विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के नए नक्शे को खारिज किया, बोले – चीन की ‘पुरानी आदत’
नई दिल्ली, 29 अगस्त। विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने मंगलवार को चीन द्वारा जारी नवीनतम मानचित्र में अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को शामिल करने पर कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि पड़ोसी देश की ऐसे मानचित्र जारी करने की पुरानी ‘आदत’ है।
जयशंकर ने समाचार चैनल एनडीटीवी से बातचीत में यह भी कहा कि चीन का सिर्फ दूसरे देशों के इलाकों को अपने नक्शे में शामिल करने का कोई मतलब नहीं है। जयशंकर की तीखी प्रतिक्रिया चीन द्वारा आधिकारिक तौर पर अपने “मानक मानचित्र” का 2023 संस्करण जारी करने के एक दिन बाद आई है, जिसमें अरुणाचल प्रदेश, अक्साई चिन क्षेत्र, ताइवान और विवादित दक्षिण चीन सागर सहित क्षेत्रों को शामिल किया गया है। हालांकि नई दिल्ली का हमेशा मानना है कि अरुणाचल प्रदेश ‘हमेशा’ देश का अभिन्न अंग रहा है और “हमेशा” रहेगा।
‘बेतुके दावे करने से दूसरे लोगों का क्षेत्र आपका नहीं हो जाता‘
जयशंकर ने कहा, ‘चीन ने उन क्षेत्रों के साथ मानचित्र जारी किए हैं, जो उनके नहीं हैं। (यह एक) पुरानी आदत है। केवल भारत के कुछ हिस्सों के साथ मानचित्र जारी करने से… इससे कुछ भी नहीं बदलेगा। हमारी सरकार इस बारे में बहुत स्पष्ट है कि क्या करना है, हमारा क्षेत्र है। बेतुके दावे करने से दूसरे लोगों का क्षेत्र आपका नहीं हो जाता।”
पाकिस्तान की गिरते स्टॉक से तुलना की, जिसकी कोई चर्चा नहीं करता
विदेश मंत्री ने बातचीत के दौरान पाकिस्तान पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा, ‘कोई भी स्टॉक में गिरावट के बारे में बात नहीं करता है। अगर आज कोई भी पाकिस्तान के बारे में बात नहीं करता है या इसका उतना उल्लेख नहीं किया जाता है… तो मैं क्या कह सकता हूं? इसे देखने का एक तरीका ‘बाजार का फैसला’ है। कौन से स्टॉक में गिरावट की बात की जाती है? कोई भी गिरते स्टॉक के बारे में बात नहीं करता है।’
चीन के नए नक्शे पर विदेश मंत्रालय पहले ही जता चुका है आपत्ति
इसके पूर्व चीन के तथाकथित 2023 ‘मानक मानचित्र’ पर मीडिया के सवालों के जवाब में विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता अरिंदम बागची कहा था, “हमने आज तथाकथित 2023 ‘मानक’ पर चीनी पक्ष के साथ राजनयिक चैनलों के माध्यम से एक मजबूत विरोध दर्ज कराया है। चीन का नक्शा, जो भारत के क्षेत्र पर दावा करता है। हम इन दावों को खारिज करते हैं क्योंकि उनका कोई आधार नहीं है। चीनी पक्ष के ऐसे कदम केवल सीमा प्रश्न के समाधान को जटिल बनाते हैं।”