
आर्थिक बदहाली और फौज से तनातनी के बीच गृहयुद्ध की ओर बढता पाकिस्तान
नई दिल्ली: पड़ोसी पाकिस्तान में एक ओर बाढ़ की जानलेवा विभीषिका है तो दूसरी ओर भयंकर महंगाई ने आग लगाई हुई है। अतिवृष्टि के कारण बलोचिस्तान और सिंध प्रांतो का एक बड़ा हिस्सा पानी में डूबा हुआ है। उधर महंगाई की मार ने पाकिस्तानियों का जीवन दूभर किया हुआ है। पाकिस्तान में पेट्रोल 237 रूपये (पाकिस्तान रुपयों में) लीटर है। चीनी 155 रूपये किलो है। कई इलाकों में टमाटर 500 रूपये और प्याज़ 300 रूपये किलो तक बिका है।
अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 1.1 अरब डॉलर मिलने के बाद भी पाकिस्तानी रुपया लगातार नीचे गिरता ही जा रहा है। इन दिनों एक अमरीकी डॉलर लेने के लिए 240 पाकिस्तानी रुपयों की ज़रुरत पड़ रही है। 2014 में एक भारतीय रुपए में कोई डेढ़ पाकिस्तानी रुपया मिल सकता था। आज एक भारतीय रुपए में औसतन पौने तीन पाकिस्तानी रुपए मिल जायेंगे। इस देश की आर्थिक हालत इतनी पतली है कि बाढ़ से परेशान जनता को कम्बल और ओढ़ने बिछाने के कपड़ों तक के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहवाज शरीफ दूसरे देशों से मदद की गुहार लगा रहे हैं।
मगर आप पाकिस्तानी अख़बारों और टीवी चैनलों को देखें तो इन ख़बरों की जगह वहाँ दूसरी ही खबर सुर्ख़ियों में हैं। ये खबर है पूर्व क्रिकेटर और अपदस्थ प्रधान मंत्री इमरान खान और पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा की आपसी खुन्नस और ज़बरदस्त लड़ाई की। इमरान खुले आम कह रहे हैं कि जरनल बाजवा ने षड्यंत्र करके उन्हें अविश्वास प्रस्ताव के जरिए सत्ता से हटा दिया। लेकिन जिस भाषा का प्रयोग वे उनके लिए कर रहे हैं , वैसा आजतक किसी राजनेता ने पाकिस्तानी सेना की कमान के लिए नहीं किया। जलसों में इमरान ने सेना की कमान को जानवर, गीदड़ और मीर जाफर तक कह डाला है।
पाकिस्तान में कहने को तो चुनाव होते हैं। पर असल में वहाँ सेना ही सब कुछ तय करती है। लोगों का मानना है कि चार साल पहले सेनाध्यक्ष जरनल बाजवा ने ही नवाज़ शरीफ को चुनाव में हरवा कर इमरान को प्रधान मंत्री बनवाया था। तीन साल तक तो दोनों के बीच सब ठीकठाक रहा परन्तु पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख की तैनाती के सवाल पर दोनों में ठन गयी। जिसे जरनल बाजवा आईएसआई का प्रमुख बनाना चाहते थे शुरू में तो इमरान ने उनकी तैनाती नहीं की, पर बाद में उन्हें इसके लिए विवश होना पड़ा। लेकिन बात यहीं तक नहीं रुकी।
जिस नवाज़ शरीफ की पार्टी को सेना ने हटवाया था और अदालतों के ज़रिये उन्हें कोई भी राजनीतिक पद लेने के अयोग्य घोषित करके जेल में डलवा दिया था, उन्हीं के छोटे भाई शहवाज शरीफ को इसी अप्रेल में प्रधान मंत्री बनवा दिया गया। पाकिस्तानी मीडिया में उस समय खबर गर्म थी कि जब संसद में हारने के बावजूद इमरान गद्दी नहीं छोड़ रहे थे तो सेनाध्यक्ष बाजवा ने रात में उनके घर जाकर इमरान को इस्तीफे के लिए मजबूर किया था। कहा तो यहाँ तक गया कि आपस में गर्मागर्मी होने के बाद सेनाध्यक्ष ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान को थप्पड़ मार दिया था। उसी के बाद इमरान से इस्तीफ़ा लिया गया।
