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भारत ने संभाली जी20 की अध्यक्षता, पीएम मोदी ने कहा – ‘मुझे विश्वास है कि हम कर सकते हैं’

भारत ने संभाली जी20 की अध्यक्षता, पीएम मोदी ने कहा – ‘मुझे विश्वास है कि हम कर सकते हैं’

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नई दिल्ली, 1 दिसम्बर। भारत ने गुरुवार को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍थाओं के मंच जी20 की अध्‍यक्षता संभाल ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समग्र रूप से मानवता को लाभ पहुंचाने के लिए मौलिक मानसिकता में बदलाव का आह्वान करते हुए एक नोट लिखा। इसी क्रम में उन्होंने दोहराया, ‘भारत का जी20 एजेंडा समावेशी, महत्वाकांक्षी, कार्रवाई उन्मुख और निर्णायक होगा।’

पीएम मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘आज, जैसा कि भारत ने अपनी जी-20 अध्यक्षता शुरू की है, इस पर कुछ विचार लिखे हैं कि हम आने वाले वर्ष में एक समावेशी, महत्वाकांक्षी, कार्रवाई-उन्मुख और वैश्विक भलाई के लिए निर्णायक एजेंडे के आधार पर कैसे काम करना चाहते हैं। मैं महत्वपूर्ण परिणाम देने के लिए पिछले जी20 अध्यक्षों को धन्यवाद देना चाहता हूं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि अभी और आगे बढ़ने का सबसे अच्छा समय है और समग्र रूप से मानवता को लाभान्वित करने के लिए एक मौलिक मानसिकता बदलाव को उत्प्रेरित करना है।’

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने नोट में कहा, ‘मैं खुद से पूछता हूं – क्या जी20 अब भी आगे बढ़ सकता है? क्या हम मानवता को लाभ पहुंचाने के लिए एक मौलिक मानसिकता बदलाव को उत्प्रेरित कर सकते हैं? मुझे विश्वास है कि हम कर सकते हैं। भारत की जी20 अध्यक्षता एकता की इस सार्वभौमिक भावना को बढ़ावा देने के लिए काम करेगी। इसलिए हमारी थीम – ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’।”

उन्होंने आगे कहा, ‘आज हम जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और महामारियों का सामना कर रहे सबसे बड़ी चुनौतियों को आपस में लड़कर नहीं, बल्कि मिलकर काम करके हल कर सकते हैं। सौभाग्य से, आज की तकनीक हमें मानवता-व्यापक पैमाने पर समस्याओं का समाधान करने का साधन भी प्रदान करती है। आज हम जिस विशाल आभासी दुनिया में रहते हैं, वह डिजिटल प्रौद्योगिकियों की मापनीयता को प्रदर्शित करती है।’

भारत दुनिया का एक सूक्ष्म जगत है

पीएम मोदी ने कहा, ‘मानवता के छठे हिस्से का आवास और भाषाओं, धर्मों, रीति-रिवाजों और विश्वासों की अपनी विशाल विविधता के साथ, भारत दुनिया का एक सूक्ष्म जगत है। सामूहिक निर्णय लेने की सबसे पुरानी ज्ञात परंपराओं के साथ, भारत लोकतंत्र के मूलभूत डीएनए में योगदान देता है। लोकतंत्र की जननी के रूप में, भारत की राष्ट्रीय सहमति फरमान से नहीं, बल्कि लाखों मुक्त आवाजों को एक सुर में मिला कर बनाई गई है।’

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