अमेरिका ने 132 वर्षों बाद इतिहास दोहराया, डोनाल्ड ट्रंप दूसरी बार चुने गए राष्ट्रपति
वॉशिंगटन, 6 नवम्बर। दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र यानी अमेरिका में 132 वर्षों बाद इतिहास ने खुद को दोहराया, जब राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार 78 वर्षीय डोनाल्ड ट्रंप ने जीत दर्ज कर ली। ट्रंप ने अपनी डेमोक्रेट प्रतिद्वंद्वी व निर्वतमान उप राष्ट्रपति 60 वर्षीया कमला हैरिस को पछाड़ते हुए जीत के लिए जरूरी 270 इलेक्टोरल वोट का आंकड़ा पार कर लिया है।
उल्लेखनीय है कि ट्रंप 2016 में पहली बार राष्ट्रपति चुनाव जीते थे, लेकिन 2020 में उन्हें जो बाइडेन से हार का सामना करना पड़ा था। फिलहाल इस बार उन्होंने पूरी दमदारी से चुनाव लड़ा और अमेरिकी इतिहास में पहली महिला राष्ट्रपति बनने के लिए प्रयासरत कमला हैरिस के अरमानों पर पानी फेर दिया।
ग्रोवर क्लीवलैंड के बाद अब दो गैर-लगातार कार्यकाल वाले पहले राष्ट्रपति
अमेरिका मे 132 वर्षों बाद ऐसा हुआ, जब कोई व्यक्ति दूसरी बार राष्ट्रपति बना है। इससे पहले ग्रोवर क्लीवलैंड 1884 और फिर 1892 में राष्ट्रपति बने थे। ग्रोवर के बाद अब ट्रंप दो गैर-लगातार कार्यकाल वाले पहले राष्ट्रपति होंगे।
ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त समर्थन ट्रंप की जीत की अहम वजह
वोक्स की रिपोर्ट के अनुसार देश के 47वें राष्ट्रपति के तौर पर डोनाल्ड ट्रंप की जीत की एक अहम वजह उनका ग्रामीण क्षेत्रों में अपने समर्थन को बढ़ाने में कामयाब रहना है। ऐसी उम्मीद पहले से जा रही थी कि ट्रंप ग्रामीण क्षेत्रों में हावी रहेंगे, लेकिन सवाल था कि क्या वह 2020 के मुकाबले बड़े अंतर से जीते पाएंगे या नहीं। नतीजों के बाद साफ है कि उन्होंने ऐसा किया है। ट्रंप ने इंडियाना, केंटकी, जॉर्जिया और उत्तरी कैरोलिना में समर्थन बढ़ाते हुए अपना दम दिखाया है।
कस्बाई इलाकों में कमजोर पड़े डेमोक्रेट्स
ग्रामीण इलाकों में ट्रंप ने शानदार प्रदर्शन किया। ऐसे में इस फासले को पाटने के लिए मार्जिन डेमोक्रेटिक कमला हैरिस को शहरी केंद्रों के साथ-साथ आसपास के उपनगरों में भी बड़ी बढ़त हासिल करनी थी। 2016 से ही ये उपनगरीय इलाकों में डेमोक्रेट्स को बढ़त मिलती रही है, लेकिन हैरिस को इन इलाकों में अपेक्षित भारी बढ़त नहीं मिल पाई। कई इलाकों में तो हैरिस का अंतर जो बाइडेन से भी कम रहा।
लैटिन मतदाताओं के बीच डेमोक्रेटिक पार्टी को कम समर्थन मिला
हैरिस की हार और ट्रंप की जीत का तीसरा कारण विशेष रूप से लैटिन मतदाताओं के बीच डेमोक्रेटिक पार्टी को समर्थन कम होना रहा है। ट्रंप को गैर-श्वेत मतदाताओं का भी समर्थन मिला है। खासतौर से बड़ी लैटिन आबादी वाले स्थानों से कुछ नाटकीय बदलाव दिखे हैं। इसका बड़ा उदाहरण मियामी-डेड काउंटी मे देखने को मिला है। एक बड़ी क्यूबा अमेरिकी आबादी वाला ये इलाका डेमोक्रेट का गढ़ था। यहां पर ट्रंप ने दोहरे अंकों में जीत हासिल की है।
डेमोक्रेट के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी
वर्ष 2022 में महामारी के बाद से एक ऐसा ट्रेंड देखा गया है कि सत्ताधारी पार्टियों को सत्ता बरकरार रखने के लिए संघर्ष करना पड़ा है। जापान, ऑस्ट्रिया, ब्रिटेन, इटली और जर्मनी जैसे देशों में सत्तारूढ़ दल कमजोर हुए या सरकार से बाहर हो गए। अमेरिका में भी बाइडेन के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी कहीं ना कहीं हैरिस की हार की वजह बनी है।
रिपब्लिकन ने ज्यादा भावनात्मक मुद्दे उठाए
ट्रंप की जीत का उल्लेखनीय पहलू यह भी है कि रिपब्लिकन ने ज्यादा भावनात्मक मुद्दे उठाए। मतदाता अर्थव्यवस्था और आप्रवासन को अपने दो शीर्ष मुद्दों के रूप में रेटिंग देते हैं। इन मामलों को डोनाल्ड ट्रंप ने जमकर उठाया और अमेरिकियों ने भी डेमोक्रेट के मुकाबले रिपब्लिकन पर भरोसा किया।