नई दिल्ली, 26 जुलाई। दिल्ली हाई कोर्ट में न्यायाधीश पद पर रहते सरकारी आवास में नकदी मिलने के बाद विवादों में घिरे न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ एक तरफ जहां संसद के मानसून सत्र में महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी है वहीं उच्चतम न्यायालय 28 जुलाई को जस्टिस वर्मा की याचिका पर सुनवाई करने वाला है।
फिलवक्त दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति न्यायमूर्ति वर्मा ने याचिका में अपने कार्यालय आवास पर नकदी मिलने की आंतरिक जांच की वैधता और उनके खिलाफ शुरू की गई काररवाई को चुनौती दी है। यह मामला न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के संदर्भ में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
जांच समिति का गठन और जांच प्रक्रिया
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने 22 मार्च, 2025 को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शील नागू की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की थी। इस समिति में हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीश भी शामिल थे. समिति ने न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच की, जिसमें उनके कार्यालय आवास से नकदी मिलने का मामला शामिल था।
याचिका में उठाए गए सवाल और आरोप
फिलहाल न्यायमूर्ति वर्मा ने अपनी याचिका में जांच प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। उनका दावा है कि जांच समिति ने उन्हें अपनी सफाई देने या गवाहों से पूछताछ करने का उचित अवसर नहीं दिया। साथ ही उन्होंने कहा कि जांच शुरू होने से पहले कोई औपचारिक शिकायत नहीं थी जबकि मामले की गंभीरता को लेकर मीडिया में प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई, जिससे उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा।
नकदी बरामदगी और इस्तीफा देने से इनकार
गौरतलब है कि न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर 14-15 मार्च, 2025 को लगी आग की घटना के दौरान यह नकदी मिली थी। जांच के बाद समिति ने उन्हें इस्तीफा देने की सलाह दी थी, लेकिन न्यायमूर्ति वर्मा ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इसके बाद, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था।
आरोपों के बीच दिल्ली से इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया था
आरोपों के बीच न्यायमूर्ति वर्मा का स्थानांतरण दिल्ली से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कर दिया गया था। इस मामले की सुनवाई में न्यायपालिका के मानदंडों, जांच प्रक्रिया की वैधता और न्यायाधीश की प्रतिष्ठा जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर गौर किया जाएगा। यह मामला न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संवेदनशीलता का परीक्षा स्तर है।
सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका की सुनवाई से न्यायपालिका की प्रक्रिया और न्यायाधीशों के अधिकारों की रक्षा पर प्रभाव पड़ेगा। इस सुनवाई में यह तय होगा कि जांच प्रक्रिया कितनी निष्पक्ष और कानूनी तौर पर उचित थी और न्यायमूर्ति वर्मा को किस तरह की राहत दी जानी चाहिए।
