही मचाई थी। उस तबाही को याद कर आज भी बदन सिहर उठता है।

  • क्या हुआ था 2013 को?

2013 में 13 से 17 जून के बीच बारिश थम नहीं रही थी। इससे चौराबाड़ी ग्लेशियर पिघलने लगा था, जिससे मंदाकिनी नदी में उफान आ गया था। नदी की बाढ़ प्रलय साबित हुई। इसकी चपेट में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पश्चिमी नेपाल का हिस्सा भी आया था। इसके कारण भूस्खलन भी हुए थे। सैलाब में क्विंटलों वजनी पत्थर बहते हुए तबाही मचा रहे थे।

केदारनाथ धाम में आई जल प्रलय ने लगभग 5000 जिंदगियां लील ली थीं। डेढ़ सौ ज्यादा छोट-बड़े पुल बह गए थे। सैकड़ों किलोमीटर की सड़कें खत्म हो गई थी। आंकड़ों के मुताबिक, 13 हजार हेक्टेयर से ज्यादा कृषि भूमि को नुकसान हुआ था, नौ राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य के 35 हाईवे, 2385 सड़कें, 86 वाहन पुल और 172 छोट-बड़े पुल बह गए थे या उन्हें नुकसान पहुंचा था। इस आपदा में लोगों को संभलने का मौका तक नहीं मिल पाया था।

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