
बिहार : नीतीश सरकार 7000 से अधिक कैदियों पर मेहरबान, गरीब कैदियों की जमानत राशि का इंतजाम करेगी
पटना, 1 जुलाई। बिहार सरकार ने उन गरीब कैदियों की मदद करने का निर्णय लिया है, जिन्हें पैसे के अभाव में जमानत नहीं मिल पाती है। राज्य सरकार ऐसे गरीब कैदियों की जमानत राशि का इंतजाम कर उन्हें जेल से बाहर निकालने में मदद करेगी। गरीब कैदियों के समर्थन में लागू इस योजना की नई गाइडलाइन लागू की गई है।
गृह मंत्रालय की ओर से सभी राज्यों को जारी किया गया है आदेश
बताया जाता है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से सभी राज्यों को जारी आदेश के बाद गृह विभाग ने इस संबंध में सभी डीएम-एसपी को दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं। गरीब कैदियों की मदद के लिए पूरी एसओपी बना ली गई है। इसके लिए जिला से लेकर मुख्यालय स्तर पर अलग-अलग कमेटियों को जिम्मेदारी दी गई है।
बिहार की 59 जेलों में 62,365 से अधिक विचाराधीन कैदी बंद
जेल आईजी प्रणव कुमार ने बताया कि बिहार की जेलों में क्षमता से अधिक कैदी हैं, लेकिन स्थिति अभी नियंत्रण में है। इससे जेलों में कैदियों के बोझ में कमी आएगी। बिहार की 59 जेलों में 62,365 से अधिक विचाराधीन कैदी बंद हैं, जबकि क्षमता 46,669 कैदियों की ही है। इन कैदियों में से लगभग 45,000 कैदी अंडर ट्रायल हैं जबकि 10,000 कैदी सजायाफ्ता हैं।
7000 से अधिक कैदी जमानत राशि नहीं भर पाने के कारण जेल में
इसमें कितने जमानत राशि नहीं जुटाने के कारण जेल से बाहर नहीं आ पाए हैं, अब इसकी समीक्षा सरकार के द्वारा गठित कमेटी के द्वारा की जाएगी। कमेटी तय करेगी कि किस कैदी को रिहा किया जाए और किस कैदी को नहीं। सूत्रों के मुताबिक 7000 से अधिक कैदी जमानत राशि नहीं भर पाने के कारण जेल से नहीं निकल पाए हैं। हालांकि जेल आईजी ने इसकी पुष्टि नहीं की है। उन्होंने कहा कि जांच के बाद ही आंकड़े को बता पाएंगे।
गृह विभाग द्वारा भेजे गए आदेश के अनुसार कोर्ट से जमानत मिलने के सात दिन बाद यदि कोई कैदी रिहा नहीं हो पाता है तो जेल प्रशासन को इसकी सूचना जिला विधिक सेवा प्राधिकरण(डीएलएसए) को देनी होगी।
जेल से मिली जानकारी के आधार पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव यह जांच करेंगे कि कैदी आर्थिक रूप से असमर्थ है या नहीं। इस जांच में प्रोबेशन अधिकारी, सिविल सोसाइटी के सदस्य और समाजसेवी संगठनों की मदद ली जा सकेगी। यह जांच 10 दिनों के भीतर पूरी करनी होगी। उसके बाद दो से तीन सप्ताह के भीतर सचिव उस केस को जिला स्तरीय समिति के समक्ष पेश करेंगे।
इस समिति को यह अधिकार होगा कि विचाराधीन कैदी के लिए अधिकतम ₹40,000 तक की राशि कोर्ट में जमा कराई जा सके। दोषी करार कैदी के लिए अधिकतम ₹25,000 तक की राशि मंजूर की जा सके। यदि राशि इससे अधिक हो, तो मामला राज्य स्तरीय निगरानी समिति को भेजा जाएगा।
इन कैदियों पर लागू नहीं होगी यह योजना
राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह योजना भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग, एनडीपीएस (नारकोटिक्स), तथा असामाजिक गतिविधियों में शामिल कैदियों पर लागू नहीं होगी। ऐसे मामलों में सरकार कोई वित्तीय सहायता नहीं देगी। योजना को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए राज्य स्तर पर एक पांच सदस्यीय निगरानी समिति और जिला स्तर पर अधिकार प्राप्त समिति का गठन किया गया है।
राज्य स्तरीय समिति का नेतृत्व गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव करेंगे। अन्य सदस्यों में विधि विभाग के सचिव, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव जेल आईजी और पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल होंगे। जिला स्तरीय समिति का नेतृत्व संबंधित जिले के डीएम करेंगे।
इसके अन्य सदस्यों में एसपी, जेल अधीक्षक/उपाधीक्षक, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव और जिला जज द्वारा नामित एक न्यायिक अधिकारी सदस्य होंगे। यह पहल न सिर्फ मानवाधिकारों की रक्षा की दिशा में एक सकारात्मक कदम है, बल्कि यह जेलों में भीड़भाड़ कम करने, कैदियों के पुनर्वास और सुधारात्मक न्याय को बढ़ावा देने की दिशा में भी प्रभावी साबित होगी।