सहकारिता मंत्रालय : अमित शाह के जरिए सहकारिता समितियों में जान फूंकने की रणनीति
नई दिल्ली, 9 जुलाई। केंद्र सरकार ने मोदी कैबिनेट के विस्तार व फेरबदल के ठीक एक दिन पहले एक नए मंत्रालय का सृजन किया था – सहकारिता मंत्रालय। सरकार का मानना था कि यह मंत्रालय देश में कार्यरत सहकारी समितियों के उत्थान और उनकी मजबूती के लिए काम करेगा। फिर कैबिनेट विस्तार के बाद जब पोर्टफोलियो का बंटवारा हुआ तो किसी नए मंत्री की बजाए इस नवसृजित मंत्रालय की कमान सीधे गृह मंत्री अमित शाह को सौंप दी गई।
सहकारिता क्षेत्र में काम करने का लंबा अनुभव
समझा जाता है कि केंद्र सरकार ने सहकारिता समितियों में नई जान फूंकने के उद्देश्य से यह मंत्रालय अमित शाह को सौंपा, जिन्हें इस सेक्टर में काम करने का लंबा अनुभव है। उन्होंने गुजरात की राजनीति में रहते हुए सहकारिता क्षेत्र में न सिर्फ भाजपा का परचम लहराया था वरन लाभ कमाने के कई कीर्तिमान भी स्थापित किए थे।
गौरतलब है कि कुछ राज्यों में सहकारिता क्षेत्र से जुड़े विभाग हैं, लेकिन केंद्र स्तर पर अब तक सहकारिता क्षेत्र के लिए अलग से कोई मंत्रालय नहीं था। दरअसल, सहकारी समितियों की पहुंच गांव-गांव तक होती है। इन समितियों के संगठन को दुरुस्त करके सरकार सहकार से समृद्धि यानी कि गरीबों तक सहकारिता का फायदा पहुंचाना चाहती है। इसीलिए लंबे अनुभव वाले अमित शाह को यह मंत्रालय सौंपा गया।
गुजरात में कभी माना जाता था सहकारिता आंदोलन का पितामह
सहकारिता क्षेत्र में काम करने के शाह के अनुभव का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि वह महज 36 वर्ष की उम्र में अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक (एडीसीबी) के सबसे युवा अध्यक्ष बन गए थे। उस दौरान सिर्फ एक वर्ष में उन्होंने न सिर्फ 20.28 करोड़ का बैंक का घाटा पूरा किया, बल्कि 6.60 करोड़ के लाभ में लाकर 10 प्रतिशत मुनाफे का वितरण भी किया। भाजपा के राष्ट्रीय सहकारिता प्रकोष्ठ के भी संयोजक रह चुके शाह को गुजरात में सहकारिता सेक्टर में बेहतरीन कार्य के लिए सहकारिता आंदोलन का पितामह भी कहा जाने लगा था।
सहकारी समितियों से जुड़े घोटालों पर भी कसेगी लगाम?
ध्यान देने वाली बात यह है कि मौजूदा समय देश में संचालन ढेरों बैंक या तो भ्रष्टाचार के शिकार हैं अथवा फिर घाटे में डूब चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों में सहकारी समितियों से जुड़े घोटालों में काफी इजाफा हुआ है। इन पर अंकुश लगाने के लिए भी एक कानूनी फ्रेमवर्क की जरूरत है। हाल ही में महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक घोटाला मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने काररवाई की है। देखा जाए तो ऐसी सहकारी समितियों को उबारने के लिए भी 56 वर्षीय शाह का अनुभव निश्चित रूप से काम आएगा।