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सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई के सविधान में बदलाव की दी स्वीकृति, सौरभ व शाह के पद पर बने रहने का रास्ता साफ

सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई के सविधान में बदलाव की दी स्वीकृति, सौरभ व शाह के पद पर बने रहने का रास्ता साफ

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नई दिल्ली, 14 सितम्बर। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की ओर से उसके संविधान में बदलाव संबंधी प्रस्ताव को बुधवार को मंजूरी दे दी। इसके साथ ही अब बोर्ड अध्यक्ष सौरभ गांगुली और सचिव जय शाह के अगले और तीन वर्षों तक अपने पदों पर बने रहने का रास्ता साफ हो गया है।

शीर्ष अदालत का मत – संविधन संशोधन मूल उद्देश्य को कमजोर नहीं करेगा

सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई को अपने संविधान में संशोधन करने की अनुमति देते हुए कहा, ‘हमारा विचार है कि संशोधन मूल उद्देश्य को कमजोर नहीं करेगा। हम प्रस्तावित संशोधन को स्वीकार करते हैं। बीसीसीआई द्वारा प्रस्तावित संशोधन हमारे मूल निर्णय की भावना से अलग नहीं है और इसे स्वीकार किया जाता है।’

‘कूलिंग ऑफ’ अवधि की समाप्ति ही संशोधन का अहम बिन्दु

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट बीसीसीआई की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उसके अध्यक्ष सौरभ गांगुली और सचिव जय शाह सहित अन्य पदाधिकारियों के कार्यकाल के संबंध में अपने संविधान में संशोधन करने की मांग की गई थी। इसमें राज्य क्रिकेट संघों और बीसीसीआई के पदाधिकारियों के कार्यकाल के बीच अनिवार्य ‘कूलिंग ऑफ’ अवधि (तीन साल तक कोई पद नहीं संभालना) नियम को बदलने का प्रस्ताव था।

बीसीसीआई के मौजूदा संविधान के अनुसार एक पदाधिकारी को राज्य संघ या बीसीसीआई (या दोनों संयुक्त रूप से) के लगातार दो कार्यकालों के बीच तीन साल की कूलिंग ऑफ अवधि से गुजरना पड़ता है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत में बीसीसीआई का पक्ष रखा

बीसीसीआई की ओर से मामले में मंगलवार को पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ से कहा कि देश में क्रिकेट का खेल काफी व्यवस्थित है। उन्होंने कहा कि बीसीसीआई एक स्वायत्त संस्था है और सभी बदलावों पर क्रिकेट संस्था की वार्षिक आम बैठक (एजीएम) में विचार किया गया।

तुषार मेहता ने कहा था, ‘वर्तमान संविधान में कूलिंग ऑफ अवधि का प्रावधान है। अगर मैं एक कार्यकाल के लिए राज्य क्रिकेट संघ और लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए बीसीसीआई का पदाधिकारी हूं, तो मुझे कूलिंग ऑफ अवधि से गुजरना होगा।’ उन्होंने कहा कि दोनों निकाय अलग हैं और उनके नियम भी अलग हैं और जमीनी स्तर पर नेतृत्व तैयार करने के लिए पदाधिकारी के लगातार दो कार्यकाल बहुत कम हैं।

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