राष्ट्रपति के संबोधन में नेहरू का जिक्र न होना इतिहास से उन्हें मिटाने के अभियान का हिस्सा, बोली कांग्रेस
नई दिल्ली, 15 अगस्त। कांग्रेस ने बृहस्पतिवार को आरोप लगाया कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्र के नाम के संबोधन में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का उल्लेख नहीं होना उन्हें इतिहास से मिटाने के लिए जारी अभियान का हिस्सा है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘14 अगस्त, 1947 की आधी रात को जवाहरलाल नेहरू ने (पुरानी संसद के) सेंट्रल हॉल में अपना नियति के साथ साक्षात्कार वाला भाषण दिया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘15 अगस्त, 1947 को आकाशवाणी पर राष्ट्र के नाम उनका संबोधन प्रसारित हुआ, जिसकी शुरुआत उन्होंने खुद को ‘‘भारतीय लोगों का पहला सेवक’’ बताते हुए की थी। 15 अगस्त 1947 की सुबह अखबारों में उनका राष्ट्र के नाम संदेश छपा था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘उसी दिन 14 मंत्रियों ने शपथ ली थी।
ये थे नेहरू और सरदार पटेल के अलावा, राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, डॉ. बी आर आंबेडकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जगजीवन राम, राजकुमारी अमृत कौर, सरदार बलदेव सिंह, सी.एच. भाभा, जॉन मथाई, आरके शनमुखम चेट्टी, एनवी गाडगिल और रफी अहमद किदवई। चार सप्ताह से भी कम समय के बाद, के सी नियोगी और गोपालस्वामी अय्यंगर ने भी शपथ ली। …. वह ऐसे शानदार व्यक्तित्वों से भरपूर एक अविश्वसनीय कैबिनेट थी।’’
रमेश के अनुसार, यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है कि कल रात माननीय राष्ट्रपति के राष्ट्र के नाम संबोधन में हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के कई प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों का उल्लेख था, लेकिन भारत के पहले प्रधानमंत्री के नाम का कोई उल्लेख नहीं किया गया जिन्होंने अंग्रेजों की जेलों में 10 साल बिताए थे। यह स्पष्ट रूप से उन्हें हमारे इतिहास से मिटाने और समाप्त करने के लिए जारी अभियान का हिस्सा है।’’
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को कहा था कि भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और हम विश्व की तीन शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में स्थान प्राप्त करने के लिए तैयार हैं। देशवासियों को 78वें स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं देते हुए राष्ट्रपति ने महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और बाबासाहब आंबेडकर तथा भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे अनेक महान जननायकों को याद किया था। तिलका मांझी, बिरसा मुंडा, लक्ष्मण नायक और फूलो-झानो जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हुए मुर्मू ने कहा था कि यह एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन था, जिसमें सभी समुदायों ने भाग लिया।