अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा भारत से डरता है चीन, आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ता भारत
चीन की दोगली चाल और दोहरा चरित्र पार्ट-4
खुद के देश में उइगर और तिब्बतियों पर वर्षों से अत्याचार करने वाले चीन की नजर भारत सहित पड़ोसी देशों की धरती पर भी है। लेकिन भारत अब आर्थिक शक्ति बनने की ओर आगे बढ़ चला है, जिसके चलते चीनी शासकों में थोड़ा डर है। अमेरिका और चीन के बीच कई वर्षों से ट्रेड वार चल रहा है। चीन ने भारत के अलावा एशिया के कई देशों को पैसों के दम पर अपनी तरफ कर लिया है। दूसरी तरफ भारत भी चीन पर निर्भर रहने की जगह दूर की सोचते हुए आत्मनिर्भर भारत जेसी योजनाओं के जरिए छोटों ओर मझोले उद्योगों को बढ़ावा देने की दिशा में काफी तत्पर है।
दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका और भारत की बढ़ती नजदीकियों से डरने वाले चीन के बारे में जेएनयू के सीनियर फैकेल्टी डॉ. महेश रंजन देबाता ने बताया कि आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी काररवाई के चलते चीन ने समर्थन दिया था, जिसके अमेरिका-चीन के बीच अच्छा व्यापार चल रहा था। 2016-17 में अमेरिका को पता चला कि चीन उस पर भारी पड रहा है तो उसने अपना रुख बदला।
दूसरी तरफ चीन ने साउथ चाइना सी पर कंट्रोल करने की तैयारी शुरू कर ली, जिसका अमेरिका सहित दुनिया के अनेक देशों पर भारी असर पड सकता है। चीन ने वहां पर मिसाइल बेस बनाया और सबमरीन भी रख दी। इस प्रकार चीन ने युद्ध की तैयारी कर ली है। चीन अपने खिलाफ खड़े होने वाले देशों को डराता है। इतना हीं नहीं उन देशों के विरोधी ग्रुपों को समर्थन भी देता है। चीन के पास पैसा है और यही पैसा वह विरोध करने वाले देश में समस्या खड़ी करने में इस्तेमाल करता है। इसी तरह चीन अपने खिलाफ बोलने वाले देशों को धमका कर या पैसे देकर दबाने का प्रयास करता है।
चीन ने हान चाइनीज को योजनाबद्ध तरीके से शिनजियांग, तिब्बत भेजकर जनसंख्या नियंत्रण किया
देखा जाए तो अमेरिका जहां प्रवेश नहीं कर करता, वहां चीन घुस गया है। इस क्रम में उसने ईरान, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया व रूस सहित कई देशों को अमेरिका के खिलाफ कर दिया है। वह भारत को अमेरिका के खिलाफ नहीं कर पाया है, लेकिन उसने साम, दाम, दंड और भेद का इस्तेमाल करके दुनिया के कई देशों पर नियंत्रण कर लिया है। ईरान में चीन ने 600 बिलियन डॉलर से ज्यादा का इन्वेस्टमेंट किया है।
चीनी शासकों ने इस्लामिक आतंकवाद को ढाल बनाकर उइगर मुस्लिमों पर किया अत्याचार
यूरोप के लगभग 22 देशों ने उइगर मुस्लिमों के मुद्दे पर चीन के खिलाफ आवाज उठाई। दूसरी तरफ चीन ने 52 देशों से साइन करवाया कि चीन में उइगर मुस्लिमों पर कोई अत्याचार नहीं हो रहा है, जिसमें इंडोनेशिया सहित 32 मुस्लिम देश भी शामिल हैं। इस प्रका चीन ने मुस्लिमों के खिलाफ मुस्लिमों को खड़ा कर दिया है। सऊदी अरब के प्रिंस चीन गए थे, उन्होंने उइगरो को शांति से रहने को बोला था। इसी तरह चीन ने पैसा देकर कई देशों को अपनी तरफ कर लिया है।
अफगानिस्तान ने 21 उइगर मुस्लिमों को पकड़ा था, उनके खिलाफ कानूनी काररवाई के बाद उन्हें छोड़ देने का निर्णय लिया था। इन उइगर मुस्लिमों को वापस चीन भेजना सही नहीं था। उसने 21 में से छह को थाईलैंड भेज दिया था, दूसरे दिन चीन ने थाईलैंड में 6 बिलियन डॉलर से ज्यादा का निवेश कर दिया था।
चीन ने टेक्नोलॉजी और मीडिया पर कंट्रोल कर उइगर की समस्या दुनिया से छुपाई
भारत और चीन के बीच 60-70 वर्षों से सीमा से लेकर विवाद चल रहा है। 1962 के युद्ध के बाद भारत अपने आप को चीन से कमतर मानने लगा, जिसके लचते संबंध अच्छे बनाने का प्रयास किया गया था। 1988 मे राजीव गांधी और 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी जी चीन गए थे।
वर्षों पहले चीन ने भारत के सामने प्रस्ताव रखा था और ईस्टन सेक्टर में अरुणाचल प्रदेश मांगा था, जिसके एवज में सीयाचीन सहित कई इलाके देने की तैयारी दिखाई थी। हमने कभी भी चीन का कोई मुद्दा नहीं उठाया है। भारत ने दलाई लामा को पनाह दे रखी है, इतना ही नहीं कई तिब्बतियों को भी पनाह दी गई है। भारत मे कई सारे लोग कम्युनिस्ट हैं, वे चीन में हो रहे अत्याचार के बारे मे बोलना पसंद नहीं करते, क्योंकि चीन भी कम्युनिस्ट है।
2017 में डोकलाम विवाद के बाद भारत कोई बड़ा कदम उठाएगा, ऐसा लग रहा था, लेकिकन ऐसा कुछ नहीं हुआ। चीन ने भारत के साथ जुड़े बॉर्डर पर 30 से ज्यादा एयरपोर्ट बनाया है। आज की तारीख में भारत-चीन के बीच व्यापार पर कोई असर नहीं हुआ है। आज भी 65 बिलियन डॉलर का व्यापार चल रहा है, जिसमें सबसे ज्यादा चीन ने भारत में निवेश किया है। आत्मनिर्भर भारत योजना के नीचे कई सारे नए स्टार्टअप शुरू हुए हैं, जिसमें 75% कम्पनियों में चीनी कम्पनियों के इनवेस्टमेंट हैं। भारत मे सबसे ज्यारा रो-मटिरियल चाइना से आता है।
भारत चूंकि चीन से आगे निकलता चाहता है, इसलिए उसका विकल्प ढूंढना चाहिए। भारत की लोकल कम्पनियों को आगे बढ़ाना चाहिए, जिसके चलते प्रतिस्पर्धा बढ़ने लगेगी। भारत सरकार अभी उसी दिशा में आगे बढ रही है। भारत सरकार छोटे उद्योगों को बढ़ावा दे रही है। सरकार के इस फैसले का देश की जनता को भी समर्थन करना चाहिए, तभी भारत आर्थिक क्षेत्र मे मजबूत बनेगा।
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