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कैश कांड में फंसे जस्टिस यशवंत वर्मा ने उठाया बड़ा कदम, सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर की ये मांग

कैश कांड में फंसे जस्टिस यशवंत वर्मा ने उठाया बड़ा कदम, सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर की ये मांग

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नई दिल्ली, 18 जुलाई। न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने दिल्ली के अपने आधिकारिक आवास पर नकदी बरामद होने‌ के मामले में दोषी ठहराए जाने की कार्रवाई की वैधता को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है। न्यायमूर्ति वर्मा ने एक रिट याचिका दायर कर अपने मामले में गठित न्यायाधीशों की एक विशेष समिति की आंतरिक जाँच रिपोर्ट में दोषी ठहराए जाने की कार्रवाई की वैधता को चुनौती दी है।

उन्होंने याचिका में आंतरिक प्रक्रिया की वैधता पर सवाल उठाते हुए निष्पक्ष सुनवाई और उचित प्रक्रिया से इनकार करने का आरोप लगाया है। उन्होंने न्यायाधीशों उक्त समिति की जाँच शुरू करने से पहले औपचारिक शिकायत दर्ज न किए जाने का मुद्दा भी उठाया। न्यायमूर्ति वर्मा ने तर्क दिया कि 22 मार्च, 2025 को उनके खिलाफ आरोपों का खुलासा करते हुए एक प्रेस विज्ञप्ति अपलोड करने के शीर्ष अदालत के कृत्य से मीडिया में तीखी अटकलें लगाई गईं, जिससे उनकी प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और गरिमा धूमिल हुयी है।

उन्होंने यह भी दावा किया कि मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा गठित न्यायाधीशों की समिति ने उन्हें आरोपों का खंडन करने या गवाहों से जिरह करने का अवसर नहीं दिया। उन्होंने तर्क दिया कि उन्हें हटाने की सिफारिश बिना किसी व्यक्तिगत कारण के अपना पक्ष रखने का अवसर दिये की गई है।

गौरतलब है कि यह नकदी कथित तौर पर 14-15 मार्च, 2025 को हुई आग की घटना के दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर मिली थी। बाद में न्यायाधीश का स्थानांतरण उनके मूल उच्च न्यायालय, इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कर दिया गया।

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने 22 मार्च, 2025 को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शील नागू की अध्यक्षता में एक समिति गठित की, जिसमें हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल थीं।

समिति ने न्यायमूर्ति वर्मा सहित 55 गवाहों के बयानों का विश्लेषण करने और 10 दिनों तक जाँच की और 03 मई, 2025 को उन्हें अभियोग लगाते हुए अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने आगे की कार्रवाई के लिए रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी क्योंकि न्यायमूर्ति वर्मा ने कथित तौर पर पद छोड़ने से इनकार कर दिया था।

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