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भारत का प्रत्यक्ष कर संग्रह 16% बढ़कर 25.86 लाख करोड़ रुपये पर पहुंचा

भारत का प्रत्यक्ष कर संग्रह 16% बढ़कर 25.86 लाख करोड़ रुपये पर पहुंचा

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नई दिल्ली, 18 मार्च। आयकर विभाग के अनुसार चालू वित्त वर्ष की 1 अप्रैल, 2024 से 16 मार्च, 2025 के दौरान भारत के प्रत्यक्ष कर संग्रह में पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि की तुलना में 16.2 प्रतिशत की जबरदस्त वृद्धि दर्ज की गई, जो 25.86 लाख करोड़ रुपये हो गई है।

प्रत्यक्ष करों में कॉर्पोरेट कर, व्यक्तिगत आयकर और प्रतिभूति लेनदेन कर शामिल

प्रत्यक्ष करों में कॉर्पोरेट कर, व्यक्तिगत आयकर और प्रतिभूति लेनदेन कर शामिल हैं। चालू वित्त वर्ष में 16 मार्च तक कॉर्पोरेट कर संग्रह बढ़कर 12.40 लाख करोड़ रुपये हो गया, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में यह 10.1 लाख करोड़ रुपये था।

इसी अवधि के दौरान व्यक्तिगत आयकर संग्रह पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के 10.91 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 12.90 करोड़ रुपये हो गया। प्रतिभूति लेनदेन कर (एसटीटी) संग्रह में भी तीव्र वृद्धि दर्ज की गई, जो पिछले वर्ष के 34,131 करोड़ रुपये की तुलना में 53,095 करोड़ रुपये तक पहुंच गया।

संपत्ति कर सहित अन्य करों में मामूली गिरावट

वहीं संपत्ति कर सहित अन्य करों में मामूली गिरावट देखी गई, जो 3,656 करोड़ रुपये से घटकर 3,399 करोड़ रुपये रह गया। रिफंड के लिए लेखांकन के बाद, जिसमें 32.51 प्रतिशत की पर्याप्त वृद्धि दर्ज की गई, जो 4.6 लाख करोड़ रुपये हो गई, शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह 21.26 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में 18.8 लाख करोड़ रुपये के इसी आंकड़े से 13.13 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।

कर संग्रह में उछाल इस बात का दे रहा संकेत

कर संग्रह में उछाल एक मजबूत व्यापक आर्थिक वित्तीय स्थिति को दर्शाता है, जिसमें सरकार आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश करने के लिए अधिक धन जुटा रही है।

राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने में भी करता है मदद

यह राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने में भी मदद करता है। कम राजकोषीय घाटे का मतलब है कि सरकार को कम उधार लेना पड़ता है, जिससे बड़ी कंपनियों के लिए बैंकिंग प्रणाली में उधार लेने और निवेश करने के लिए अधिक पैसा बचता है।

इससे आर्थिक विकास दर में होती है वृद्धि 

इससे आर्थिक विकास दर में वृद्धि होती है और अधिक रोजगार सृजन होता है। इसके अलावा, कम राजकोषीय घाटा मुद्रास्फीति दर को नियंत्रण में रखता है, जिससे अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत होती है और स्थिरता के साथ विकास सुनिश्चित होता है। (इनपुट-एजेंसी)

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