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गुजरात चुनाव : पाटीदारों को मनाने में भाजपा कितनी सफल? जानें, ग्रामीण इलाकों के वोटर का मिजाज

गुजरात चुनाव : पाटीदारों को मनाने में भाजपा कितनी सफल? जानें, ग्रामीण इलाकों के वोटर का मिजाज

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अहमदाबाद, 24 नवम्बर। गुजरात में 2022 का चुनाव वर्ष 2017 से काफी अलग है। पिछले चुनाव आरक्षण की मांग को लेकर पाटीदार आंदोलन की छाया में हुए थे। कांग्रेस ने ग्रामीण संकट को एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया था। यही वजह रही कि भाजपा गुजरात में साधारण बहुमत हासिल कर पाई जबकि कांग्रेस ने सीट शेयर के मामले में 1985 के बाद से राज्य में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दर्ज किया। कांग्रेस की सीटों की संख्या में सुधार की एक बड़ी वजह ग्रामीण इलाकों में दमदार प्रदर्शन था।

लेकिन इस चुनाव में ग्रामीण क्रोध हावी नहीं दिख रहा। भाजपा ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण और हार्दिक पटेल जैसे पाटीदार आंदोलन के नेताओं को पार्टी के साथ शामिल कर इन मुद्दों को अपने नियंत्रण में कर लिया है। हालांकि यह प्रश्न भी है कि किसानों के मुद्दे चुनाव अभियान पर इतने हावी क्यों नहीं हो रहे?

कृषि विकास से जुड़े आंकड़े खास उत्साहजनक नहीं

गुजरात के लिए कृषि विकास के आधिकारिक आंकड़े 2020-21 तक ही उपलब्ध हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2020-21 में गुजरात में कृषि और संबद्ध गतिविधियां केवल 1.1% बढ़ी हैं। यह पिछले चुनाव 2017-18 के 9.2% के आंकड़े से काफी कम है।

गुजरात में ग्रामीण मजदूरी देश से अलग नहीं

गुजरात के लिए ग्रामीण मजदूरी डेटा सितम्बर, 2022 तक उपलब्ध है। ग्रामीण मजदूरी में गुजरात शेष भारत से बहुत अलग नहीं है। ग्रामीण मजदूरी पिछले कुछ महीनों से अखिल भारतीय स्तर और राज्य दोनों स्तरों पर कम हो रही है। इससे पता चलता है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था मंदी में है।

यह केंद्र सरकार के प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) का विस्तार करने के फैसले की वजह भी है। इसमें लाभार्थियों को दिसंबर तक अतिरिक्त 5 किलो खाद्यान्न दिया जाना है। चुनाव में इस बार ग्रामीण गुस्से में क्यों नहीं हैं, इसके लिए हमें गहराई में जाकर देखना होगा।

कपास और मूंगफली हो सकते हैं एक्स-फैक्टर

गुजरात में कृषि देश के अधिकतर राज्यों से बहुत अलग है। कपास और मूंगफली, ये दो फसलें गुजरात की कृषि अर्थव्यवस्था में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि 2011-12 और 2019-20 के बीच गुजरात में फसल उत्पादन के कुल मूल्य में इन दोनों फसलों की हिस्सेदारी 40% तक रही है। फसल उत्पादन के कुल मूल्य में इन दो फसलों के हिस्से की तुलना करें तो पता चलता है कि पहले काफी उतार-चढ़ाव हुआ है।

कपास व मूंगफली की कीमत उच्च स्तर पर

सीएमआईई के कमोडिटी प्राइस डेटा के अनुसार मूंगफली और कपास की प्रति क्विंटल कीमत अब तक के सबसे उच्चतम स्तर पर है। अक्टूबर, 2022 में मूंगफली की कीमत 5,857 रुपये प्रति क्विंटल तथा कपास की कीमत 7,876 रुपये प्रति क्विंटल थी। 2017 में जब पिछली बार गुजरात में विधानसभा चुनाव हुए थे, तब अक्टूबर 2017 में मूंगफली की कीमत 4,150 रुपए और कपास की कीमत 4,430 रुपए प्रति क्विंटल थी।

यानी अभी कीमत पांच साल पहले की तुलना में काफी ज्यादा है। यह सिर्फ मंहगाई की वजह से नहीं है वरन अक्टूबर, 2017 में इन दोनों फसलों की कीमत पूर्व के इतिहास की तुलना में कम थी। यह संभावना है कि गुजरात के किसानों के लिए दो सबसे महत्वपूर्ण फसलों की कीमतों में उछाल ने इन चुनावों में ग्रामीण गुस्से को शांत कर दिया है। ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों के नतीजे इस तर्क को साबित या खारिज करेंगे।

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