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बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, ADR ने EC के आदेश को दी चुनौती

बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, ADR ने EC के आदेश को दी चुनौती

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नई दिल्ली, 5 जुलाई। बिहार में इसी वर्ष प्रस्तावित विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण अभियान को लेकर एसोसिएशन ऑफ डेमेक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। याचिका में भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के आदेश को रद करने की मांग की गई है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 14 19 21 325 और 326 का उल्लंघन बताया गया है।

याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग का यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 14,19,21,325 और 326 और जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 और उसके रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टोर्स रूल 1960 के नियम 21ए का उल्लंघन करता है, इसलिए चुनाव आयोग का बिहार में मतदाता सूची का विशेष सघन पुनरीक्षण करने का 24 जून का आदेश रद किया जाए।

मताधिकार से वंचित हो सकते हैं लाखों मतदाता  

एडीआर ने दाखिल याचिका में यह भी कहा है कि यदि चुनाव आयोग का यह आदेश रद नहीं किया जाता तो यह बिना उचित प्रक्रिया के मनमाने ढंग से लाखों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर सकता है। इससे देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कमजोर होगा, जो कि संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। याचिका में यह भी कहा गया है कि इसमें जिस तरह उचित प्रक्रिया का पालन किए बगैर कम समय में जो दस्तावेज और चीजें मांगी जा रही हैं, उससे लाखों वास्तविक मतदाता मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं। वे मतदान के अधिकार से वंचित हो सकते हैं।

कई नियमों का बताया गया उल्लंघन

याचिका में कहा गया है कि इस आदेश के जरिए चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में शामिल होने की पात्रता साबित करने की जिम्मेदारी नागरिकों पर डाल दी है। आधार और राशन कार्ड जैसे सामान्य पहचान दस्तावेजों को बाहर करके यह प्रक्रिया हाशिए पर पड़े समुदायों और गरीबों पर प्रतिकूल असर डालती है।

इस प्रक्रिया में मतदाताओं के लिए न सिर्फ अपनी नागरिकता साबित करने के लिए बल्कि अपने माता-पिता की नागरिकता साबित करने के लिए भी दस्तावेज पेश करने की आवश्यकता से अनुच्छेद 326 का उल्लंघन होता है क्योंकि इन आवश्यकताओं को पूरा न करने पर उसका नाम मतदाता सूची से बाहर हो सकता है।

 

याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण को लागू करने के लिए अव्यवहारिक समय सीमा निर्धारित की है, विशेषकर निकट में नवम्बर, 2025 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों को देखते हुए। याचिकाकर्ता का कहना है कि ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनका नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं था और जिनके पास विशेष सघन पुनरीक्षण आदेश में मांगे गए दस्तावेज नहीं हैं।

कुछ लोग इन दस्तावेजों को प्राप्त करने में सक्षम हो सकते हैं, लेकिन तय कम समय सीमा उनके लिए बाधा बन सकती है। यह भी कहा गया है कि बिहार ऐसा राज्य है, जहां गरीबी और पलायन का उच्च स्तर है। यहां एक बड़ी आबादी है, जिसके पास जन्म प्रमाणपत्र या अपने माता-पिता के रिकार्ड जैसे आवश्यक दस्तावेजों तक पहुंच नहीं है।

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