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न्यायाधीशों के फैसलों पर निजी हमला एक ‘खतरनाक ट्रेंड’, यह न्यायिक संस्था को नुकसान पहुंचा रहा : जस्टिस पारदीवाला

न्यायाधीशों के फैसलों पर निजी हमला एक ‘खतरनाक ट्रेंड’, यह न्यायिक संस्था को नुकसान पहुंचा रहा : जस्टिस पारदीवाला

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नई दिल्ली, 3 जुलाई। भाजपा की निलंबित राष्ट्रीय प्रवक्ता नुपूर शर्मा की याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के जजों पर हो रहे निजी हमलों को जस्टिस पारदीवाला ने खतरनाक ट्रेंड करार देते हुए कहा है कि यह न्यायिक संस्थान को नुकसान पहुंचा रहा है। इसके साथ ही उन्होंने पूरे देश में डिजिटल और सोशल मीडिया को व्‍यवस्थित करने की आवश्यकता पर बल दिया है।

नूपुर शर्मा की याचिका की सुनवाई करने वाली बेंच में शामिल थे जस्टिस पारदीवाला

उल्लेखनीय है कि जस्टिस पारदीवाला नूपुर शर्मा की याचिका की सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच में शामिल थे। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पारदीवाला नूपुर की याचिका पर सुनवाई के दौरान पैगंबर मोहम्‍मद पर नूपुर शर्मा के बयान को लेकर कई सख्‍त टिप्‍पणियां की थी। इसके बाद से ही जजों के फैसलों को लेकर लगातार व्‍यक्तिगत हमले हो रहे हैं।

न्यायमूर्ति पारदीवाला ने रविवार को यहां एक समारोह में अपने संबोधन में कहा, ‘न्यायाधीशों पर उनके निर्णयों के लिए व्यक्तिगत हमला एक खतरनाक ट्रेंड की ओर ले जाता है, जहां न्यायाधीशों को यह सोचना पड़ता है कि कानून वास्तव में क्या सोचता है जबकि इसकी बजाय मीडिया क्या सोचता है।  यह ट्रेंड कानून के शासन को नुकसान पहुंचाता है।’

सामाजिक और डिजिटल मीडिया न्यायिक निजी राय व्यक्त करने का सहारा लेता है

उन्होंने कहा कि सामाजिक और डिजिटल मीडिया मुख्य रूप से न्यायाधीशों के खिलाफ उनके निर्णयों के रचनात्मक आलोचनात्मक मूल्यांकन की बजाय व्यक्तिगत राय व्यक्त करने का सहारा लेता है। यह न्यायिक संस्थान को नुकसान पहुंचा रहा है और इसकी गरिमा को कम कर रहा है।

जज कभी अपनी जुबान से नहीं बोलते, सिर्फ अपने निर्णयों के माध्यम से कहते हैं

जस्टिस पारदीवाला ने कहा, ‘निर्णयों का उपाय सोशल मीडिया के साथ नहीं है, लेकिन पदानुक्रम में उच्च न्यायालयों के साथ है। न्यायाधीश कभी भी अपनी जुबान से नहीं बोलते, केवल अपने निर्णयों के माध्यम से कहते हैं।

पूरे देश में डिजिटल और सोशल मीडिया को व्‍यवस्थित करने की आवश्यकता

उन्होंने कहा कि भारत में, जिसे पूरी तरह से परिपक्व या परिभाषित लोकतंत्र के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता, सोशल मीडिया को पूरी तरह से कानूनी और संवैधानिक मुद्दों का राजनीतिकरण करने के लिए अकसर नियोजित किया जाता है। इसलिए संविधान के तहत कानून के शासन को बनाए रखने के लिए पूरे देश में डिजिटल और सोशल मीडिया को व्‍यवस्थित करने की आवश्यकता है।

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