नई दिल्ली, 14 सितम्बर। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने किसान आंदोलन के कारण लोगों, औद्योगिक इकाइयों और कंपनियों को हो रही दिक्कतों से संबंधित शिकायतों का संज्ञान लेते हुए दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। आयोग ने कहा है कि उसे इस संबंध में अनेक शिकायतें मिली हैं, जिनमें आरोप लगाया गया है कि आंदोलन के कारण रास्तों के बंद होने से छोटी बड़ी 900 से अधिक औद्योगिक इकाइयों पर प्रभाव पड़ा है।
आंदोलन के कारण सड़क मार्ग भी प्रभावित हुआ है जिससे आम लोगों, रोगियों और शारीरिक रूप से अक्षम लोगों तथा वरिष्ठ नागरिकों को विशेष रूप से परेशानी हो रही है। आयोग को यह भी रिपोर्ट मिली है कि आंदोलनों स्थलों के पास बैरिकेड लगे होने के कारण लोगों को बहुत लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। शिकायतों का संज्ञान लेते हुए आयोग ने उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान के मुख्य सचिवों तथा पुलिस महानिदेशकों को इस संबंध में की गई कार्रवाई का ब्यौरा देने को कहा है। आयोग को मिली शिकायतों में यह भी आरोप लगाया गया है कि आंदोलन स्थलों पर कोरोना प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया जा रहा है साथ ही आसपास रहने वाले लोगों को रास्ते बंद होने के कारण अपने घरों में ही कैद होना पड़ रहा है।
आयोग का मानना है कि विरोध प्रदर्शन मानव अधिकार का मुद्दा है लेकिन साथ ही इसके कारण अन्य लोगों के मानवाधिकार प्रभावित होने पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है। आयोग ने इन राज्यों से किसान आंदोलन के कारण औद्योगिक और व्यवसायिक कामकाज पर हुए प्रतिकूल प्रभाव का आकलन करने और यातायात सेवाओं के बाधित होने के कारण आम लोगों पर पड़े बोझ तथा खर्च पर 10 अक्टूबर तक रिपोर्ट देने को कहा है।
आयोग ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण से भी आंदोलन स्थलों पर कोरोना प्रोटोकॉल के पालन के बारे में रिपोर्ट मांगी है। उसने आंदोलन स्थल पर एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के साथ सामूहिक दुष्कर्म से संबंधित मामले में मुआवजे के बारे में भी जानकारी देने को कहा है। इसके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली स्कूल ऑफ सोशल वर्क से भी आंदोलन के कारण लोगों की आजीविका और उनके जीवन पर हुए असर के बारे में सर्वेक्षण करवाने को भी कहा गया है।