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स्वामी प्रसाद मौर्य का सिर काटने का ‘फतवा’ जारी करने वाले राजू दास मोहन भागवत पर भी भड़के, दे दी चेतावनी

स्वामी प्रसाद मौर्य का सिर काटने का ‘फतवा’ जारी करने वाले राजू दास मोहन भागवत पर भी भड़के, दे दी चेतावनी

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लखनऊ, 7 फरवरी। रामचरितमानस को लेकर उठा विवाद अभी थमा भी न था कि संघ प्रमुख मोहन भागवत के पंडितों पर दिए बयान से बखेड़ा खड़ा हो गया। धर्म की लड़ाई अब जाति पर आ गई है। मोहन भागवत के बयान पर अयोध्या के हनुमानगढ़ी के महंत राजू दास ने पलटवार किया है। उन्होंने कहा कि मोहन भागवत के विचार से हम सहमत नहीं है। लोगों को कर्म के हिसाब से उपाधि दी जाती है। उन्होंने चेतावनी भी दी कि कोई समाज को बांटने की साजिश न करे।

महंत राजू दास अम्बेडकरनगर में आयोजित श्रवण महोत्सव कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर आए थे। इस दौरान मीडिया से बात करते हुए राजू दास ने कहा कि मैं मोहन भागवत से सहमत नही हूं। राजू दास ने कहा कि मैं पूछता हूं माननीय मोहन भागवत जी से, क्या जो प्रकृति ने, पर्यावरण ने बनाया है, समाज ने बनाया है, ये सारी चीजें ब्राह्मणों ने बनाया है। आप देखिए जो प्रकृति ने तमाम सारी चीजें बनाई हैं, जैसे वृक्षों में देख लीजिए, अनाजों में देख लीजिए, जैसे- मक्के के बीज पर गेहूं नहीं उगाए जा सकते हैं। धान में मक्का नहीं उगाया जा सकता, जिस प्रकार से आम में बबूल नहीं हो सकता है। ये सभी व्यवस्था प्रकृति के द्वारा बनाई गई है।

उन्होंने कहा कि हमारे यहां कर्म का विधान है। कर्म के अनुसार उन्हें जाति की उपाधि दी जाती है। इसके नाते हम उनके इस बात का खण्डन करते हैं और उनकी बात का पुरजोर विरोध और निंदा करते हैं। कोई समाज को बांटने की साजिश न करे। यह सनातन संस्कृति वाला देश है। हम सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया, विश्व बंधुत्व के साथ काम करेंगे। सड़ी हुई जातिवादी मानसिकता को थोप कर हिंदुओं को बांटने की साजिश चल रही है। बता दें कि इससे पहले रामचरितमानस को ‘बकवास’ ग्रंथ बताने पर राजू दास ने ऐलान किया था कि वह स्वामी प्रसाद मौर्य का सिर काटने वाले को 21 लाख रुपये देंगे।

  • दलितों और पिछड़ों को साधने की सियासत!

मोहन भागवत के बयान को लेकर भले ही उनकी आलोचना हो रही है लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि संघ प्रमुख ने एक सधी रणनीति के तहत पंडितों पर बयान दिया है। जिस तरीके से स्वामी प्रसाद मौर्या ने रामचरित मानस की चौपाई को आधार बना कर दलितों और पिछड़ों को साधने का प्रयास किया है, उससे हिंदुत्व के एजेंडे में सेंध लगती। पिछड़ों और दलितों को साधे रखने के लिए ही मोहन भागवत ये मुद्दा उठाया और जो उंगली धर्म की तरफ उठ रही थी उसे ब्राह्मणों की तरफ मोड़ दिया।

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