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असंसदीय शब्दों को लेकर उठे विवाद पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला बोले – किसी भी शब्द पर पाबंदी नहीं, संकलन अब भी जारी

असंसदीय शब्दों को लेकर उठे विवाद पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला बोले – किसी भी शब्द पर पाबंदी नहीं, संकलन अब भी जारी

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नई दिल्ली, 14 जुलाई। लोकसभा सचिवालय द्वारा ‘असंसदीय शब्दों’ की सूची के संकलन में आम बोलचाल के कुछ शब्दों को शामिल किए जाने को लेकर पैदा हुए विवाद के बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने खुद सफाई दी है।

सारा विवाद सिर्फ भ्रम फैलाने की एक कोशिश

लोकसभा अध्यक्ष बिरला ने गुरुवार को कहा कि सारा विवाद सिर्फ भ्रम फैलाने की एक कोशिश है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है और इसका संकलन अब भी जारी है। उन्होंने कहा कि सदन की कार्यवाही के दौरान बोलने और शब्दों के चयन पर कोई पाबंदी नहीं है।

संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान भी इन शब्दों को असंसदीय माना गया था

ओम बिरला ने कहा कि इन शब्दों को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के कार्यकाल के दौरान भी असंसदीय माना गया था। संसद सचिवालय के सूत्रों का कहना है कि असंसदीय शब्दों की सूची में पिछले वर्ष 62 नए शब्द जोड़े गए हैं और इनमें से कुछ की समीक्षा हो रही होगी।

यह सूची कोई नया सुझाव नहीं बल्कि कार्यवाही से निकाले गए शब्दों का संकलन मात्र

इस बीच सरकारी सूत्रों ने कहा कि यह सूची कोई नया सुझाव नहीं है बल्कि लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधानसभा की कार्यवाही से निकाले गए शब्दों का संकलन मात्र है। उनके मुताबिक इस सूची में ऐसे शब्द भी शामिल हैं, जिन्हें राष्ट्रमंडल देशों की संसद में भी असंसदीय माना जाता है।

वास्तविकता को जाने बगैर ही तूफान खड़ा करने की कोशिश

सूत्रों ने कहा कि विपक्ष ने असंसदीय शब्दों के संकलन पर हायतौबा मचा रखा है, लेकिन दिलचस्प यह है कि वास्तविकता को जाने बगैर ही उन्होंने तूफान खड़ा करने की कोशिश की है। एक अधिकारी ने कहा, ‘इनमें अधिकतर शब्द ऐसे हैं, जो संप्रग के कार्यकाल में भी असंसदीय माने जाते थे। यह शब्दों का संकलन मात्र है ना कि कोई सुझाव या आदेश है।’

लोकसभा सूत्रों का कहना है कि सदन की कार्यवाही से निकाले गए शब्दों का संकलन किया जाना कोई नई बात नहीं है और 1954 से ही अस्तित्व में है। उनके मुताबिक यह सूची सांसदों के लिए संदर्भ का काम करता है। उन्होंने कहा, ‘यदि कोई शब्द असंसदीय पाया जाता है और वह संसद की गरिमा और मर्यादा के अनुकूल नहीं रहता है तो सदनों के पीठासीन अधिकारियों का अधिकारक्षेत्र है कि वह उन्हें सदन की कार्यवाही से बाहर करें।’

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