यूपी चुनाव : बदायूं विधानसभा सीट का है अनोखा इतिहास, हर चुनाव के बाद मिलता है नया विधायक
बदायूं, 9 जनवरी। चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए अधिसूचना जारी कर दी है। इसी के साथ सभी राज्यों में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है। लेकिन क्या आपको पता है कि यूपी की एक ऐसी भी विधानसभा सीट है जो जो हर बार चुनावों में अपना जन प्रतिनिधि बदल देती है। यूपी की बदायूं विधानसभा सीट तो ये ही कहानी कह रही है।
आइये आज आपको इस विधानसभा सीट के रहस्यों से परिचित कराते हैं। यूपी के बदायूं जिले में छह विधानसभा सीट हैं। इसमें एक सीट बदायूं विधानसभा है। ये सीट वैसे तो यूपी की राजधानी लखनऊ से कोसो दूर है लेकिन इस सीट का अपना राजनीतिक महत्व है।
बेहद दिलचस्प है राजनीतिक इतिहास
बदायूं विधानसभा सीट के राजनीतिक इतिहास की बात की जाए तो ये सीट सन् 1951 में बदायूं नार्थ विधानसभा सीट के रूप में अस्तित्व में आई थी। इस विधानसभा सीट पर सबसे पहले सोशलिस्ट पार्टी के निहालउद्दीन विधायक बने थे। बाद में सन् 1957 में इस सीट का नाम बदायूं हो गया था। इसके बाद जब दोबारा चुनाव हुए तो इस सीट से निर्दलीय टीका राम ने चुनाव जीता। इसके बाद ये सीट कांग्रेस के नाम हो गई। कांग्रेस ने 1962 में इस विधानसभा सीट को अपने नाम कर लिया। इसके बाद 1967 में रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया ने यहां से जीत दर्ज की। 1969 में जहां जनसंघ ने यहां से चुनाव जीता तो वहीं 1977 में जनता दल से स्वरूप वैश्य ने यहां से जीत दर्ज की। 1980 में कांग्रेस के श्रीकृष्ण गोयल तो 1985 में कांग्रेस की प्रमिला भदावर ने यहां से जीत दर्ज की।
लगातार दो बार जीता बीजेपी उम्मीदवार
यहां गौर करने वाली बात ये रही कि बदायूं विधानसभा सीट से केवल एक बार ही कोई विधायक दोबारा चुनाव जीत सका। उस विधायक का नाम था कृष्ण स्वरूप वैश्य। इन्होंने बीजेपी से चुनाव लड़ा था और 1989 और 1991 में यहां से दो बार चुनाव जीता। इसके बाद 1991 से अब तक यहां की जनता ने लगातार अपना जनप्रतिनिधि बदला है। 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में जहां सपा के जोगेंद्र सिंह अनेजा ने यहां से जीत दर्ज की तो वहीं 1996 में बीजेपी ने यहां से सीट जीती।
2002 में बसपा ने दर्ज की जीत
इसके बाद मतदाताओं का मन बीजेपी से भर गया और 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां से बसपा के विमल कृष्ण अग्रवाल ने ये सीट अपने नाम की। इसके बाद जनता ने एक बार फिर बदलाव का मन बनाया और साल 2007 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बीजेपी ने ये सीट अपने नाम कर ली। इसके बाद 2012 के चुनावों में समाजवादी पार्टी के आबिद रजा यहां से निर्वाचित हुए। इसके बाद 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर ये सीट बीजेपी की हो गई और बीजेपी के महेश चंद्र गुप्ता ने सपा के उम्मीदवार को भारी मतों के अंतर से हरा दिया।
मुस्लिम बाहुल्य है बदायूं विधानसभा सीट
बात अगर सामाजिक ताने बाने की करें तो बदायूं विधानसभा सीट मुस्लिम बाहुल्य है। मुस्लिम वोटरों की यहां मुख्य भूमिका रहती है। वहीं इस विधानसभा सीट में जाटव, यादव, मौर्य, शाक्त, वैश्य लोभी मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा इस विधानसभा सीट में वाल्मीकि, खटीक, कायस्थ, साहू आदि जाति के मतदाता भी अच्छी खासी संख्या में हैं। नहीं नजर आते विकास कार्य यहां के वर्तमान विधायक की अगर बात करें तो उनका काम निराशाजनक नजर आता है। विधायक महेश चंद्र गुप्ता यूपी सरकार में राज्यमंत्री हैं। वो क्षेत्र में विकास के दावे भी करते हैं, लेकिन उनका कोई भी विकास का काम इस विधानसभा सीट पर दिखाई नहीं देता है।