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हिमाचल सरकार ने पास किया अवैध धर्मांतरण के खिलाफ बिल, 10 वर्ष की सजा और 2 लाख रुपये तक जुर्माने का प्रावधान

हिमाचल सरकार ने पास किया अवैध धर्मांतरण के खिलाफ बिल, 10 वर्ष की सजा और 2 लाख रुपये तक जुर्माने का प्रावधान

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शिमला, 13 अगस्त। हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने शनिवार को धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक 2022 पारित किया है। इस विधेयक के तहत राज्य में अवैध धर्मांतरण पर अंकुश लगेगा। भाजपाशासित सरकार इसी उद्देश्य के साथ यह विधेयक लेकर आई थी। विधेयक में दोषियों के लिए 10 साल तक की जेल और दो लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है।

ध्वनिमत से पारित किया गया विधेयक

दरअसल, राज्य विधानसभा ने ‘सामूहिक धर्मांतरण’ पर रोक लगाने और बल या प्रलोभन के माध्यम से धर्म परिवर्तन के खिलाफ अपने 2019 के कानून में अधिकतम सजा को बढ़ाकर 10 साल की कैद करने के लिए एक विधेयक पारित किया। यह विधेयक ध्वनिमत से पारित किया गया।

यह बिल ‘सामूहिक रूपांतरण’ के संदर्भ को सम्मिलित करता है, जिसे 2019 अधिनियम में एक ही समय में दो या दो से अधिक लोगों के धर्मांतरण के रूप में वर्णित किया गया है और जबरन धर्मांतरण के लिए सजा को सात वर्ष से बढ़ाकर अधिकतम 10 वर्ष करने का प्रस्ताव है।

जयराम ठाकुर सरकार ने शुक्रवार को पेश किया था विधेयक जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली सरकार ने शुक्रवार को विधेयक पेश किया था। यह हिमाचल प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2019 का अधिक कठोर संस्करण है, जो बमुश्किल 18 महीने पहले लागू हुआ था। 2019 अधिनियम को राज्य विधानसभा में पारित होने के 15 महीने बाद 21 दिसंबर, 2020 को अधिसूचित किया गया था।

वर्ष 2019 संस्करण ने बदले में 2006 के कानून को बदल दिया था, जिसमें कम दंड निर्धारित किया गया था। अधिनियम के तहत की गई शिकायतों की जांच एक पुलिस अधिकारी द्वारा की जाएगी, जो सब-इंस्पेक्टर के पद से नीचे का न हो। अब इन अपराधों की सुनवाई सेशन कोर्ट में होगी।

2019 के अधिनियम में सामूहिक धर्मांतरण रोकने का प्रावधान नहीं था

मुख्यमंत्री ठाकुर ने शुक्रवार को विधेयक पेश करते हुए कहा था कि 2019 अधिनियम में सामूहिक धर्मांतरण को रोकने का प्रावधान नहीं है और इसलिए इस आशय का प्रावधान किया जा रहा है। विधेयक धारा 2,4,7 और 13 में संशोधन करने और 2019 अधिनियम में धारा 8A डालने का प्रयास करता है।

उल्लेखनीय है कि सत्तारूढ़ भाजपा धर्मांतरण विरोधी कानूनों की मुखर समर्थक रही है और कई पार्टी शासित राज्यों ने इसी तरह के उपाय पेश किए हैं। यह कदम इस वर्षांद पहाड़ी राज्य में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव से पहले उठाया गया है।

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