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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज नरीमन की कानून मंत्री रिजिजू को दो टूक – तब तो ‘रसातल में चला जाएगा देश’

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज नरीमन की कानून मंत्री रिजिजू को दो टूक – तब तो ‘रसातल में चला जाएगा देश’

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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज नरीमन की कानून मंत्री रिजिजू को दो टूक – तब तो रसातल में चला जाएगा देश

नई दिल्ली, 28 जनवरी। कॉलेजियम प्रणाली को लेकर केंद्र और सुप्रीम कोर्ट के बीच जारी विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन फली नरीमन ने कानून मंत्री किरेन रिजिजू को फटकार लगाई है, जो कई बार खुले मंच से कॉलेजियम की आलोचना कर चुके हैं। अगस्त, 2021 में रिटायर होने से पहले खुद खुद कॉलेजियम का हिस्सा रहे जस्टिस नरीमन ने इसी क्रम में कानून मंत्री को याद दिलाया कि अदालत के फैसले को स्वीकार करना उनका ‘कर्तव्य’ है, चाहे वह ‘सही हो या गलत’।

कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित न्यायाधीशों की नियुक्ति न करना लोकतंत्र के लिए घातक

जस्टिस नरीमन ने मुंबई विश्वविद्यालय में सातवें मुख्य न्यायाधीश एम.सी. छागला स्मृति व्याख्यान में अपने संबोधन के दौरान रिजिजू के ‘आक्षेप’ के लिए उनकी निंदा करते हुए कहा कि कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित न्यायाधीशों के नामों पर फैसला नहीं लेना लोकतंत्र के लिए ‘घातक’ है।

उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता क्या है, जब स्वतंत्र और निडर न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं की जा रही है। यदि स्वतंत्र न्यायपालिका का आखिरी स्तंभ गिर जाता है, तो देश रसातल में चला जाएगा और ‘एक नए अंधकार युग’ की शुरुआत होगी।

5 न्यायाधीशों की एक विशेष पीठ के गठन का भी आह्वान

शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश नरीमन ने विशेष पांच-न्यायाधीशों की एक पीठ के गठन का भी आह्वान किया। उन्होंने कहा कि एक बार कॉलेजियम द्वारा किसी न्यायाधीश के नाम की सिफारिश करने के बाद सरकार को 30 दिनों के निश्चित समय के भीतर जवाब देना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘नामों पर फैसला नहीं लेना लोकतंत्र के लिए घातक है क्योंकि आप केवल यह कर रहे हैं कि आप एक विशेष कॉलेजियम की प्रतीक्षा कर रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि अगला कॉलेजियम अपना विचार बदलेगा। नियुक्ति एक उचित समय अवधि के भीतर की जानी चाहिए।’

उन्होंने कहा, ‘संविधान इसी तरह काम करता है, और यदि आपके पास स्वतंत्र और निडर न्यायाधीश नहीं हैं तो कुछ नहीं बचा है। वास्तव में, मेरे अनुसार, यदि लोकतंत्र का यह स्तंभ गिर जाता है, तो हम एक नए अंधकार युग में चले जाएंगे।’ स्मरण रहे रिजिजू ने न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी कॉलेजियम प्रणाली पर बार-बार सवाल उठाया है।

नाम लिए बिना उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पर भी निशाना साधा

जस्टिस नरीमन ने नाम लिए बिना उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पर भी निशाना साधा, जिन्होंने बुनियादी ढांचे के सिद्धांत पर सवाल उठाया था। उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल में कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को रद करना संसदीय संप्रभुता के साथ एक गंभीर समझौता था।

जस्टिस नरीमन ने कहा, ‘हमने इस प्रक्रिया (न्यायाधीशों की नियुक्ति) के खिलाफ केंद्रीय कानून मंत्री की निंदा सुनी है। मैं कानून मंत्री को आश्वस्त करता हूं कि दो बहुत ही बुनियादी संवैधानिक मूलभूत बातें हैं, जिन्हें उन्हें जानना चाहिए। एक मौलिक बात यह है कि अमेरिका के विपरीत, भारत में कम से कम पांच न्यायाधीशों पर संविधान की व्याख्या के लिए भरोसा किया जाता है। इसलिए, संविधान की व्याख्या करने के लिए इस संविधान पीठ पर भरोसा किया जाता है और एक बार जब वे ऐसा कर लेते हैं, तो एक प्राधिकारी के रूप में यह आपका कर्तव्य है कि आप उस निर्णय का पालन करें।’

उन्होंने कहा, ‘आप इसकी आलोचना कर सकते हैं…एक नागरिक के तौर पर मैं इसकी आलोचना कर सकता हूं…कोई समस्या नहीं…लेकिन यह कभी न भूलें कि आप एक प्राधिकारी (अथॉरिटी) हैं और एक प्राधिकारी के तौर पर आप सही या गलत के फैसले से बंधे हैं।’

लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है न्यायपालिका की स्वतंत्रता

जस्टिस नरीमन ने बुनियादी संरचना के मुद्दे पर कहा कि इसे 40 साल से अधिक समय पहले दो बार समाप्त करने की कोशिश की गई, लेकिन उसके बाद तब से अब तक हालिया घटना को छोड़कर किसी ने भी एक शब्द नहीं कहा। उन्होंने कहा कि भारत ने अमेरिका की तुलना में एक अलग दृष्टिकोण अपनाया, जहां न्यायपालिका न्यायाधीशों की नियुक्ति में शामिल नहीं है। उन्होंने कहा कि यहां संवैधानिक सिद्धांत न्यायपालिका की स्वतंत्रता है और यह लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है।

सीजेआई से बेहतर कौन जानता होगा कि न्यायाधीश नियुक्त किया जाना चाहिए या नहीं

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश नरीमन ने कहा, ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता क्या है अगर स्वतंत्र और निडर न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं की जा रही है। भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) से बेहतर कौन जानता होगा कि न्यायाधीश नियुक्त किया जाना चाहिए या नहीं।’ उन्होंने कहा कि बाद में यह फैसला किया गया कि प्रधान न्यायाधीश के अलावा वरिष्ठ न्यायाधीशों से भी सलाह ली जाएगी और न्यायपालिका ने नियुक्ति प्रक्रिया को अपने हाथों में ले लिया।

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