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उद्धव ठाकरे गुट पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, शिंदे गुट को ‘असली शिवसेना’ घोषित करने के स्पीकर के फैसले को दी चुनौती

उद्धव ठाकरे गुट पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, शिंदे गुट को ‘असली शिवसेना’ घोषित करने के स्पीकर के फैसले को दी चुनौती

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नई दिल्ली, 15 जनवरी। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट के पक्ष में पिछले सप्ताह महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सोमवार को दाखिल याचिका में शिवसेना (UBT) ने स्पीकर के 10 जनवरी के फैसले पर अंतरिम रोक लगाने की शीर्ष अदालत से मांग की है।

याचिका में कहा गया है कि दसवीं अनुसूची का उद्देश्य उन विधायकों को अयोग्य ठहराना है, जो अपने राजनीतिक दल के खिलाफ काम करते हैं। हालांकि, यदि अधिकतर विधायकों को राजनीतिक दल माना जाता है तो वास्तविक राजनीतिक दल के सदस्य बहुमत विधायकों की इच्छा के अधीन हो जाते हैं। यह पूरी तरह से संवैधानिक योजना के खिलाफ है और इसके परिणामस्वरूप इसे रद किया जा सकता है।

याचिका में दलील दी गई है कि अधिकतर विधायकों को राजनीतिक दल की इच्छा का प्रतिनिधित्व करने वाला मानकर स्पीकर ने वास्तव में विधायक दल को राजनीतिक दल के बराबर मान लिया है, जो कि सुभाष देसाई के मामले में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानून के दायरे में है। याचिका में कहा गया है, ‘विधायक दल कोई कानूनी इकाई नहीं है। यह किसी राजनीतिक दल के टिकट पर चुने गए विधायकों के समूह को दिया गया एक नामकरण मात्र है, जो अस्थायी अवधि के लिए सदन के सदस्य होते हैं।’

शिवसेना (UBT) की याचिका में तर्क दिया गया कि दसवीं अनुसूची अयोग्यता के बचाव के रूप में अनुमति देती है, यदि विधायकों का एक समूह, बशर्ते कि वे अपने विधायक दल के कम से कम 1/3 शामिल हों, अपने राजनीतिक दल के निर्देशों के विपरीत कार्य करते हैं।

याचिका में कहा गया है कि ‘यह ‘स्प्लिट’ का बचाव था, जो पैरा 3 के तहत प्रदान किया गया था। हालांकि, जब पैरा 3 को दसवीं अनुसूची से हटा दिया गया तो इस बचाव को जान बूझकर समाप्त कर दिया गया। आक्षेपित निर्णय ने, यह मानते हुए कि अधिकतर विधायक राजनीतिक दल की इच्छा का प्रतिनिधित्व करते हैं, वास्तव में विभाजन की रक्षा को पुनर्जीवित कर दिया है, जिसे जान बूझकर छोड़ दिया गया था।’

स्पीकर के फैसले के पहलू पर याचिका में कहा गया है कि फैसले संवैधानिक कानून के इस हितकारी सिद्धांत के विपरीत हैं क्योंकि वे केवल राजनीतिक दल से संबंधित विधायकों के बहुमत को जीतकर, दलबदल की बुराई को बेरोकटोक करने की अनुमति देते हैं। याचिका में कहा गया है कि ‘वास्तव में, दलबदल के कृत्य को दंडित करने के बजाय, आक्षेपित निर्णय दलबदलुओं को यह कहकर पुरस्कृत करते हैं कि वे राजनीतिक दल में शामिल हैं।’

याचिका में कहा गया है, ‘स्पीकर ने यह मानकर गलती की है कि शिवसेना के अधिकतर विधायक शिवसेना राजनीतिक दल की इच्छा का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह सुभाष देसाई के फैसले के पैरा 168 के अनुरूप है, जिसमें कहा गया था कि ‘स्पीकर को अपने निर्णय को आधार नहीं बनाना चाहिए कि कौन सा समूह राजनीतिक दल का गठन करता है, इस बात पर आंख मूंदकर सराहना करते हुए कि किस समूह के पास विधानसभा में बहुमत है।’

याचिकाकर्ता ने कहा है कि स्पीकर का यह निष्कर्ष कि 2018 नेतृत्व संरचना को यह निर्धारित करने के लिए मानदंड के रूप में नहीं लिया जा सकता है कि कौन सा गुट राजनीतिक दल का प्रतिनिधित्व करता है, बिल्कुल विकृत है और सुभाष देसाई द्वारा निर्धारित कानून के तहत है। इसमें कहा गया है कि स्पीकर ने यह मानकर गलती की है कि पार्टी अध्यक्ष को राजनीतिक दल की इच्छा का प्रतिनिधित्व करने के लिए नहीं लिया जा सकता है।

याचिका में कहा गया है, ‘स्पीकर ने यह मानने में गलती की है कि शिंदे गुट ने यह दिखाने के लिए निर्विवाद सबूत पेश किए हैं कि वे शिवसेना के लक्ष्यों और उद्देश्यों का पालन करते हैं। यह पूर्णतः निराधार एवं विकृत निष्कर्ष है।’

उद्धव ठाकरे ने उन सांसदों को अयोग्य ठहराने की याचिका खारिज करने के स्पीकर के फैसले को चुनौती दी है, जो जून में (तत्कालीन) अविभाजित शिवसेना छोड़कर शिंदे से अलग हुए गुट में शामिल हो गए थे। नार्वेकर ने अविभाजित पार्टी के संविधान के 1999 संस्करण को आधार बनाते हुए शिंदे गुट का पक्ष लिया था, जिसने उद्धव ठाकरे को शिंदे को निष्कासित करने का अधिकार नहीं दिया था, जिसका अर्थ है कि वह शिवसेना के सदस्य बने रहेंगे।

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