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भारतके सर्वोच्च न्यायालयके विश्वास को तोड़नेवाले किसी भी ‘मीडिया ट्रायल’ पर लगे रोक

भारतके सर्वोच्च न्यायालयके विश्वास को तोड़नेवाले किसी भी ‘मीडिया ट्रायल’ पर लगे रोक

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भारतके मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई पर लगाये गये जातीय शोषण के आरोंपोंसे जुडी खबरें प्रिन्ट मीडिया और इलेक्ट्रोनिक मीडियासे लेकर ओनलाईन प्लेटफोर्म्स पर प्रकाशित करने पर रोक लगानेको लेकर दिल्ही हाईकोर्टमें आवेदन दर्ज़ किया गया है। यह आवेदनमें जस्टिस गोगोईसे जुडी किसी भी जानकारी को प्रकाशित करने पर रोक लगाने की मांग की गई है। इस मुद्दे पर अगली सुनवाई 29 एप्रिल को होगी।

NGO एन्टि करप्शन काउन्सिल द्वारा दर्ज़ किये गये यह आवेदनमें कहा गया है की इस प्रकारकी खबरें भारत की न्यायप्रक्रिया पर असर करती हैं। यह आवेदनमें कायदा मंत्रालय, माहिती एवं प्रसारण मंत्रालय, दिल्ही सरकार, प्रेस काउन्सिल ऑफ इन्डिया, ओपरेशनल हेड वोट्सएप और ओपरेशनल हेड गूगल को पक्षकार बनाया गया है।

यह बात महत्वपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्टके मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के विरुद्ध यौन उत्पीडन के आरोपोंकी जाँच के लिये गठित की गई तीन सदस्यों की जाँच समितिमें जस्टिस इंदु मल्होत्राको भी शामिल किया गया है। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्टने इस मामलेमें विभागीय जाँच के आदेश देते हुए तीन सिटिंग जज- जस्टिस एस.ए. बोबडे, जस्टिस एन.वी. रमन्ना और जस्टिस इंदिका बेनर्जी की समिति का गठन किया है। लेकिन, जस्टिस एन.वी. रमन्नाने जाँचमें शामिल होने से इन्कार कर दिया। षड्यंत्र के दावोंसे जुडे हुए मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्टकी बेंचने सख्त रवैया अपनाया है। सुप्रीम कोर्टने साफ़ तौर पर कहा है कि सर्वोच्च अदालत कुछ पावरफुल और पैसेवाले लोगोंकी मरज़ीसे नहीं चल सकती। सुप्रीम कोर्टने चिंता जताई है कि पिछले तीन-चार सालोंसे सुप्रीम कोर्टको निशान बनाया जा रहा है।

आवेदनमें कहा गया है कि पूरे किस्सेमें कथित राष्ट्रविरोधी तत्व शामिल है और अगर यह आरोपोंको प्रकाशित होने से नहीं रोका गया तो लोगोंका भारत की न्यायव्यवस्था परसे विश्वास उठ जायेगा। उससे देश और न्यायतंत्रको बड़ा नुकसान होगा।

एक ज़िम्मेदार डिजिटल मीडिया के तौर पर WWW.REVOI.IN  सुप्रीम कोर्टके आदरणीय मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई के उपर लगाये गये आरोपोंको कुछ मीडिया प्लेटफोर्म द्वारा दिखाये गये न्युझ के झांसेमें नहीं आया। एक जागृत मीडिया के तौर पर WWW.REVOI.IN भारतकी न्यायव्यवस्था, भारतके न्यायाधीशों और न्यायव्यवस्था से जुडे सभी लोगों के द्वारा पूरे तंत्र पर जनताका विश्वास अखंड रहे और उसे घटाने के किसी षड्यंत्र का हिस्सा बनने के लिये तैयार नहीं है।

भारतकी न्यायव्यवस्था दुनियामें साबित हुई सबसे ताकतवर और तटस्थ व्यवस्था है। भारतके न्यायतंत्रमें न्याय करने की और भारतके न्यायाधीशोंमें न्याय तौलनेकी नैतिक क्षमता है। इस क्षमतामें भारतके लोगोंको थोडी सी भी आशंका नहीं है। दुनियाके देशोंमें भी उसके प्रति आदर है। लेकिन, जब भारतके मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई के सामने ऐसे गंभीर आरोप लगाकर उनके चारित्र्यहननकी कक्षापे उतरकर अगर कोई बड़ी ताकत इसमें लगी हुई है तो भारतके न्यायतंत्रके सार्वभौमत्वके सामने यह एक पडकार है।

भारतके न्यायतंत्रके सर्वोच्च पदों पर बैठे हुए लोगोंमें नैतिकता का संकट आज तक सामने नहीं आया। नैतिक मूलिय न्यायकी सुरक्षा और संवर्धन का काम करते हैं। भारतकी न्याय व्यवस्थामें भी नैतिक मूल्यों के साथ ही योग्य व्यक्तियां योग्य पदों पर पहुंचती है। लेकिन, ऐसे आरोप लगाकर इस सर्वोच्च पद पर बैठे हुए लोगोंका चरित्रहनन करके उनको देश व दुनियाकी नज़रोंमें गिरानेकी जो कोशिश हो रही है वह हलकी कक्षाका षड्यंत्र है।

