संयुक्त राष्ट्र में जयशंकर की ललकार – ‘वे दिन चले गए, जब कुछ देश एजेंडा सेट करते थे’
न्यूयॉर्क, 26 सितम्बर। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने मंगलवार को न्यूयॉर्क में उच्चस्तरीय संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) सत्र में आम बहस को संबोधित किया। उन्होंने अपना भाषण ‘भारत की ओर से नमस्ते’ कहकर शुरू किया और विभिन्न साझेदारों के साथ सहयोग को बढ़ावा देने की भारत की प्रतिबद्धता पर जोर दिया। साथ ही अधिक समावेशी और लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था की आवश्यकता व्यक्त करते हुए अधिक न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था की वकालत की।
डॉ. एस जयशंकर ने टिप्पणी की, ‘वे दिन खत्म हो गए हैं, जब कुछ देश एजेंडा तय करते थे और दूसरों से लाइन का पालन करने की उम्मीद करते थे। हमारे विचार-विमर्श में हम अक्सर नियम-आधारित आदेश को बढ़ावा देने की वकालत करते हैं। समय-समय पर संयुक्त राष्ट्र चार्टर का सम्मान भी शामिल होता है। लेकिन अब भी कुछ राष्ट्र हैं, जो एजेंडा को आकार देने और मानदंडों को परिभाषित करने का प्रयास करते हैं।’
Our Statement at the General Debate of the 78th session of #UNGA. https://t.co/yY3kdVf45p
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) September 26, 2023
जयशंकर ने कहा, ‘भारत अमृत काल में प्रवेश कर चुका है। जब हमारा चंद्रयान चंद्रमा पर उतरा तो दुनिया ने हमारी प्रतिभा को पहचाना। असाधारण जिम्मेदारी की भावना के साथ भारत ने जी 20 की अध्यक्षता की। भारत के प्रयास से अफ्रीकी संघ G20 समूह का स्थायी सदस्य बना।’
भारतीय विदेश मंत्री ने अपने भाषण में यूएन देशों को नसीहत देते हुए कहा, ‘यह अनिश्चित काल तक नहीं चल सकता है और न ही इसे चुनौती दी जा सकती है। एक बार जब हम सभी इस पर ध्यान देंगे तो एक निष्पक्ष, न्यायसंगत और लोकतांत्रिक व्यवस्था निश्चित रूप से सामने आएगी। इसका मतलब है यह सुनिश्चित करना कि नियम-निर्माता नियम लेने वालों को अपने अधीन न करें।’
Great speech, FM @kaminajsmith. pic.twitter.com/6IzeEZpPMO
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) September 26, 2023
अपने भाषण में डॉ. जयशंकर ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की उभरती भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “गुटनिरपेक्षता के युग से, हम अब ‘विश्व मित्र – दुनिया के लिए एक मित्र’ के युग में विकसित हो गए हैं। यह हमारी आकांक्षाओं और लक्ष्यों को साझा करते हुए हमारी उपलब्धियों और हमारी चुनौतियों का जायजा लेने का भी एक अवसर है। वास्तव में, दोनों के संबंध में भारत के पास साझा करने के लिए बहुत कुछ है।”
उन्होंने भारत के ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ के दृष्टिकोण को दोहराया और इस बात पर जोर दिया कि इसका उद्देश्य कुछ लोगों के संकीर्ण हितों की बजाय कई लोगों की प्रमुख चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करना है। उन्होंने वैश्विक चुनौतियों से निबटने में सामूहिक काररवाई के महत्व को रेखांकित किया।