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शतरंज : दिव्या देशमुख ने रचा इतिहास, कोनेरू हम्पी को हरा फिडे महिला विश्व कप जीतने वाली पहली भारतीय बनीं

शतरंज : दिव्या देशमुख ने रचा इतिहास, कोनेरू हम्पी को हरा फिडे महिला विश्व कप जीतने वाली पहली भारतीय बनीं

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नई दिल्ली, 28 जुलाई। 19 वर्षीया किशोरी दिव्या देशमुख ने विश्व महिला शतरंज इतिहास में नए अध्याय का सृजन किया, जब उन्होंने जॉर्जियाई शहर बातूमि में टाईब्रेक तक खिंचे FIDE महिला विश्व कप 2025 फाइनल में हमवतन अनुभवी ग्रैंडमास्टर कोनेरू हम्पी को शिकस्त दी और विश्व खिताब जीतने वालीं भारत की पहली महिला खिलाड़ी बन बैठीं।

टाईब्रेक तक खिंचे फाइनल में हम्पी 1.5-2.5 से परास्त

फिडे विश्व रैंकिंग में 18वें नंबर की खिलाड़ी नागपुरवासी दिव्या देशमुख ने सोमवार को फाइनल के टाईब्रेक में कोनेरू हम्पी को 2.5-1.5 के स्कोर से हराकर लगभग 43.23 लाख रुपये (50,000 डॉलर) की पुरस्कार राशि जीती जबकि हम्पी को 30.26 लाख रुपये (35,000 डॉलर) से संतोष करना पड़ा।

दरअसल, फाइनल का नतीजा टाईब्रेक तक पहुंच गया क्योंकि फाइनल में दो क्लासिकल गेम के बाद दोनों खिलाड़ी 1-1 से बराबरी पर थीं। अब परिणाम 10 मिनट के दो रैपिड मैचों के परिणाम पर निर्भर था, जिसमें प्रत्येक चाल के बाद समय में 10 सेकेंड की वृद्धि होती थी।

देशमुख ने सफेद मोहरों से शुरुआत की। लेकिन विश्व रैंकिंग में पांचवें नंबर पर काबिज हम्पी ने बाजी ड्रॉ कराने के साथ मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल कर ली। इसके बाद रैपिड राउंड के दूसरे गेम में दिव्या शुरुआत में ही हावी हो गईं। उन्होंने अनुभवी हम्पी को मात देकर न सिर्फ चैम्पियनशिप जीती, बल्कि भारतीय शतरंज में एक नई उपलब्धि भी दर्ज कर ली।

खिताबी जीत के साथ दिव्या देश की 88वीं ग्रैंडमास्टर भी बन गईं

रैपिड टाईब्रेकर में काले मोहरों से खेल रहीं दिव्या ने टूर्नामेंट की टॉप सीड और वर्ल्ड रैपिड चेस चैम्पियन हम्पी के सामने बेहतरीन खेल दिखाया और जीत हासिल करने के साथ ही अपना सपना पूरा किया। दरअसल, खिताब के साथ ही दिव्या ने ग्रैंड मास्टर बनने का नॉर्म भी पूरा किया और देश की 88वीं ग्रैंडमास्टर बन गईं। इन 88 ग्रैंडमास्टर्स में सिर्फ चार महिला खिलाड़ी शामिल हैं।

दिव्या बोलीं – इस सफलता को समझने के लिए समय चाहिए

दिव्या देशमुख ने अपनी जीत के बाद कहा, ‘मुझे इसे समझने के लिए समय चाहिए। मुझे लगता है कि यह किस्मत की बात थी कि मुझे इस तरह ग्रैंडमास्टर का खिताब मिला। इस टूर्नामेंट से पहले मेरे पास एक भी मानक नहीं था। यह वाकई बहुत मायने रखता है। अभी बहुत कुछ हासिल करना बाकी है। मुझे उम्मीद है कि यह तो बस शुरुआत है।’ इस जीत के बाद दिव्या अपनी मां के साथ जश्न मनाते हुए भावुक हो उठीं।

डॉक्टर माता-पिता की संतान को 5 वर्ष की उम्र से ही शतरंज का शौक

नागपुर में 2005 में जन्मीं दिव्या देशमुख को बचपन से ही शतरंज का खेल पसंद था और उन्होंने पांच वर्ष की वय से ही खेलना शुरू कर दिया था जबकि शतरंज से उनके परिवार का दूर-दूर तक नाता नहीं था क्योंकि उनके माता-पिता दोनों डॉक्टर हैं।

दिव्या ने सात वर्ष की अवस्था में 2012 में अंडर-7 नेशनल चैम्पियनशिप में अपना दबदबा दिखाया और टूर्नामेंट अपने नाम किया। उन्होंने 2021 में महिला ग्रैंडमास्टर का ताज अपने नाम किया। वह 2023 में इंटरनेशनल मास्टर का खिताब भी जीत चुकी हैं अब वह फिडे महिला शतरंज विश्व कप की नई मलिका हैं।

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