भारतमें जब 2012में दिल्ही गेंगरेप की वारदात हुई, तब भारतके न्यायतंत्रने अपना फर्ज़ अच्छी तरहसे निभाया था। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स और भारतकी राजनीति की असर तले आंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसको नकारात्मक तरीके से देखा गया था। जिसकी वजहसे भारतकी छवि महिला विरोधी समाज के तौर पर उभारने का प्रयास किया गया था। भारतमें बलात्कार और महिलाओ विरुद्धके जातीय अपराध पूरी तरहसे बंध होने चाहिये और उसे किसी भी हालतमें स्वीकार नहीं किया जा सकता। लेकिन ऐसे अपराधोंकी मात्रा अमरिका, ब्रिटन सहित कथित विकसित देशोंकी तुलनामें वस्तीकी द्रष्टिसे कितना है उसकी भी चर्चा होनी चाहिये और उसके आंकडे भी सामने आने चाहिये।

कोई आंतरराष्ट्रीय मीडिया युके और दिल्हीके आंकडोंकी तुलना करके दुनियामें भारतको महिलाओंके प्रति अत्याचारोंका अड्डा साबित करे उससे कुछ लोगोंको कुछ समयके लिये गुमराह किया जा सकता है। लेकिन हर समय एसी बिनतार्किक दलीलोंसे कोई गुमराह नहीं होता। दिल्ही एक शहर है और युके एक देश है. तो युके और भारतकी वस्तीकी तुलना के आधारित यह आंकडोंकी तुलना तार्किक है।

खैर, भारतके चीफ जस्टिस रंजन गोगोईके आरोपोंकी बात करे तो, एक एसा संशोधन भी होना चाहिये कि जैसे आरोपकर्ता पीडित औरतकी पहचान गुप्त रखी जाती है उसी तरह भारतकी राज व्यवस्था, न्याय व्यवस्था या अन्य कोई बंधारणीय संस्था की विश्वसनीयता पर जोखिम आता है तब ऐसे केसमें आरोपीकी पहचान क्युं गुप्त नहीं रख सकते? क्युंकि एसे केसमें आरोपी जब तक निर्दोष साबित होता है तब तक मीडिया रिपोर्टिंग और मीडिया ट्रायलमें उस व्यक्तिका चरित्रहनन होता रहेता है।

किसिके भी साथ न्याय होना चाहिये, पर न्याय करते वक्त अन्याय भी नही होना चाहिये। भारतके इतिहासकी कुछ बड़ी घटनाओंमें 2002 का गोधराकांड और उसको बादके दंगोंका किस्सा जनताके सामने है। बेस्ट बेकरी कांड हो या बिल्किस बानूका केस हो, एसे केसीसमें क्या मीडिया-ट्रायल्स नहीं चलाए गये थे? क्या तब न्यायव्यवस्था पर प्रेशर बनाने की कोशिश नहीं की गई थी? WWW.REVOI.IN न्यायतंत्र के सामने एसा प्रेशर बनानेकी कोई भी प्रक्रिया से संमत नहीं है। कोई भी टिप्पणी के बिना घटना का आदर्श रिपोर्टिंग किया जा सकता है, लेकिन उससे न्यायतंत्र की न्यायिक प्रक्रिया पर किसी भी प्रकारसे प्रेशर नहीं बनाया जा सकता।

WWW.REVOI.IN यह सवाल भी उठाना चाहता है कि आदरणीय सुप्रीम कोर्टके माननीय मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई को निशान बनाने के पीछे कोई बडा राजकीय मुद्दा है, कोई धनिक लोग इसमें मिले हुए हैं या तो फिर आंतरराष्ट्रीय स्तरकी कोई साज़िश है, उसको पूर्ण रूपसे उजागर करके देशके सामने रखना चाहिए। जब तक यह मामले की संपूर्ण जाँच खतम नहीं होती तब तक एसे मामलोंका मीडिया कवरेज करके भारतके न्यायतंत्रका वस्त्राहरण होनेसे रोकना चाहिये।

जहाँ तक सवाल महिलाके साथ न्याय का है, तो अगर उसकी बातमें सच्चाई है तो उसकी जाँच सुप्रीम कोर्ट ज़रूर करेगी। उसके लिये किसी भी प्रकारकी टीका-टिप्पणी करके मुख्य न्यायाधीशको निशान बनानेकी किसीभी व्यक्तिको स्वतंत्रता नहीं होनी चाहिये। भारतीय मीडियामें न्युझ प्लान्ट होना अब सामान्य है। न्युझ प्लान्ट करनेका पूरा तंत्र भी भारतमें कुछ तत्वोंके द्वारा पूरजोशमें चलाया जा रहा है। एसे तंत्रोंकी चपेटमें भारतके स्थानिक भाषाके छोटे-बड़े अखबार, डिजिटल प्लेटफोर्म, सोशियल मीडिया और इलेक्ट्रोनिक मीडिया आ जाते हैं।

भारतके न्यायतंत्रमें विश्वास करनेवाले हर एक व्यक्ति को पता है कि आरोपकर्ता महिला के आरोप अगर सच्चे होंगे तो न्याय मिलेगा. लेकिन, न्यायके नाम पर सुप्रीम कोर्ट, भारत की न्यायव्यवस्था और मुख्य न्यायाधीश की छवि को बिना किसी निष्कर्षके मीडिया ट्रायल से नुकसान पहोंचाने की अनुमति किसीको भी नहीं दी जा सकती। माननीय अदालतको यह विनती है कि भारतके न्यायतंत्रको गाली देनेमें कारणभूत एसे कोई भी मीडिया कवरेजको रोका जाय और अगर आरोप गलत साबित हो तो भारतके मुख्य न्यायाधीश को भी न्याय मिले। वे भारतकी न्यायव्यवस्था के संरक्षक है और एक व्यक्तिके तौर पर उनके व्यक्तित्वको भी एसी मीडिया ट्रायल्स से अन्याय करने का किसीको अधिकार नहीं है।

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