सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी – किसी शख्स को बतौर आरोपित तभी समन किया जाए, जब उसके खिलाफ ठोस सबूत हो
नई दिल्ली, 10 मार्च। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा-319 के तहत असाधारण शक्ति का इस्तेमाल करते ए किसी शख्स को बतौर आरोपित तभी समन किया जाना चाहिए, जब उस शख्स के खिलाफ ठोस सबूत हों। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दाखिल आवेदन खारिज करते हुए उक्त टिप्पणी की है।
धारा 319 के इस्तेमाल पर दी सीख
शिकायतकर्ता ने सीआरपीसी की धारा-319 के तहत अर्जी दाखिल कर एक शख्स को बतौर आरोपित समन जारी करने की गुहार लगाई थी। जस्टिस एएस ओका और जस्टिस राजेश बिंदल ने कहा कि कोर्ट को सीआरपीसी की धारा-319 का इस्तेमाल साधारण और रूटीन तरीके से नहीं करना चाहिए। यह विशेषाधिकार है, जिसका इस्तेमाल हल्के तरीके से नहीं होना चाहिए।
यह था मामला
मामला हत्या का था। आवेदक के कर्मचारी की हत्या हुई थी। FIR अज्ञात के खिलाफ दर्ज हुआ था। मृतक की पत्नी ने गाजियाबाद पुलिस को शिकायत दी थी और आवेदक के खिलाफ भी मृतक की पत्नी की शिकायत थी। पुलिस ने मामले की छानबीन की और दो लोगों को आरोपित बनाते हुए चार्जशीट दाखिल कर दी। आवेदक को पुलिस ने सरकारी गवाह बनाया।
लेकिन इसी दौरान शिकायती महिला ने सीआरपीसी की धारा-319 के तहत आवेदक को आरोपित बनाने के लिए उसे समन जारी करने के लिए ट्रायल कोर्ट से गुहार लगाई। ट्रायल कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी, जिसके बाद मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट गया। हाईकोर्ट ने मामले को दोबारा ट्रायल कोर्ट के पास भेजा और फिर से आवेदन पर विचार करने को कहा। फिर मामला सुप्रीम कोर्ट आया।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
आवेदक की अर्जी पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा-319 के प्रावधान में तयशुदा सिद्धांत है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले के जजमेंट का भी हवाला दिया और कहा कि जब ठोस सबूत हो, तभी उस शख्स को आरोपित के तौर पर सीआरपीसी की धारा-319 के तहत बुलाया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में कोई चश्मदीद नहीं है। एक गवाह मुकर चुका है और उसने आवेदक की ओर कोई इशारा नहीं किया है। जो मैटेरियल रेकॉर्ड पर है, वह आवेदक को समन करने के लिए पर्याप्त नहीं है।