विदेश मंत्री एस. जयशंकर का जॉर्ज सोरोस पर पलटवार, अरबपति निवेशक को बताया ‘बुजुर्ग, अमीर और खतरनाक’
नई दिल्ली, 18 फरवरी। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने अरबपति निवेशक जॉर्ज सोरोस के पीएम नरेंद्र मोदी पर की गई विवादास्पद टिप्पणी को लेकर उनपर पलटवार किया है और इस अरबपति निवेशक को ‘बुजुर्ग, अमीर और खतरनाक करार दिया है।’
एस. जयशंकर ने सोरोस पर प्रहार करते हुए कहा, ‘सोरोस मानते हैं कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, लेकिन प्रधानमंत्री लोकतांत्रिक नहीं है। कुछ समय पहले ही उन्होंने हम पर आरोप लगाया था कि हम करोड़ों मुस्लिमों की नागरिकता छीनने की कोशिश कर रहे हैं, जो कि जाहिर तौर पर नहीं हुआ।’
सोरोस को आड़े हाथों लेते हुए जयशंकर ने कहा – ‘मैं कह सकता हूं कि मिस्टर सोरोस एक बुजुर्ग, अमीर और राय रखने वाले व्यक्ति हैं, जो कि अब भी न्यूयॉर्क में बैठे हैं और सोचते हैं कि उनके विचारों से फैसला होना चाहिए कि पूरी दुनिया कैसे चलेगी। मैं सोरोस को सिर्फ बुजुर्ग, अमीर और राय रखने वाला कहकर रुक सकता हूं। लेकिन वे बुजुर्ग, अमीर और राय रखने वाले के साथ खतरनाक भी हैं।’
‘ऐसे लोग वास्तव में कथाओं को आकार देने में संसाधनों का निवेश करते हैं‘
विदेशमंत्री जयशंकर ने यह भी कहा, ‘ऐसे लोग वास्तव में कथाओं को आकार देने में संसाधनों का निवेश करते हैं। उनके जैसे लोग सोचते हैं कि चुनाव अच्छा है अगर वे जिस व्यक्ति को देखना चाहते हैं, जीतते हैं और अगर चुनाव एक अलग परिणाम देता है तो वे कहेंगे कि यह एक त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र है और सुंदरता यह है कि यह सब खुले समाज की वकालत के बहाने किया जाता है।’
जॉर्ज सोरोस ने क्या कहा था?
अरबपति सोरोस ने पिछले गुरुवार को म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में कहा था कि गौतम अडानी के कारोबारी साम्राज्य में जारी उठापटक सरकार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पकड़ को कमजोर कर सकती है। उनके इस बयान को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भारतीय लोकतंत्र पर हमले के रूप पेश किया है। लगभग 8.5 बिलियन डॉलर की नेटवर्थ वाले सोरोस ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के संस्थापक हैं। यह फाउंडेशन लोकतंत्र, पारदर्शिता और बोलने की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने वाले समूहों और व्यक्तियों को अनुदान देता है।
वर्ष 1930 में हंगरी के बुडापेस्ट में एक समृद्ध यहूदी परिवार में जन्मे सोरोस का शुरुआती जीवन 1944 में नाजियों के आगमन से बुरी तरह प्रभावित हुआ। परिवार अलग हो गया और नाजी शिविरों में भेजे जाने से बचने के लिए उसने फर्जी कागजात का सहारा लिया। उसी समय परिवार के सदस्यों ने अपने उपनाम को ‘श्वार्ज’ से बदलकर ‘सोरोस’ कर दिया ताकि यहूदी पहचान उजागर न हो।