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कृषि कानूनों को पूरी तरह खारिज नहीं कर सकते, इसके कुछ भाग में संशोधन की जरूरत : शरद पवार

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मुंबई, 1 जुलाई। मराठा क्षत्रप शरद पवार विवादास्पद कृषि कानूनों को पूरी तरह से खारिज करने के पक्षधर नहीं हैं और उनका मानना है कि इसके कुछ भाग में संशोधन की जरूरत है, जिससे किसानों को दिक्कत है। पवार का यह भी कहना है कि महाराष्ट्र सरकार के मंत्रियों का एक समूह केंद्र से पारित कृषि कानून के अलग-अलग पहलुओं का अध्ययन कर रहा है।

महाराष्ट्र में शिवसेना की अगुआई वाली सत्तारूढ़ महाविकास अघाड़ी सरकार की एक घटक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के मुखिया शरद पवार की यह टिप्पणी उस वक्त आई, जब उनसे पूछा गया कि क्या किसानों की मांग को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार केंद्र के कृषि कानूनों के विरोध में प्रस्ताव लाएगी।

80 वर्षीय एनसीपी नेता ने कहा, ‘पूरे बिल को खारिज कर देने की बजाए हम उस भाग में संशोधन कर सकते हैं, जिसे लेकर किसानों को आपत्ति है। इस कानून से संबंधित सभी पक्षों से विचार करने के बाद ही इसे विधानसभा के पटल पर लाया जाएगा।’

विवादित पहलुओं पर विचार के बाद ही राज्यों को इस कानून को पास करना चाहिए
पवार ने कहा कि राज्यों को अपने यहां इस कानून को पास करने से पहले इसके विवादित पहलुओं पर विचार करना चाहिए, तभी कोई फैसला लेना चाहिए। हालांकि उन्होंने यह भी कहा, मुझे नहीं लगता कि महाराष्ट्र विधानसभा के दो दिनों के सत्र में यह आ पाएगा। लेकिन यदि यह आता है तो इस पर विचार किया जाना चाहिए।’
गौरतलब है कि केंद्र सरकार से पारित कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली में पिछले वर्ष 26 नवंबर से किसानों का प्रदर्शन चल रहा है। किसान गाजीपुर बॉर्डर और सिंघु बॉर्डर पर पिछले लगभग आठ माह से ज्यादा समय से प्रदर्शन कर रहे हैं। इस दौरान केंद्र सरकार की किसान संगठनों से कई दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं, जिनका कोई नतीजा नहीं निकल सका है। किसान संगठनों का कहना है कि तीनों प्रमुख कृषि कानून वापस लिए बिना कोई बात नहीं बनेगी।

शरद पवार ने कहा कि मंत्रियों का एक समूह इस कानून पर विचार कर रहा है। अगर यह समूह कुछ अच्छे और किसानों के हक में जरूरी बदलाव लेकर आता है तो इन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव लाने की जरूरत नहीं है।

केंद्र को किसानों से बातचीत की पहली करनी चाहिए
कृषि कानूनों पर केंद्र से पुनर्विचार की मांग पहले भी कर चुके पवार ने फिर कहा कि किसानों और केंद्र के बीच डेडलॉक की स्थिति बन गई है। इस मामले में केंद्र को ही पहल करनी चाहिए औ किसानों से बातचीत करनी चाहिए।

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