नई दिल्ली, 7 नवंबर। लोकसभा में कांग्रेस के नेता और मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) की नियुक्ति से संबंधित चयन समिति के सदस्य अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर कहा है कि सीआईसी के चयन की प्रक्रिया को लेकर उन्हें अंधेरे में रखा गया। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि सीआईसी की नियुक्ति में सभी लोकतांत्रिक मानदंडों, परंपराओं और प्रक्रियाओं की धज्जियां उड़ा दी गईं।
पत्र में चौधरी ने कहा कि विपक्ष की आवाज को ”अनदेखा” किया गया है और यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। पूर्व आईएएस अधिकारी हीरालाल सामरिया को सोमवार को राष्ट्रपति मुर्मू ने मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में शपथ दिलाई। चौधरी ने आरोप लगाया कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली चयन समिति की बैठक तीन नवंबर को सुबह बुलाने का आग्रह किया था लेकिन इसे प्रधानमंत्री की सहूलियत के मुताबिक उस दिन शाम छह बजे ही बुलाया गया।
पत्र में उन्होंने कहा, “संपूर्ण चयन प्रक्रिया से संबंधित उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए मैं आपसे यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव उपाय करने का आग्रह करूंगा कि विपक्ष को उसका उचित और वैध स्थान न देकर हमारी लोकतांत्रिक परंपराएं और लोकाचार को कमजोर करने के प्रयास पर अंकुश लगाया जाए तथा विपक्ष को सुना जाए।’’
संसद की लोक लेखा समिति के अध्यक्ष ने कहा कि चयन समिति का सदस्य होने के बावजूद उन्हें सीआईसी एवं सूचना आयुक्तों के चयन के बारे में “पूरी तरह से अंधेरे में रखा गया।” उनका कहना है कि यह बैठक प्रधानमंत्री के आवास पर तीन नवंबर को शाम छह बजे हुई थी।
चौधरी के अनुसार, “तथ्य यह है कि बैठक में केवल प्रधानमंत्री और गृह मंत्री उपस्थित थे और ‘विपक्ष का चेहरा’, यानी चयन समिति के एक प्रामाणिक सदस्य के रूप में मैं उपस्थित नहीं था। बैठक के कुछ घंटों के भीतर चयनित उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की गई, इन्हें अधिसूचित किया गया और उन्हें शपथ भी दिलाई गई। ” उन्होंने आरोप लगाया कि यह केवल इस बात को दर्शाता है कि संपूर्ण चयन प्रक्रिया पूर्व-निर्धारित थी।
उन्होंने अपने पत्र में कहा, “अत्यंत दुख और भारी मन से मैं आपके ध्यान में लाना चाहता हूं कि केंद्रीय सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के चयन के मामले में सभी लोकतांत्रिक मानदंडों, परंपराओं और प्रक्रियाओं की धज्जियां उड़ा दी गईं।” चौधरी ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 लोकतांत्रिक मानदंडों और परंपराओं के अनुरूप यह परिकल्पना करता है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की चयन प्रक्रिया में विपक्ष की आवाज भी सुनी जाए।