लेकिन ये भी सच है कि इमरान खान पाकिस्तान के लोकप्रिय नेता हैं। उन्होंने ‘हकीकी आज़ादी’ यानि असली आज़ादी की एक मुहीम छेड़ दी है। ये आज़ादी वे पाकिस्तानियों को अपनी सेना से दिलाना चाहते है। सीधे शब्दों में कहा जाये तो वे पाकिस्तान में सेना की राजनीतिक ताकत को कमज़ोर करना चाहते हैं। पर जिस देश में प्रधानमत्रीं को तकरीबन हर बड़े फैसले के लिए सेना की मंजूरी लेनी पड़ती हो वहाँ ऐसा करना तकरीबन असंभव ही है। पर इमरान सोचते हैं कि वे अपनी लोकप्रियता से ऐसा कर सकते हैं। यों भी जरनल बाजवा से तो आप उनकी निजी खुन्नस हो गयी है।
इसीलिये गद्दी छोड़ने के बाद इमरान खान ताबड़तोड़ रैलियाँ कर रहे हैं। इसमें बड़ी तादाद में लोग आ रहे हैं। देश के कोने कोने में हो रही इन रैलियों में युवा लोग ज्यादा आ रहे हैं। अब इमरान ने इन्हें इस्लामाबाद कुछ करने को तैयार होने को कहा हैं। सार्वजनिक सभाओं में वे अब सेना को सीधे ललकार रहे हैं। उनकी पार्टी के नेता सेना के अफसरों को अपनी कमान के आदेश न मानने के लिए तक उकसा रहे हैं। सेना की कमान को सोशल मीडिया पर गालियाँ तक दी जा रही है। माना जाता है कि इमरान की पार्टी की सोशल मीडिया फौज ऐसा कर रही है।
उधर सेना के लिए भी ये सब न तो निगलते बन रहा है न ही उगलते। इमरान की रैलियों में उमड़ती भीड़ को देखते हुए सेना सीधे उनपर हाथ डालने से कतरा रही है। इमरान खान और उनकी पार्टी सेना द्वारा बोई हुई एक ऐसी फसल हो गई है जो स्वयं सेना और उसकी कमान के लिए अब ज़हर बन गयी है। लेकिन इतिहास बताता है कि लोकप्रिय राजनेताओं का आखिरकार पाकिस्तान में बुरा हश्र होता है। लोकप्रिय नेताओं की एक बड़ी कतार पाकिस्तान में रही है। जिस राजनीतिक नेता ने वहाँ भी एक हद से बढ़ने की कोशिश की है उसका अंजाम दुनिया देख चुकी है। भुट्टो को वहाँ फाँसी दे दी गयी थी। शेख मुजीब को अलग देश यानि बांग्लादेश बनाना पड़ा था। बेनज़ीर भुट्टो एक हमले में मारी गयीं थी। मौजूदा लोकप्रिय नेता नवाज शरीफ चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित होने के बाद एक तरह से लन्दन के निर्वासन में हैं।
बाढ़ की मार और गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा पाकिस्तान तकरीबन श्रीलंका की राह पर है। सऊदी अरब और चीन जैसे दोस्त देश भी अब पाकिस्तान को आर्थिक मदद देने को तैयार नहीं हैं। वे जानते हैं कि उनका पैसा डूबने ही वाला है। चीन-पाकिस्तान कॉरिडोर पर भी काम बंद पड़ा है। इसमें चीन अभी तक कोई 40 अरब डॉलर लगा चुका है। समस्याओं के इस अम्बार के बीच इमरान खान और जरनल बाजवा की ये लड़ाई पाकिस्तान को गृह युद्ध की तरफ ले जाती हुई दिखाई दे रही है। इससे केवल दक्षिण एशिया ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया प्रभावित होगी। पाकिस्तान के परमाणु हथियार सबके लिए चिंता का विषय हैं।
भारत भी इससे आँखें मूंदकर नहीं रह सकता क्योंकि पड़ोस में लगी इस आग की तपिश हम पर भी असर डालेगी।
(- उमेश उपाध्याय)