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‘मेरा पानी उतरता देख मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना, मैं समंदर हूं…लौटकर वापस आऊंगा…’

‘मेरा पानी उतरता देख मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना, मैं समंदर हूं…लौटकर वापस आऊंगा…’

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मुंबई, 5 दिसम्बर। देवेंद्र फडणवीस ने कई आघात, टूटफूट और त्याग के बाद गुरुवार की शाम जब तीसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में वापसी की तो उनका 2019 में बोला गया डायलॉग सहज ही स्मृतियों में ताजा हो उठा – ‘मेरा पानी उतरता देख मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना, मैं समंदर हूं… लौटकर वापस आऊंगा…।’

इसमें कोई दो राय नहीं कि मौजूदा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के राजनीतिक गुरु गंगाधर राव फडणवीस के पुत्र देवेंद्र फडणवीस ने अपने राजनीतिक जीवन के दौरान पिछले पांच वर्षों में अनेक उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन वह बहादुरी के साथ अपने कर्तव्यपथ पर डटे रहे और इसका सुपरिणाम भी सामने आया।

वर्ष 2014 में मोदी लहर के बीच पहली बार बने थे सीएम

वर्ष 2014 में मोदी लहर के बीच BJP-शिवसेना गठबंधन के बहुमत पर सवार होकर फडणवीस के लिए सीएम की कुर्सी तक पहुंचना आसान रहा था, लेकिन 2019 में उनके सामने एक अनोखी चुनौती आ गई। फिलहाल, उसके बाद राज्य में दो प्रमुख दलों (शिवसेना व एनसीपी) में विभाजन, लोकसभा चुनाव में झटका और 2024 के विधानसभा चुनावों में अपने गठबंधन की जबर्दस्त जीत के बाद नागपुरवासी 54 वर्षीय फडणवीस ने साबित कर दिया है कि उन्होंने खुद को ‘आधुनिक अभिमन्यु’ क्यों कहा था। चुनाव प्रचार के दौरान वह लगातार कहते रहे कि वह ऐसे व्यक्ति हैं, जो ‘चक्रव्यूह को तोड़ सकते हैं और वापस आ सकते हैं’।

बात 2014 की है, जब अविभाजित शिवसेना-भाजपा को सहज बहुमत मिलने के बाद फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया गया था। फडणवीस तब तक नागपुर के विपक्षी नेता के रूप में लोकप्रिय हो गए थे, जिन्होंने कांग्रेस-युग के घोटालों को उजागर किया था। 2019 के भाजपा के चुनावी अभियान में भी फडणवीस की टैगलाइन ‘मी पुन्हा येइन’ यानी ‘मैं वापस आऊंगा’ काफी चली थी। तब भाजपा ने 105 सीटें, शिवसेना ने 56, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) ने 54, कांग्रेस ने 44 सीटें जीती थीं।

2019 में 80 घंटे के लिए बने सीएम, सुबह-सुबह ली शपथ

हालांकि, 2019 में एक चौंकाने वाला ट्विस्ट आया, जब बहुमत हासिल करने के बावजूद भाजपा और शिवसेना के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर गठबंधन टूट गया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया। उसी वर्ष नवम्बर में जब उद्धव ठाकरे एनसीपी प्रमुख शरद पवार और कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए बातचीत कर रहे थे, तभी फडणवीस ने जल्दबाजी में शरद पवार के भतीजे अजित पवार के सहयोग से 26 नवम्बर की सुबह-सुबह राज्य के सीएम के रूप में शपथ ली। अजित ने तब  NCP छोड़कर भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के साथ सरकार बनाई और उन्हें डिप्टी सीएम बनाया गया। हालांकि, 80 घंटे के भीतर ही 26 नवम्बर को दोनों ने इस्तीफा दे दिया क्योंकि अजीत पवार अपने चाचा शरद पवार के पास वापस चले गए।

वहीं उद्धव ठाकरे ने सरकार बनाने के लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) और कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। इससे फडणवीस की छवि पर काफी असर पड़ा। खैर, नेता प्रतिपक्ष के रूप में अपने भाषण के दौरान उन्होंने एक वाक्य बोला था, ‘मेरा पानी उतारते देख किनारे पर घर मत बना लेना, मैं समंदर हूं…लौट कर वापस आऊंगा।’ और वाकई उन्होंने अपनी कही बात को सच साबित कर दिखाया। बुधवार को भाजपा विधायक दल की बैठक में जब उनके नाम की घोषणा की गई, तब भी उन्होंने पीठ में छुरा घोंपने की घटना को याद किया।

2022 में शिवसेना NCP में फूट, उप मुख्यमंत्री पद की शपथ

हालांकि, जून 2022 में महाराष्ट्र में एक बड़ा राजनीतिक उलटफेर हुआ। राज्य में भाजपा के साथ सरकार बनाने के लिए ठाकरे की पार्टी के एकनाथ शिंदे अपने विधायकों के एक समूह के साथ शिवसेना तोड़ दी और भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में शामिल हो गए।

शीर्ष नेतृत्व के आग्रह पर 2022 में डिप्टी सीएम पद लेने को हुए थे राजी

फडणवीस सरकार में शामिल होने के लिए बहुत उत्सुक नहीं थे क्योंकि शिंदे को सीएम बनना था, लेकिन शीर्ष नेतृत्व के आग्रह पर वह शिंदे के डिप्टी का पद लेने के लिए सहमत हो गए। तब फडणवीस के इस कदम को उनके बलिदान की तरह देखा गया। लगभग सालभर बाद अजित पवार भी एक बार फिर अपने चाचा से बगावत कर दी और कुछ अन्य नेताओं के एक समूह के साथ एनसीपी से अलग होकर महायुति गठबंधन में शामिल होते ही फिर से डिप्टी सीएम बनाए गए। इस प्रकार फडणवीस की रणनीति ने महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया, जिससे राज्य में शिवसेना और एनसीपी को टुकड़ों में बांट दिया।

2024 लोकसभा की हार, फिर सफलता और अंत में कड़ी सौदेबाजी

लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा ने 28 सीटों पर चुनाव लड़ा और जब केवल नौ सीटें जीत सकी तो फडणवीस के नेतृत्व को चुनौती दी गई। लेकिन फडणवीस ने छह महीने के भीतर उन गलतियों को सुधार लिया, जिससे भाजपा को विधानसभा 288 में से 132 सीटें मिल गईं।

इतनी सीटें मिलने के बाद राजनीतिक पंडितों ने यही अनुमान लगाया कि सीएम पद के लिए फडणवीस का रास्ता अब साफ हो गया है, लेकिन यह आसान था नहीं। इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि नतीजे 23 नवम्बर को आ गए  थे, लेकिन 57 सीटों के साथ शिंदे ने मुंबई नागरिक चुनावों का हवाला देते हुए इस पद के लिए कड़ी सौदेबाजी की। कई दिनों तक दांव-पेच चलता रहा। अंततः शपथ ग्रहण से एक दिन पहले फडणवीस के नाम की घोषणा की गई। अब गुरुवार को तीसरी बार सीएम के रूप में शपथ लेने के बाद वह कह सकते हैं – ‘मैं वापस आ गया हूं।’

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