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अस्ताचलगामी सूर्य को दिया श्रद्धा का अर्घ्य, अब उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ महापर्व का होगा समापन

अस्ताचलगामी सूर्य को दिया श्रद्धा का अर्घ्य, अब उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ महापर्व का होगा समापन

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नई दिल्ली, 27 अक्टूबर। पूरा उत्तर भारत इस समय लोक आस्था के महापर्व छठ के उल्लास में डूबा हुआ है। छठ महापर्व के तीसरे दिन सोमवार की शाम बिहार, झारखंड, यूपी समेत देशभर में नदियों, तालाबों व कुंडों के किनारे उमड़े व्रतियों और श्रद्धालुओं के सैलाब ने अस्ताचलगामी सूर्य को श्रद्धा का अर्घ्य अर्पित किया।

अब मंगलवार (28 अक्टूबर) को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ महापर्व का समापन होगा। इसके साथ ही चार दिनों तक चलने वाला यह कठिन व्रत और 36 घंटे का निर्जला उपवास पूर्ण हो जाएगा। इस दिन व्रती महिलाएं घाटों पर खड़े होकर सूर्यदेव को जल अर्पित करेंगी और अपने परिवार की सुख-समृद्धि, संतान की दीर्घायु और जीवन में नई ऊर्जा की कामना करेंगी।

मंगलवार को सूर्योदय और अर्घ्य का शुभ समय

पंचांग के अनुसार, मंगलवार 28 अक्टूबर को दिल्ली-एनसीआर, पटना, वाराणसी और अन्य शहरों में सूर्योदय का समय सुबह 6 बजकर 30 मिनट रहेगा। इसी समय व्रती महिलाएं पवित्र नदियों, तालाबों और घाटों पर एकत्र होकर सूर्य को उदयागमी अर्घ्य देंगी। अर्घ्य के बाद व्रतियों द्वारा व्रत का पारण किया जाएगा, जिसमें ठेकुआ, केला, नारियल और मौसमी फल प्रसाद के रूप में ग्रहण किए जाते हैं।

उदयागमी अर्घ्य का महत्व

छठ महापर्व का चौथा दिन उदयागमी अर्घ्य का होता है, जो जीवन में प्रकाश, सकारात्मकता और नई ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सूर्य को जल अर्पित करने से आत्मबल, मानसिक शांति और आत्मविश्वास बढ़ता है। ज्योतिषीय दृष्टि से भी सूर्य को अर्घ्य देने से व्यक्ति के भाग्य और नेतृत्व क्षमता में वृद्धि होती है। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य कमजोर होता है उनके लिए यह अर्घ्य बेहद शुभ फलदायी माना जाता है। इससे सम्मान, सफलता और प्रगति के नए द्वार खुलते हैं।

अर्घ्य देने से पहले की तैयारी

व्रती महिलाएं प्रातःकाल सूर्योदय से कुछ समय पहले ही स्नान करती हैं और घाटों की ओर प्रस्थान करती हैं। वहां पहुंचकर वे छठी मैया और सूर्यदेव को प्रणाम करती हैं। पूजा सामग्री में ठेकुआ, दीया, सुपारी, दूब, चावल, गुड़ और फूलों का प्रयोग किया जाता है।

अर्घ्य देने की विधि

अर्घ्य देते समय पूर्व दिशा की ओर मुख करके खड़े होना चाहिए क्योंकि सूर्यदेव का उदय पूर्व से होता है। जैसे ही पहली सुनहरी किरण क्षितिज पर दिखाई दे, वैसे ही पीतल या कांसे के लोटे में जल भरकर उसमें सुपारी, फूल, दूब घास और चावल डालें और श्रद्धा भाव से सूर्यदेव को जल अर्पित करें। अर्घ्य के समय मन ही मन ‘ॐ सूर्याय नमः’ का जाप करना शुभ माना जाता है।

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