1. Home
  2. हिन्दी
  3. महत्वपूर्ण
  4. कहानियां
  5. चुनाव में शासक बदलने का अधिकार तानाशाही से मुक्ति की गारंटी नहीं : प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना
चुनाव में शासक बदलने का अधिकार तानाशाही से मुक्ति की गारंटी नहीं :  प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना

चुनाव में शासक बदलने का अधिकार तानाशाही से मुक्ति की गारंटी नहीं : प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना

0
Social Share

नई दिल्ली, 1 जुलाई। भारत के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एन.वी. रमना ने कहा है सिर्फ शासक को बदल देने से ही अत्याचारों से मुक्ति नहीं मिल सकती। बुधवार को यहां जस्टिस पीडी देसाई मेमोरियल लेक्चर के दौरान उन्होंने कहा कि जनता के पास कुछ वर्षों में ‘शासक’ बदलने का अधिकार होना ‘तानाशाही’ से निजात की कोई गारंटी नहीं है।

सीजेआई रमना ने जूलियस स्टोन का उल्लेख करते हुए कहा कि चुनाव, आलोचना और विरोध – ये सभी लोकतंत्र के अंग हैं, लेकिन इससे उत्पीड़न से मुक्ति की गारंटी नहीं मिलती। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद 17 आम चुनाव हो चुके हैं। जनता ने अपनी जिम्मेदारी हमेशा अच्छी तरह निभाई है और अब उनकी बारी है, जिन्हें जनता ने संवैधानिक जिम्मेदारी दी है।

हर व्यक्ति के आत्मसम्मान की रक्षा से ही लोकतंत्र का मकसद पूरा होगा

सीजेआई रमना ने कहा, ‘आपके पास कुछ दिनों में सरकार बदलने का अधिकार हो सकता है, लेकिन इससे आपको उत्पीड़न से मुक्ति की गारंटी नहीं मिल सकती। जब तक हर व्यक्ति के आत्मसम्मान की रक्षा नहीं होती, तब तक लोकतंत्र के मायने पूरे नहीं होते।’

न्यायपालिका को विधायिका या कार्यपालिका से नियंत्रित नहीं किया जाना चाहिए

न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर जस्टिस रमना ने कहा, ‘न्यायपालिका को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी विधायिका या कार्यपालिका से नहीं नियंत्रित किया जाना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो नियम और कानून गौण हो जाएंगे। इसी तरह जनता के विचारों का हवाला देकर या भावनात्मक रुख देकर जजों पर भी किसी तरह का दबाव नहीं बनाना चाहिए। जजों को इस बात का पता होना चाहिए कि सोशल मीडिया पर जिस बात को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा है, जरूरी नहीं कि वह सच हो और यह भी नहीं जरूरी कि वह पूरी तरह झूठ हो।’

उन्होंने कहा कि  कार्यपालिका के दबाव में बहुत सारी बातें होती हैं, लेकिन इस विषय पर भी चर्चा शुरू करना जरूरी है कि कैसे सोशल मीडिया के रुझान संस्थानों को प्रभावित करते हैं। उन्होंने कहा कि कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका सामान तरह से ‘संवैधानिक विश्वास का कोष’ हैं।

सीजेआई रमना ने कहा कि न्यायपालिका की भूमिका सीमित है और वह सिर्फ उसके सामने रखे तथ्यों से मतलब रखती है। न्यायपालिका की सीमाएं बाकी अंगों को संवैधानिक मूल्यों को बरकरार रखने की जिम्मेदारी याद दिलाती हैं।

LEAVE YOUR COMMENT

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Join our WhatsApp Channel

And stay informed with the latest news and updates.

Join Now
revoi whats app qr code