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‘मेरे लिए गोल पोस्ट ही सब कुछ है, मैं दिखाना चाहता था कि इसका ओनर मैं हूं’

‘मेरे लिए गोल पोस्ट ही सब कुछ है, मैं दिखाना चाहता था कि इसका ओनर मैं हूं’

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टोक्यो, 5 अगस्त। विश्व हॉकी में बीते जमाने के अपने स्वर्णिम युग की ओर वापसी के लिए प्रयासरत मौजूदा भारतीय टीम भले ही मॉस्को ओलंपिक (1980, स्वर्ण पदक) की बराबरी नहीं कर सकी, लेकिन एफआईएच विश्व रैंकिंग में तीसरा क्रम और 40 वर्षों बाद हासिल कोई पदक इस तथ्य की गवाही देने के लिए पर्याप्त हैं कि हमारे रणबांकुरे कुछ उसी दिशा में बढ़ रहे हैं।

भारतीय हॉकी प्रशंसकों के लिए यह वाकई गौरवशाली क्षण था, जब टोक्यो के ओआई स्टेडियम की नार्थ पिच पर मनप्रीत सिंह की अगुआई में उतरी राष्ट्रीय टीम ने 1-3 से पिछड़ने के बाद असाधारण वापसी करते हुए कद्दावर जर्मनी को 5-3 से हराने के साथ कांस्य पदक पर अधिकार कर लिया।

4 दशक बाद मिला पदक किसी स्वर्ण तमगे से कम नहीं

सचमुच, चार दशक के इंतजार के बाद मिला यह पदक आठ बार के पूर्व चैंपियनों के लिए किसी स्वर्ण से कम नहीं था। भारत में सबकी खुशियां किस कदर हिलोरें मार रही थीं, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कप्तान मनप्रीत और कोच से सीधे फोन पर बात कर उन्हें जीत की बधाई दी।

उधर मैदान पर मौजूद टीम की प्रसन्नता की कोई ठिकाना ही नहीं था। टीम का हर सदस्य अपने-अंदाज में हर्षित था। इनमें गोलकीपर परातु रवींद्रन (पीआर) श्रीजेश शायद सबसे ज्यादा प्रफुल्लित थे, तभी तो वह कुछ क्षणों के लिए गोल पोस्ट पर जा बैठे। आखिर, उनका वर्षों पुराना सपना जो साकार हुआ था।

हालांकि श्रीजेश जीत के बाद जश्न मनाते हुए कम ही दिखते हैं और बेहद शांत स्वभाव वाले शख्सियत हैं।  लेकिन यह जीत यादगार है तो उनका जश्न मनाने का यह तरीका भी हॉकी प्रशंसको को याद रहेगा। हर किसी के लिए यह जिज्ञासा का विषय था कि एर्नाकुलम (केरल) में जन्मे इस 33 वर्षीय अनुभवी खिलाड़ी के जश्न मनाने का यह कैसा तरीका था। फिलहाल जल्द ही इसका जवाब भी मिल गया, जब देश के प्रमुख समाचार चैनल ‘आज तक’ ने उनसे बात की।

मैंने अपनी पूरी जिंदगी गोल पोस्ट पर ही बिताई है

टूर्नामेंट के दौरान ज्यादार समय तक विपक्षी टीमों के लिए ‘दीवार’ साबित हुए श्रीजेश ने कहा, ‘मेरे लिए गोल पोस्ट ही सब कुछ है। मैंने अपनी पूरी जिंदगी गोल पोस्ट पर ही बिताई है। इसलिए मैं यह दिखाना चाहता था कि इस गोल पोस्ट का ओनर मैं हूं।’

जर्मनी के खिलाफ मैच को ही लीजिए, श्रीजेश ने 13 में नौ बचाव किए। उन्होंने भारत के खिलाफ मिले पांच शॉर्ट कॉर्नर में चार रोके तो गोल पर हुए आठ हमलों में पांच बेकार किए।

 21 साल का अनुभव इस 60 मिनट में झोंक दो

श्रीजेश ने कहा, ‘मैं आज हर चीज के लिए तैयार था। ये 60 मिनट सबसे अहम थे। मैं 21 साल से हॉकी खेल रहा हूं और मैंने खुद से इतना ही कहा कि 21 साल का अनुभव इस 60 मिनट में झोंक दो।’ जर्मनी को मिले आखिरी पेनाल्टी कॉर्नर पर उन्होंने कहा, ‘ मैंने खुद से इतना ही कहा कि तुम 21 साल से खेल रहे हो और अभी तुम्हे यही करना है। एक पेनल्टी बचानी है।’

उन्होंने कहा, ‘मेरी प्राथमिकता गोल होने से रोकना है। इसके बाद दूसरा काम सीनियर खिलाड़ी होने के नाते टीम का हौसला बढ़ाना है। मुझे लगता है कि मैंने अपना काम अच्छे से किया।’ मैच के बाद उन्होंने अपने पिता को वीडियो कॉल किया। उन्होंने कहा, ‘मैंने सिर्फ उन्हें फोन किया… मैं उन्हें बताना चाहता था कि हमने पदक जीत लिया है और मेरा पदक उनके लिए है।’

कप्तान मनप्रीत बोले –  हमने अपने नेचुरल गेम पर फोकस किया

इस ऐतिहासिक जीत के बाद कप्तान मनप्रीत सिंह ने कहा, ‘हमने मुकाबले से पहले दबाव नहीं लिया। हम यह सोचकर उतरे थे कि एन्जॉय करेंगे। जो हमारा नेचुरल गेम है, उसी को खेलना है। हमने आपस में बात की थी कि अगर हम मेडल के बारे में ज्यादा सोचेंगे तो हम अपना गेमप्लान नहीं बना पाएंगे। हमें शुरू से आखिर तक अपना बेस्ट देना था और हम लोगों ने वही किया। हम 1-3 से पीछे भी थे। उस वक्त भी हम पॉजिटिव रहे और किसी भी खिलाड़ी ने हार नहीं मानी थी।’

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