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राष्ट्र के नाम संबोधन में बोले राष्ट्रपति कोविंद – कोरोना से लड़ाई बड़ी चुनौती, अब भी सतर्क रहने की जरूरत

राष्ट्र के नाम संबोधन में बोले राष्ट्रपति कोविंद – कोरोना से लड़ाई बड़ी चुनौती, अब भी सतर्क रहने की जरूरत

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नई दिल्ली, 25 जनवरी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 73वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश को संबोधित किया।  राष्ट्र के नाम संबोधन में देशवासियों को गणतंत्र दिवस की बधाई देते हुए कहा, ‘गणतन्त्र दिवस का दिन उन महानायकों को याद करने का अवसर भी है, जिन्होंने स्वराज के सपने को साकार करने के लिए अतुलनीय साहस का परिचय दिया तथा उसके लिए देशवासियों में संघर्ष करने का उत्साह जगाया।’

भारत को गौरवशाली बनाने की नेताजी की महत्वाकांक्षा हमारे लिए प्रेरणास्रोत

राष्ट्रपति ने कहा, “दो दिन पहले, 23 जनवरी को हम सभी देशवासियों ने ‘जय-हिन्द’ का उद्घोष करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती पर उनका पुण्य स्मरण किया है। स्वाधीनता के लिए उनकी ललक और भारत को गौरवशाली बनाने की उनकी महत्वाकांक्षा हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है। हम अत्यंत सौभाग्यशाली हैं कि हमारे संविधान का निर्माण करने वाली सभा में उस दौर की सर्वश्रेष्ठ विभूतियों का प्रतिनिधित्व था। वे लोग हमारे महान स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख ध्वज-वाहक थे।”

कोरोना नियमों का पालन अब राष्ट्र धर्म बन गया है

कोरोना महामारी का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति कोविंद ने कहा, ‘कोरोना में अनगिनत परिवार, भयानक विपदा के दौर से गुजरे हैं। हमारी सामूहिक पीड़ा को व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। लेकिन एकमात्र सांत्वना इस बात की है कि बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकी है। कोविड महामारी का प्रभाव अब भी व्यापक स्तर पर बना हुआ है, अतः हमें सतर्क रहना चाहिए और अपने बचाव में तनिक भी ढील नहीं देनी चाहिए। हमने अब तक जो सावधानियां बरती हैं, उन्हें जारी रखना है।’

देशवासियों से कोरोना नियमों का पालन करने की अपील करते हुए उन्होंने कहा, ‘यह आज राष्ट्र धर्म बन गया है और हमें तब तक इसे निभाना है, जब तक की कोरोना का संकट दूर नहीं हो जाता है।’

महात्मा गांधी ने देशवासियों को पूर्ण स्वराज दिवस मनाने का तरीका समझाया था

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को याद करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा, “सन् 1930 में महात्मा गांधी ने देशवासियों को ‘पूर्ण स्वराज दिवस’ मनाने का तरीका समझाया था। यथाशक्ति रचनात्मक कार्य करने का गांधीजी का यह उपदेश सदैव प्रासंगिक रहेगा। महात्मा गांधी चाहते थे कि हम अपने भीतर झांक कर देखें, आत्म-निरीक्षण करें और बेहतर इंसान बनने का प्रयास करें और उसके बाद बाहर भी देखें, लोगों के साथ सहयोग करें और एक बेहतर भारत तथा बेहतर विश्व के निर्माण में अपना योगदान करें।”

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