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देश में समान नागरिक संहिता की जरूरत, इसे लागू करने का यह सही समय : दिल्ली हाई कोर्ट

देश में समान नागरिक संहिता की जरूरत, इसे लागू करने का यह सही समय : दिल्ली हाई कोर्ट

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नई दिल्ली, 9 जुलाई। दिल्ली उच्च न्यायालय ने देश में समान नागरिक संहिता (यूनिफार्म सिविल कोड) की जरूरत पर बल दिया है और साथ ही यह भी कहा है कि इसे लागू करने का यह सही समय है। शुक्रवार को तलाक के एक मामले में फैसला सुनाते हुए अदालत ने यह टिप्पणी की।

जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने अपने फैसले में कहा कि आज का हिन्दुस्तान धर्म, जाति, कम्युनिटी से ऊपर उठ चुका है। आधुनिक भारत में धर्म, जाति की बाधाएं तेजी से टूट रही हैं। तेजी से हो रहे इस बदलाव की वजह से अंतरधार्मिक और अंतरजातीय विवाह या फिर विच्छेद यानी तलाक में दिक्कत भी आ रही है।

उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि आज की युवा पीढ़ी को इन दिक्कतों से जूझना न पड़े, इस लिहाज से देश मे समान नागरिक संहिता लागू किया जाना चाहिए। आर्टिकल 44 में यूनिफार्म सिविल कोड की जो उम्मीद जताई गई थी, अब उसे केवल उम्मीद नहीं रहना चाहिए, बल्कि उसे हकीकत में बदल देना चाहिए।

तलाक के एक मामले में फैसले के वक्त कोर्ट ने की टिप्पणी
जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह की यह टिप्पणी उस वक्त आई, जब न्यायालय के सामने यह सवाल खड़ा हो गया कि तलाक को हिन्दू मैरिज एक्ट के मुताबिक माना जाए या फिर मीणा जनजाति के नियम के मुताबिक।

दरअसल, पति हिन्दू मैरिज एक्ट के मुताबिक तलाक चाहता था जबकि पत्नी का कहना था कि वो मीणा जनजाति से आती है, लिहाजा उस पर हिन्दू मैरिज एक्ट लागू नहीं होता। इस वजह से उसके पति द्वारा दायर फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी खारिज की जाए।

पति ने हाई कोर्ट में पत्नी की इसी दलील के खिलाफ अर्जी दायर की थी। कोर्ट ने पति की अपील को स्वीकार करते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की जरूरत महसूस की। अदालत ने यह भी कहा कि इस फैसले को कानून मंत्रालय के पास भेजा जाए ताकि वह इस पर विचार कर सके।

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