लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला बोले – आपातकाल भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय, विपक्ष ने किया हंगामा
नई दिल्ली, 26 जून। भाजपा सांसद ओम बिरला ने आज 18वीं लोकसभा का अध्यक्ष चुने जाने के बाद अपने पहले संबोधन में 1975 के आपातकाल को याद करते हुए उसे भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय करार दिया। हालांकि उसके बयान पर विपक्षी सासंदों ने कड़ा विरोध व्यक्त किया और सदन में जमकर हंगामा किया।
‘मुझ पर भरोसा दिखाने के लिए भी मैं सभी का आभारी हूं‘
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सर्वप्रथम सदन में सदस्यों के प्रति आभार जताया और कहा, ‘मैं प्रधानमंत्री मोदी, सदन के सभी सदस्यों को मुझे फिर से सदन के अध्यक्ष के रूप में दायित्व निर्वाहन करने का अवसर देने के लिए सबका आभार व्यक्त करता हूं। मुझ पर भरोसा दिखाने के लिए भी मैं सभी का आभारी हूं।’
संसदीय मूल्यों और लोकतांत्रिक परंपराओं को अधिक समृद्ध बनाना मेरी प्राथमिकता रहेगी : लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला |#18thLoksabha #ParliamentSession #RajyaSabha@ombirlakota @loksabhaspeaker @LokSabhaSectt
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ओम बिरला ने कहा, ‘यह 18वीं लोकसभा लोकतंत्र का विश्व का सबसे बड़ा उत्सव है। अन्य चुनौतियों के बावजूद 64 करोड़ से अधिक मतदाताओं ने पूरे उत्साह के साथ चुनाव में भाग लिया। मैं सदन की ओर से उनका और देश की जनता का आभार व्यक्त करता हूं। निष्पक्ष, निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से चुनाव प्रक्रिया संचालित करने के लिए और दूर-दराज के क्षेत्रों में भी एक भी वोट पड़े, यह सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग द्वारा किए गए प्रयासों के लिए मैं उनका आभार व्यक्त करता हूं।’
उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार एनडीए सरकार बनी है। पिछले एक दशक में लोगों की अपेक्षाएं, आशाएं और आकांक्षाएं बढ़ी हैं। इसलिए, यह हमारा दायित्व बनता है कि उनकी अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को प्रभावी तरीके से पूरा करने के लिए हम सामूहिक प्रयास करें।’
लोकसभा अध्यक्ष ने आपातकाल के खिलाफ रखा निंदा प्रस्ताव
सदस्यों का आभार जताने के बाद ओम बिरला ने 1975 में कांग्रेस सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल की लोकसभा में निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पढ़ा और कहा कि वह कालखंड काले अध्याय के रूप में दर्ज है, जब देश में तानाशाही थोप दी गई थी, लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचला गया था और अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंट दिया गया था।’ इस दौरान सदन में कांग्रेस और कई अन्य विपक्षी दलों के सदस्यों ने जोरदार हंगामा किया और नारेबाजी की।
‘आपातकाल के दौरान जान गंवाने वाले नागरिकों की स्मृति में दो मिनट का मौन‘
आपातकाल पर एक प्रस्ताव पढ़ते हुए बिरला ने कहा, ‘अब हम सभी आपातकाल के दौरान कांग्रेस की तानाशाही सरकार के हाथों अपनी जान गंवाने वाले नागरिकों की स्मृति में मौन रखते हैं।’ इसके बाद सत्तापक्ष के सदस्यों ने कुछ देर मौन रखा, हालांकि इस दौरान विपक्षी सदस्यों ने नारेबाजी और टोकाटाकी जारी रखी। मौन रखने वाले सदस्यों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उनकी मंत्रिपरिषद के सभी सदस्य और सत्तापक्ष के अन्य सांसद शामिल रहे।
ओम बिरला ने कहा, ‘यह सदन 1975 में आपातकाल लगाने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करता है। इसके साथ ही हम उन सभी लोगों की संकल्पशक्ति की सरहाना करते हैं, जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व निभाया।’
उन्होंने कहा, ‘भारत के इतिहास में 25 जून, 1975 को काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा। उस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था और बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान पर प्रचंड प्रहार किया था। इंदिरा गांधी द्वारा तानाशाही थोप दी गई थी, लोकतांत्रिक मल्यों को कुचला गया था और अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटा गया था।’
बिरला ने दावा किया कि आपातकाल के दौरान नागरिकों के अधिकार नष्ट कर दिए गए थे। उन्होंने कहा, ‘यह दौर था कि जब विपक्ष के नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया और पूरे देश को जेलखाना बना दिया गया था। तब की तानाशाही सरकार ने मीडिया पर पाबंदी लगा दी थी, न्यायपालिका पर अंकुश लगा दिया था।’
सदन की कार्यवाही गुरुवार तक के लिए स्थगित
उन्होंने कहा, ‘उस वक्त कांग्रेस सरकार ने कई ऐसे निर्णय लिए, जिसने संविधान की भावनाओं को कुचलने का काम किया।’ उन्होंने दावा किया कि आपातकाल के समय संविधान में संशोधन करने का लक्ष्य एक व्यक्ति के पास शक्तियों को सीमित करना था। आपातकाल के दौरान जान गंवाने वाले नागरिकों की स्मृति में कुछ देर मौन रखे जाने के बाद बिरला ने सभा की कार्यवाही गुरुवार को राष्ट्रपति के अभिभाषण के आधे घंटे बाद तक के लिए स्थगित कर दी।