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भारतीय अमेरिकी समूहों ने रटगर्स विश्वविद्यालय परिसर में अलगाववादी कश्मीरी झंडा नहीं लगाने का किया आग्रह

भारतीय अमेरिकी समूहों ने रटगर्स विश्वविद्यालय परिसर में अलगाववादी कश्मीरी झंडा नहीं लगाने का किया आग्रह

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वाशिंगटन, 4 मई। भारतीय-अमेरिकी समुदाय के प्रमुख संगठनों ने अमेरिका के न्यूजर्सी में स्थित रटगर्स विश्वविद्यालय के कुलाधिपति से परिसर में अलगाववादी कश्मीरी झंडा लगाने की इजाजत नहीं देने का आग्रह किया और जोर देते हुए कहा कि ऐसा करने से अमेरिकी शैक्षणिक संस्थानों में फलस्तीन के समर्थन में हो रहे प्रदर्शनों के बीच एक गलत संदेश जाएगा।

अमेरिका के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में फलस्तीनी समर्थक गाजा में इजराइली सेना की कार्रवाई के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शन कर रहे विद्यार्थियों के एक समूह ने शुक्रवार को कहा कि उनकी 10 में से आठ मांग रटगर्स विश्वविद्यालय के प्रशासन ने मान ली हैं। प्रदर्शनकारियों की नौवीं मांग है कि ”रटगर्स परिसरों में जहां-जहां अंतरराष्ट्रीय झंडे लगे हुए हैं उन जगहों पर फलस्तीन, कुर्द और कश्मीरियों के क्षेत्रों के झंडे लगाये जाएं, जिन पर कब्जा किया हुआ है।”

हालांकि, जानकार सूत्रों ने बताया कि विश्वविद्यालय ने प्रदर्शनकारी समूह की मांगें नहीं मानी हैं। उन्होंने बताया कि कुलाधिपति कार्यालय रटगर्स के न्यू ब्रंसविक परिसर में लगे हुए झंडों का जायजा लेगा और विश्वविद्यालय में दाखिला लेने वाले पंजीकृत छात्रों का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करेगा।

प्रदर्शनकारी समूह के दावों से कई भारतीय अमेरिकी समूह नाराज हो गए। उन्होंने विश्वविद्यालय से आग्रह किया कि वह अपने परिसर में अलगाववादी कश्मीरी झंडे लगाने की अनुमति न दे। हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (एचएएफ) के सुहाग शुक्ला ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ”रटगर्स विश्वविद्यालय ‘झुक गया है’।”

‘कोएलिशन ऑफ हिंदी ऑफ नॉर्थ अमेरिका’ (सीओएचएनए) ने भी ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ”रटगर्स विश्वविद्यालय ने नफरत के आगे झुकते हुए उस झंडे को लगाने की मंजूरी दे दी, जिससे कश्मीर में बचे हुए मामूली मूल अल्पसंख्यकों में डर फैल गया।”

संगठन ने कहा, ”इस झंडे के तले कश्मीरी हिंदुओं को उनकी उस मातृभूमि कश्मीर से व्यवस्थित रूस से बाहर निकाल दिया गया जिसका नाम प्राचीन हिंदू ऋषि कश्यप के नाम पर रखा गया था।’’ धर्म विवेका संगठन ने ‘एक्स’ पर कहा, ”रटगर्स विश्वविद्यालय ने सभी सार्वजनिक संस्थानों, विशेषकर अमेरिका के विश्वविद्यालयों के लिए एक डरावना उदाहरण पेश किया है।”

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