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महाराष्ट्र सरकार ने त्रि-भाषा नीति का आदेश वापस लिया, हिन्दी ‘थोपे’ जाने के आरोपों के बीच उठाया कदम

महाराष्ट्र सरकार ने त्रि-भाषा नीति का आदेश वापस लिया, हिन्दी ‘थोपे’ जाने के आरोपों के बीच उठाया कदम

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मुंबई, 29 जून। महाराष्ट्र सरकार ने त्रि-भाषा नीति से संबंधित गत 16 अप्रैल और 17 जून को जारी किए गए अपने दो आदेशों (GR) को वापस ले लिया है। हिन्दी को तीसरी भाषा के रूप में ‘थोपे जाने’ के आरोपों के बीच विपक्षी दलों के कड़े विरोध के चलते राज्य सरकार ने को यह कदम उठाया। भाजपा की अगुआई वाली महायुति सरकार ने इसके साथ ही इस नीति की समीक्षा और क्रियान्वयन के लिए एक नई समिति गठित करने की घोषणा की है।

त्रि-भाषा नीति की समीक्षा के लिए नई समिति गठित

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने रविवार की शाम यहां एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह जानकारी दी और बताया कि राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में यह निर्णय लिया गया। उन्होंने बताया कि सरकार ने सभी हितधारकों से परामर्श करने के बाद प्राथमिक शिक्षा के लिए त्रि-भाषा नीति की समीक्षा के लिए डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति बनाई है। इस समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही त्रि-भाषा नीति लागू की जाएगी।

शिवसेना (UBT) ने सरकारी आदेश की प्रतियां जलाकर विरोध जताया था

उल्लेखनीय है कि आज ही दिन में शिवसेना (UBT) नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की अगुआई में उनकी पार्टी ने पहले प्राथमिक विद्यालयों में तीन भाषाओं को अनिवार्य बनाने वाले सरकारी प्रस्ताव (जीआर) की प्रतियां जलाई थीं। महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और शिवसेना-यूबीटी नेता आदित्य ठाकरे ने सोशल मीडिया पर विरोध प्रदर्शन की तस्वीरें साझा करते हुए कहा था कि महाराष्ट्र में हिन्दी को थोपना बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

उद्धव ने सीएम रहते माशेलकर समिति की सिफारिशें स्वीकार की थीं

हालांकि उद्धव ठाकरे के प्रदर्शन के जवाब में फडणवीस ने कहा कि उन्होंने पहले कक्षा एक से त्रि-भाषा नीति के कार्यान्वयन के संबंध में माशेलकर समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था। फडणवीस ने कहा, ‘जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने कक्षा एक से तीन भाषा नीति – मराठी, हिन्दी और अंग्रेजी – को लागू करने के माशेलकर पैनल के सुझावों को स्वीकार कर लिया था। उनके मंत्रिमंडल ने भी पैनल के सुझाव को स्वीकार कर लिया था, लेकिन अब वे राजनीति कर रहे हैं। हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि मराठी अनिवार्य रहेगी। वे केवल हिन्दी का विरोध कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने अंग्रेजी को स्वीकार कर लिया है।’

हमारे लिए मराठी भाषा ही केंद्र बिंदु

सीएम फडणवीस ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक समिति की सिफारिशें नहीं आतीं, तब तक त्रि-भाषा नीति से संबंधित दोनों GR रद किए जा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा, ‘हमारे लिए मराठी भाषा ही केंद्र बिंदु है।’

सरकारी आदेश में ये बातें कही गई थीं

गौरतलब है कि राज्य सरकार ने एक संशोधित आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पहली से पांचवीं कक्षा तक हिन्दी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा। यह फैसला राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत प्राथमिक स्तर पर चरणबद्ध क्रियान्वयन का हिस्सा था। हालांकि आदेश में यह भी उल्लेख था कि यदि किसी कक्षा में कम से कम 20 छात्र हिन्दी की जगह कोई अन्य भारतीय भाषा चुनना चाहें, तो स्कूल को उस भाषा के शिक्षक की व्यवस्था करनी होगी या फिर वह विषय ऑनलाइन पढ़ाया जा सकता है।

विपक्षी पार्टियों ने की थी तीखी आलोचना

लेकिन महाराष्ट्र सरकार के इस कदम की विपक्षी पार्टियों ने तीखी आलोचना की। उनका आरोप था कि सरकार क्षेत्रीय भाषाओं को नज़रअंदाज कर हिन्दी को बढ़ावा दे रही है, जिससे राज्य की भाषाई विविधता और मराठी अस्मिता को नुकसान हो सकता है। राज ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने इस नीति के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और मराठी भाषी लोगों से सड़कों पर आकर अपना विरोध जताने की अपील की।

महाराष्ट्र में हिन्दी का विरोध – शिवसेना (UBT) ने तीन भाषाओं को अनिवार्य करने वाले सरकारी प्रस्ताव की प्रतियां जलाईं

मराठी जनभावना के आगे झुकी सरकार : राज ठाकरे

अब सरकार के नए फैसले के बाद मनसे प्रमुख राज ठाकरे का प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हिन्दी भाषा को थोपने की कोशिश को मराठी जनभावना ने पूरी तरह विफल कर दिया है। राज ठाकरे ने कहा कि यह देर से आई समझदारी नहीं, बल्कि यह मराठी जनों के आक्रोश का ही असर है कि सरकार को पीछे हटना पड़ा। सरकार हिन्दी को लेकर इतनी हठधर्मी क्यों थी, और उस पर यह दबाव कहां से था, यह अब भी एक रहस्य है।

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