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न्यायमूर्ति बीआर गवई होंगे भारत के अगले प्रधान न्यायाधीश, 14 मई को लेंगे शपथ

न्यायमूर्ति बीआर गवई होंगे भारत के अगले प्रधान न्यायाधीश, 14 मई को लेंगे शपथ

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नई दिल्ली, 16 अप्रैल। न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई 14 मई को भारत के अगले प्रधान न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ लेंगे। वह वर्तमान प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की जगह लेंगे, जो 13 मई को सेवानिवृत्त होने वाले हैं।

बतौर सीजेआई छह माह तक रहेगा जस्टिस गवई का कार्यकाल

सीजेआई संजीव खन्ना ने परंपरा के अनुसार न्यायमूर्ति गवई को अपना उत्तराधिकारी नामित करते हुए केंद्रीय विधि मंत्रालय को एक प्रस्ताव भेजा है। मंत्रालय ने पहले प्रधान न्यायाधीश से उनके उत्तराधिकारी के नाम का प्रस्ताव मांगा था। न्यायमूर्ति गवई लगभग छह माह तक भारत के प्रधान न्यायाधीश रहेंगे, क्योंकि वे नवम्बर में सेवानिवृत्त होने वाले हैं।

दिलचस्प यह है कि न्यायमूर्ति केजी बालकृष्णन के बाद जस्टिस गवई प्रधान न्यायाधीश का पद संभालने वाले दूसरे दलित होंगे, जिन्हें 2007 में देश के शीर्ष न्यायिक पद पर पदोन्नत किया गया था।

1985 में बार में शामिल हुए थे अमरावती निवासी जस्टिस गवई

महाराष्ट्र के अमरावती से ताल्लुक रखने वाले न्यायमूर्ति गवई 1985 में बार में शामिल हुए और बॉम्बे उच्च न्यायालय के पूर्व महाधिवक्ता और न्यायाधीश बैरिस्टर राजा भोंसले के साथ काम किया। इसके बाद उन्होंने 1987 से 1990 तक बॉम्बे उच्च न्यायालय में स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस की। इसके बाद उन्होंने मुख्य रूप से संवैधानिक कानून और प्रशासनिक कानून से संबंधित मामलों में बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के समक्ष प्रैक्टिस की। अगस्त,1992 में उन्हें बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक नियुक्त किया गया।

2019 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में प्रोन्नत

जस्टिस गवई को 2000 में नागपुर पीठ के लिए सरकारी वकील और लोक अभियोजक नामित किया गया। न्यायमूर्ति गवई 2003 में उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश और 2005 में स्थायी न्यायाधीश बने। उन्हें 2019 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया।

सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति गवई कई ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा रहे हैं। इनमें केंद्र के 2016 के विमुद्रीकरण के फैसले को बरकरार रखने वाला फैसला और चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक घोषित करने वाला शीर्ष अदालत का फैसला शामिल है।

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