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मुनीर को अमेरिकी सेना दिवस पर बुलाना भारत के लिए कूटनीतिक झटका: कांग्रेस

मुनीर को अमेरिकी सेना दिवस पर बुलाना भारत के लिए कूटनीतिक झटका: कांग्रेस

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नई दिल्ली, 12 जून। कांग्रेस ने कहा है कि पहलगाम आतंकवादी हमले से पहले भड़काऊ बयान देने वाले पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को अमेरिकी सेना दिवस पर शामिल होने के लिए बुलाना गंभीर चिंता का विषय और भारत की सामरिक विफलता का प्रतीक भी है।

पार्टी ने कहा कि अमेरिका से इस तरह की खबरें आना हमारी कूटनीतिक स्थिति को असहज बनता है और मजबूत कूटनीति को इस तरह कमजोर होते देखना चिंता पैदा करता है इसलिए सरकार को इस मुद्दे पर तुरंत सर्वदलीय बैठक और संसद का विशेष सत्र बुलाना चाहिए।

कांग्रेस संचार विभाग के प्रभारी जयराम रमेश ने आज यहां एक बयान में कहा ”खबर है कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को अमेरिका के सेना दिवस (14 जून) के मौके पर वॉशिंगटन डीसी में आयोजित कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया है। यह खबर भारत के लिए कूटनीतिक और सामरिक दृष्टि से एक बड़ा झटका है।”

उन्होंने कहा कि यह वही व्यक्ति हैं जिसने पहलगाम आतंकी हमले से ठीक पहले भड़काऊ और उकसाने वाली भाषा का इस्तेमाल किया था- सवाल उठता है कि अमेरिका की मंशा क्या है। अभी अमेरिकी सेंट्रल कमांड के प्रमुख ने भी बयान दिया था कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान, अमेरिका का एक ‘शानदार साझेदार’ है। मोदी सरकार कह रही है कि ऑपरेशन सिंदूर अभी जारी है, ऐसे में पाकिस्तानी सेना प्रमुख का अमेरिकी सेना दिवस में बतौर अतिथि शामिल होना निश्चित ही गंभीर चिंता का विषय है।”

कांग्रेस नेता ने कहा कि ट्रम्प प्रशासन लगातार ऐसे बयान दे रहा है जिसके यही मायने निकाले जा सकते हैं कि अमेरिका भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू में रखकर देख रहा है। अमेरिका सहित पूरी दुनिया को पाकिस्तान की आतंकवाद-समर्थक भूमिका से अवगत कराकर लौटे प्रतिनिधिमंडल का प्रधानमंत्री अभी स्वागत-सत्कार कर ही रहे हैं और उसी वक्त वॉशिंगटन डीसी से इस तरह की खबरें आ रही हैं जो भारत की कूटनीतिक स्थिति को और असहज बनाती हैं।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अब अपनी हठ और प्रतिष्ठा की चिंता छोड़कर एक सर्वदलीय बैठक और संसद का विशेष सत्र बुलाना चाहिए ताकि राष्ट्र अपनी सामूहिक इच्छा-शक्ति को स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सके और देश के सामने एक ठोस रोडमैप प्रस्तुत किया जा सके। दशकों की कूटनीतिक प्रगति को इतनी आसानी से कमजोर नहीं होने दिया जा सकता।

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