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तेल उत्पादन को लेकर सऊदी अरब और यूएई में तकरार, भारत में बढ़ सकता है संकट

तेल उत्पादन को लेकर सऊदी अरब और यूएई में तकरार, भारत में बढ़ सकता है संकट

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नई दिल्ली, 7 जुलाई। निकट भविष्य में पेट्रो उत्पादों की कीमतों में कमी की संभावना नजर नहीं आ रही है। इसकी मख्य वजह यह है कि तेल निर्यातक देशों के समूह ओपेक प्लस देशों के बीच उत्पादन बढ़ाने को लेकर कोई सहमति नहीं बन पाई है। यही नहीं वरन सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बीच आउटपुट डील को लेकर तकरार भी हो गई है। इसके चलते भारत सहित कुछ अन्य देशों में तेस संकट बढ़ सकता है।

यूएई तेल उत्पादन में कटौती के फैसले के खिलाफ

दरअसल, सऊदी अरब ने तेल उत्पादन न बढ़ाने की मौजूदा डील को वर्ष 2022 तक विस्तार देने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन यूएई इससे सहमत नहीं है। उसने ओपेक और अन्य तेल उत्पादक देशों के तेल उत्पादन में कटौती के फैसले का विरोध किया।

बिना किसी नतीजे के ओपेक प्लस देशों की बैठक खत्म

यूएई इस डील को अपनी शर्तों पर आगे बढ़ाने के लिए अड़ा हुआ है। उसका कहना है कि वह अपना तेल उत्पादन बढ़ाए बिना डील को आगे बढ़ाने के प्रस्ताव का समर्थन नहीं करेगा। दोनों देशों में इस मुद्दे पर मतभेद इतना बढ़ गया कि बिना किसी नतीजे के बैठक खत्म हो गई  और आगे बैठक कब होगी, यह भी तय नहीं हो पाया।

तेल उत्पादन न बढ़ाने की मौजूदा डील का अगले वर्ष तक विस्तार चाहता है सऊदी अरब

गौरतलब है कि तेल की मांगों में कमी की वजह से कच्चे तेल के दामों में कमी दर्ज की गई थी। इसलिए संतुलन बनाए रखने के लिए उत्पादन को कम करने का फैसला किया गया था। सऊदी अरब को लगता है कि वैश्विक आर्थिक सुधार अब भी कठिन दौर गुजर रहा है। वह चाहता है कि बाजार को संतुलन में रखने के लिए डील को 2022 अप्रैल तक बढ़ाया जाए।

सऊदी अरब ओपेक के सिर्फ एक सदस्य देश के लिए उत्पादन बेसलाइन में संशोधन का भी विरोध कर रहा है। सऊदी का मानना है कि अगर एक देश के लिए यह रियायत दी गई तो अन्य देश भी इसकी मांग करने लगेंगे।

फिलहाल सऊदी अरब और यूएई के बीच मतभेद का नतीजा यह होगा कि अगस्त में होने वाली सप्लाई में अपेक्षाकृत कोई बढ़ोतरी नहीं होगी। यह विशेष रूप से अमेरिका, यूरोप, चीन और भारत से मांग में वृद्धि के रूप में बाजार को मजबूत करेगा।

दोनों देशों के बीच मतभेद का तेल की कीमतों पर भी असर

इस बीच दोनों देशों की तकरार का तेल की कीमतों पर असर भी दिखा। सोमवार को कच्चे तेल का दाम लगभग 77 डॉलर प्रति बैरल रहा, जो 2018 के बाद से सबसे अधिक है। कई बैंकों ने हाल ही में 80 डॉलर प्रति बैरल तेल की कीमत रहने का अनुमान लगाया था।

इसका मतलब है कि भारत में तेल की कीमतें तब तक बढ़ती रहेंगी, जब तक कि केंद्र सरकार पिछले साल बढ़ाए गए टैक्स को कम नहीं करती। भारत की कच्चे तेल की खरीद लागत जनवरी में लगभग 60 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर लगभग 75 डॉलर हो गई है। इसके चलते देश के कई हिस्सों में पेट्रोल की कीमत 100 रुपये प्रति लीटर या उससे ज्यादा हो चुकी है। डीजल भी देश के अधिकतर हिस्सों में 100 रुपये लीटर की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। केंद्र ने पिछले वर्ष मार्च से मई के बीच पेट्रोल पर 13 रुपये और डीजल पर 16 रुपये उत्पाद शुल्क बढ़ाया था।

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