नहीं रहे ‘अंग्रेजों के जमाने के जेलर…’, मशहूर हास्य अभिनेता असरानी का 84 वर्ष की उम्र में निधन
मुंबई, 20 अक्टूबर। बॉलीवुड के मशहूर हास्य अभिनेता और निर्देशक गोवर्धन असरानी का सोमवार को यहां जुहू स्थित आरोग्य निधि अस्पताल में निधन हो गया। मैनेजर बाबुभाई थीबा ने जानकारी दी कि 84 वर्षीय असरानी का स्वास्थ्य पिछले कुछ समय से ठीक नहीं था और उन्होंने अपराह्न लगभग चार बजे अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर से फिल्म उद्योग और उनके प्रशंसक गहरे शोक में हैं।
असरानी के इच्छानुरूप किसी औपचारिक घोषणा के बिना हुआ अंतिम संस्कार
असरानी का अंतिम संस्कार शाम को सांताक्रुज स्थित शास्त्री नगर श्मशानभूमि में परिवार और करीबी लोगों की मौजूदगी में शांतिपूर्वक किया गया। प्राप्त जानकारी के अनुसार असरानी नहीं चाहते थे कि उनके निधन के बाद कोई शोर या हलचल मचे। उन्होंने अपनी पत्नी मंजू असरानी से पहले ही कह दिया था कि उनकी मृत्यु की खबर किसी को न दी जाए। इसी कारण परिवार ने बिना किसी औपचारिक घोषणा के चुपचाप उनका अंतिम संस्कार कर दिया।
कॉमेडी और अभिनय, दोनों से दर्शकों का दिल जीता
गोवर्धन असरानी ने अपने लंबे करिअर में सैकड़ों फिल्मों में अभिनय किया और अपनी कॉमिक टाइमिंग तथा अनोखे अंदाज से दर्शकों के दिलों में जगह बनाई। ‘शोले’ से लेकर ‘चुपके चुपके’, ‘आ अब लौट चलें’ और ‘हेरा फेरी’ जैसी फिल्मों तक असरानी ने हर पीढ़ी को अपनी कला से प्रभावित किया। कुल मिलाकर देखें तो हिन्दी सिनेमा ने अपने एक ऐसे अभिनेता को खो दिया है, जिसने कॉमेडी और अभिनय, दोनों से दर्शकों का दिल जीता।
पांच दशक तक 350 से ज्यादा फिल्मों में काम किया
असरानी मूल रूप से राजस्थान के जयपुर शहर के रहने वाले थे। उनकी पढ़ाई सेंट जेवियर्स स्कूल जयपुर से हुई। पांच दशक से भी ज्यादा लंबे करिअर में असरानी ने 350 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। उन्होंने हास्य अभिनेता और सहायक अभिनेता के रूप मे कई यादगार किरदारों के जरिए अपनी पहचान बनाई। 1970 के दशक में वह अपने करिअर के शिखर पर थे। इस दौरान उन्होंने मेरे अपने, कोशिश, बावर्ची, परिचय, अभिमान, चुपके-चुपके, छोटी सी बात, रफू चक्कर जैसी फिल्मों में काम किया।
कॉमिक टाइमिंग के उस्ताद, फिल्म ‘शोले’ का वह डॉयलाग…
1975 में रिलीज हुई रमेश सिप्पी की बेहद लोकप्रिय एक्शन-ड्रामा फिल्म शोले में सनकी जेल वार्डन की उनकी भूमिका एक अविस्मरणीय सांस्कृतिक कसौटी बन गई। फिल्म में जेलर का किरदार निभाते हुए उनका डॉयलाग ‘हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं…’ बहुत ही लोकप्रिय हुआ। इसी फिल्म से उन्होंने कॉमिक टाइमिंग और डॉयलॉग अदायगी के उस्ताद के रूप में अपनी जगह पक्की कर ली।
फिल्म निर्देशन में भी हाथ आजमाया
एक्टिंग के अलावा असरानी ने फिल्म निर्माण के अन्य क्षेत्रों में भी उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल कीं। उन्होंने कुछ फिल्मों में मुख्य नायक के रूप में सफलतापूर्वक अपनी पहचान बनाई। खासकर 1977 की समीक्षकों द्वारा प्रशंसित हिन्दी फिल्म ‘चला मुरारी हीरो बनने’ में, जिसे उन्होंने लिखा और निर्देशित किया था। उन्होंने अपने करिअर में ‘सलाम मेमसाब’ (1979) और कई अन्य फिल्मों में निर्देशन में भी हाथ आजमाया।
गुजराती सिनेमा में भी ख्याति बटोरी
उनका काम गुजराती सिनेमा तक भी फैला, जहां उन्होंने मुख्य भूमिकाएं निभाईं और 1970 और 1980 के दशक में उन्हें काफी सफलता मिली। कई रचनात्मक भूमिकाएं निभाने की उनकी इच्छा ने एक अभिनेता के दायरे से परे सिनेमा की कला के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को उजागर किया। असरानी को हाल ही में आई कुछ कॉमेडी फिल्मों, जैसे ‘धमाल’ फ्रैंचाइजी में काम करने के लिए भी जाना जाता है। फिल्म में अभिनेता आशीष चौधरी के पिता की उनकी भूमिका को खूब सराहना मिली।
